दहेज मृत्यु के मामले में अभियुक्त बरी होने पर जब्त जेवर पिता को मिलेंगे या पति को ?
|दहेज हत्या के आरोप से सास, ससुर सहित सभी अभियुक्त दोष मुक्त हो गए हैं। दहेज का सामान किसे प्राप्त होगा? मृतका के पिता को या पति को? कृपया नजीरों सहित विस्तार से समझाएँ। धन्यवाद।
उत्तर…
गोविंद कुमार जी,
आप का प्रश्न बहुत ही दिलचस्प है। किसी भी अपराधिक प्रकरण में जब्त की गई संपत्ति का व्ययन करने का अधिकार उसी न्यायालय का है जिस न्यायालय ने मुकदमे का विचारण किया है। ऐसा कोई निश्चित कानून नहीं है कि किस परिस्थिति में किसे जब्त की गई संपत्ति दी जाए। लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 452 में जब्त शुदा संपत्ति उस के वास्तविक अधिकारी को देने का अधिकार न्यायालय को प्रदान किया गया है। मुकदमे का निर्णय होने के उपरांत जो भी व्यक्ति उस संपत्ति के अपनी होने का दावा करता है उसे शीघ्र और मुकदमें में निर्णय होने के छह माह व्यतीत होने के पहले अदालत को आवेदन कर देना चाहिए। न्यायालय स्वयं निश्चित करेगा कि वह संपत्ति किसे प्रदान की जाए।
आप के द्वारा सुझाए गए मामले में जेवरात किसी अभियुक्त से जब्त किए गए हैं तो वह यह दावा कर सकता है कि वह जेवरात मृतका के नहीं अपितु उस के स्वयं के थे और गलत रूप से उस से जब्त कर लिए गए थे। लेकिन उसे न्यायालय के समक्ष यह साबित करना होगा कि वह जेवरात उसी के हैं। लेकिन यदि मुकदमें में हुई गवाही में यह स्पष्ट हो गया हो कि जब्त किए गए जेवरात मृतका की संपत्ति जिस में उस का स्त्री-धन भी सम्मिलित है का भाग थे। तो न्यायालय मृतका के स्वाभाविक उत्तराधिकारी को वह संपत्ति कब्जे में दे देगा। अब मृतका की संपत्ति का उत्तराधिकारी मृतका पर लागू उत्तराधिकार की विधि से तय होगा। हिन्दू विधि के अनुसार किसी भी मृत महिला के उत्तराधिकारी सब से पहले उस की संताने हैं, उन के उपरांत उस के पति के उत्तराधिकारी हैं, उन के उपरांत माता-पिता हैं और उन के उपरांत पिता के उत्तराधिकारी हैं और उस के उपरांत माता के उत्तराधिकारी हैं। ऐसी परिस्थिति में न्यायालय के समक्ष जो भी दावेदार होगा या होंगे तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय निर्णय करेगा।
इस मामले में कोई सीधी नजीर दे पाना संभव नहीं हो रहा है। लेकिन कुछ मामलों में जहाँ अभियुक्तों को दोष मुक्त कर दिया गया वहाँ परिवादी द्वारा जब्त संपत्ति उस के कब्जे में देने का आवेदन किया गया था। आवेदनों को विचारण न्यायालय और अपील न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने यह कहा कि किसी भी अभियुक्त ने संपत्ति को अपना होना नहीं कहा है इस लिए संपत्ति को परिवादी को देना उचित होगा।
इस बार सब कुछ तनिक चक्करदार है। जलेबी की तरह।
जीवन में बडे गम्भीर मसले हैं। पर यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है कि इन मसलों से राह सुझाने के लिए आप हमारे साथ हैं।
आदरणीय सर, हम तो १०० प्रतिशत आप ही की बात से सहमत हैं इस केस में।
अजीब सी बात है, लेकिन इसे तो कोई वकील या जज ही समझ सकता है, आम आदमी तो सिर्फ़ अंदाजा ही लगा सकता है, लेकिन इस लेख को पढ कर मेरा तो दिमाग भी काम नही कर रहा.
धन्यवाद,