दैनिक भास्कर में 21 मार्च के रसरंग की कवर स्टोरी "देर है तो अंधेर है" अब नेट पर उपलब्ध, अवश्य पढ़ें….
|दैनिक भास्कर के स्थाई रविवासरीय परिशिष्ठ रसरंग में कवर स्टोरी के रूप में विजयशंकर चतुर्वेदी ने भारतीय न्याय व्यवस्था की एक विस्तृत समीक्षा की थी। यह आलेख अब दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर उपलब्ध है और यहाँ चटका लगा कर पढ़ा जा सकता है। सभी पाठकों से आग्रह है कि उसे अवश्य पढ़ें। इस से आप को अनुमान हो जाएगा कि हमारी केंद्र औऱ राज्यों की सरकारें न्याय और न्याय प्रणाली के प्रति अपने दायित्वों के लिए कितनी गैर जिम्मेदार हैं।
समाचार पत्र दैनिक भास्कर और विजयशंकर चतुर्वेदी का आभार कि उन्हों ने भारत के हिन्दी समाचार पत्रों में देश की न्याय व्यवस्था की हालत के बारे में तथ्यों को जनता के बीच सब से पहले रखने की पहल की। निश्चित रूप से यह जनता का ऐसा मुद्दा है जिस का कोई उत्तर राजनैतिक दलों के पास नहीं है। अब तक की सभी केंद्र और राज्य सरकारों ने न्याय प्रणाली के प्रति अपने दायित्व को निभाने में अपराधिक कोताही की है जिस का दंड जनता को भुगतना पड़ रहा है और कालांतर में मौजूदा व्यवस्था को भुगतना पड़ेगा।
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7 Comments
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बहुत सुंदर मैने यह लेख कल पर्सॊ कही पढा था,
आप का धन्यवाद
भाई विजय शंकर चतुर्वेदी का आलेख तथ्य प्रधान और प्याज के छिलकों की तरह भारतीय न्यायालयीन व्यवस्था की पोल खोलने जैसा है.
कितनी लचर प्रशासनिक कार्यप्रणाली है हमारे देश की, आलेख को पढ़कर समझा जा सकता है.
समाचार पत्र दैनिक भास्कर और विजयशंकर चतुर्वेदी का आभार कि उन्हों ने भारत के हिन्दी समाचार पत्रों में देश की न्याय व्यवस्था की हालत के बारे में तथ्यों को जनता के बीच सब से पहले रखने की पहल की। निश्चित रूप से यह जनता का ऐसा मुद्दा है जिस का कोई उत्तर राजनैतिक दलों के पास नहीं है। अब तक की सभी केंद्र और राज्य सरकारों ने न्याय प्रणाली के प्रति अपने दायित्व को निभाने में अपराधिक कोताही की है जिस का दंड जनता को भुगतना पड़ रहा है और कालांतर में मौजूदा व्यवस्था को भुगतना पड़ेगा………
एकदम सही कह रहे हैं.
विल्कुल सही…….वास्तविकता "यह है कि 60 फ़ीसदी लंबित मामले सरकारी हैं। कई मामलों में तो वादी-प्रतिवादी राज्य या केंद्र सरकार ही हैं।
…सरकारी रवैया एक पहेली है…
…………………….
आज मैंने नानी-दादी की पहेलियों को याद किया…………
………………….
विलुप्त होती… नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ….बूझो तो जाने….
………मेरे ब्लॉग पर…..
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ….इंजीनियर के दिल से.
हमारी यह धारणा ग़लत है कि न्यायालयों में चल रहे सबसे अधिक मामले आपराधिक हैं। वास्तविकता "यह है कि 60 फ़ीसदी लंबित मामले सरकारी हैं। कई मामलों में तो वादी-प्रतिवादी राज्य या केंद्र सरकार ही हैं। सबसे ज्यादा लंबित मामले कर विभाग, गृह, वित्त, उद्योग, खदान-पेट्रोलियम, वन, पीएचईडी, शिक्षा, पंचायती राज, परिवहन और राजस्व विभाग सहित कुल 19 विभागों के हैं। सरकार के खिलाफ़ सबसे ज्यादा मामले टैक्स से जुड़े हैं। "
यह सब नेताओ और भरष्ट अफसरशाही की साजिश है द्विवेदी साहब, ताकि इनके खिलाफ कोई सुनवाई ही न हो !