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न्यायालयाधीन मामलों की मीडिया रिपोर्टिग के नियमन के लिए कोई मुकम्मल दिशानिर्देश नहीं हो सकते

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि न्यायालय के अधीन मामलों की मीडिया रिपोर्टिग के नियमन के लिए कोई मुकम्मल दिशानिर्देश नहीं हो सकता, लेकिन खास मामलों में पाबंदी लगाए जाने की मांग की जा सकती है। प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “न्यायालयाधीन मामलों की रिपोर्टिग के लिए कोई दिशानिर्देश तय नहीं किए जा सकते।”

न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा, “हालांकि कोई भी संतप्त व्यक्ति अपने मामले की सुनवाई की रिपोर्टिग करने से मीडिया को रोकने के लिए किसी उपयुक्त अदालत में जा सकता है।”

न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत मीडिया रिपोर्टिग सहित अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और यह वर्गीकरण व औचित्य की जांच पर निर्भर करता है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह का कोई भी दिशानिर्देश अल्पकालिक होगा और यह अनिवार्यता व अनुरूपता के सिद्धांत पर निर्भर करेगा।

न्यायालय ने कहा कि संतप्त वादी अलग-अलग मामलों में सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय जाकर आदेश या स्थगन की मांग कर सकता है, जिसमें किसी खास मामले में एक सीमित अवधि के लिए मीडिया को रिपोर्टिग करने से रोका जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश निवारक होगा, दंडात्मक नहीं।

न्यायालय ने आगे कहा कि यह केवल न्यायालय की अवमानना के मामलों से मीडिया कर्मियों को बचाने के लिए है। न्यायालय ने कहा कि मीडिया के रिपोर्टिग के अधिकार और वादी के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को संतुलित करने के लिए ये निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

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