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न्यायपालिका सामान्यतः कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करती।

27 जुलाई को प्रेसिडेंट पंचायत यूनियन कौंसिल बनाम पी.के मुथुस्वामी एवं अन्य के मामले में विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात पुनः कही कि न्यायपालिका को सामान्यतः कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

मामला यह था कि तमिलनाड़ु के धरमपुरी जिले के पैन्नागरम तालुका में मुंसिफ कम ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत के लिए अदालत भवन की आवश्यकता थी।  मद्रास उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि प्रखंड विकास अधिकारी के कार्यालय की पुरानी इमारत इस अदालत के लिए आवंटित की जाए। इस के विरुद्ध राज्य सरकार ने यह विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की।

अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि मुंसिफ कोर्ट को उपयुक्त भवन की आवश्यकता है लेकिन सरकार से भवन प्राप्त करने के लिए आवेदन करना चाहिए न कि इस तरह सरकार को आदेश दिया जाना चाहिए। इस तरह का आदेश पारित कर उच्चन्यायालय ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर का कार्य किया है। इस कारण यह आदेश निरस्त किया जाता है।  तदुपरांत सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि इस निर्णय की एक प्रतिलिपि राज्य के मुख्य सचिव को भेजी जाए।  हम मुख्य सचिव से निवेदन करते हैं कि वे उच्चन्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से उस मामले को तुरंत वार्ता कर हल करें और दो माह में समस्या का हल निकालें।

आप चाहें तो मूल निर्णय यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। 

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