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धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम में वैवाहिक संबंधों की डिक्री प्राप्त करना बेकार नहीं है

पिछले दिनों आकाश ने पूछा थ” मैं तलाक नहीं चाहता मुझे क्या करना चाहिए”। तीसरा खंबा से उत्तर मिलने पर उन्हों ने पूछा है – – – 
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 में वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त करने का क्या लाभ है? इस के बाद भी दं.प्र.सं. की धारा 125 और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13, 24 और 27 के मुकदमे तो लग ही जाएंगे।
उत्तर – – –
काश जी की शंका निर्मूल नहीं है। किसी भी धारा के अंतर्गत मुकदमा तो कोई भी लगा सकता है। आखिर कोई भी आवेदन या वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होने और उस में प्रतिपक्षी या प्रतिवादी की ओर से उत्तर मिलने पर ही तो उस की सचाई सामने आएगी। इस कारण से इन में से कोई भी मुकदमा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है, चाहे विपक्षी ने धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए डिक्री क्यों न प्राप्त कर ली हो। किसी भी पति या पत्नी को वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री के बाद भी उस की पत्नी या पति के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता। 
हिन्दू विवाह अधिनियम  की धारा-9 में डिक्री प्राप्त कर लेने का अर्थ यह है कि पति या पत्नी जिस ने भी यह डिक्री प्राप्त की है। उस का सीधा अर्थ यह है कि वह व्यक्ति अपने जीवन साथी के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखना चाहता है और उस का साथी ही बिना किसी कारण से उसे वैवाहिक संबंधों से वंचित किए हुए है। इस के साथ ही यदि इस डिक्री के पारित होने के उपरांत भी एक वर्ष तक उस के अपने साथी के साथ वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना नहीं होती है तो वह अपने साथी से अधिनियम की धारा-13 (1ए) (ii) के अंतर्गत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। इस के साथ ही वह इस आरोप से बच जाता है कि उस ने अपने साथी को बिना किसी कारण से त्याग दिया है। इस के अतिरिक्त दं.प्र.सं. की धारा 125 और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13, 24 और धारा 27 के मुकदमों में भी इस का लाभ मिलेगा। इन मुकदमों में यह नहीं कहा जा सकता कि उस के साथी ने उस की अकारण या किसी कारण से उस की उपेक्षा की है। इस तरह यह नहीं कहा जा सकता है कि धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम की डिक्री प्राप्त करने का कोई लाभ नहीं है। 
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