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वैश्वीकरण और उदारीकरण के नाम पर मानव शोषण को अनुमति नहीं दी जा सकती : सर्वोच्च न्यायालय

ठेकेदार श्रमिक उन्मूलन अधिनियम 1970 के नाम से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे इस कानून का निर्माण उद्योगों में ठेकेदार श्रमिकों को नियोजित करने की प्रथा का उन्मूलन करने के लिए हुआ है। यह सही है कि इस का उपयोग इस काम के लिए किया जा सकता है। लेकिन उस के लिए प्रक्रिया इतनी दुष्कर बना दी गई है और निर्णय करने का अधिकार केन्द्र/राज्य सरकारों को प्रदान किया गया है कि इस प्रथा का उन्मूलन किया जाना असंभव जैसा हो चुका है। सब से पहले तो कोई इस के लिए तथ्य एकत्र करे, फिर राज्य सरकार के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करे। फिर राज्य सरकार इस प्रश्न पर आवेदनकर्ता और उद्योग के स्वामियों/प्रबंधकों की सुनवाई करे। आवेदक का उद्योग के श्रमिकों का उचित प्रतिनिधि होना भी आवश्यक है। कानून बना कर ठेकेदार श्रमिक प्रथा का उन्मूलन करने की शक्तियाँ सरकार को प्रदान कर देने के कारण न्यायालय भी इस मामले में सुनवाई नहीं कर सकते क्यों कि उन्हें इस का क्षेत्राधिकार ही नहीं है।
स कानून का उपयोग नियोजकों द्वारा श्रमिकों के विरुद्ध किया जा रहा है। नियोजक अपनी प्रत्येक स्थाई और नियमित प्रकृति की आवश्यकताओं के लिए श्रमिकों को नियोजित करते हैं, उन का चयन स्वयं करते हैं, उन्हें वेतन भी नियोजक का कार्यालय ही देता है और उन के कार्यों पर नियंत्रण भी नियोजक का ही होता है। लेकिन कागजों में उन्हें ठेकेदार का कर्मचारी बताया जाता है। ऐसे श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी तक प्राप्त नहीं होती, यदि वे कानूनी अधिकारों और सुविधाओं की मांग करते हैं तो नियोजक तुरंत कहते हैं कि श्रमिक उन के कर्मचारी न हो कर ठेकेदार के कर्मचारी हैं। विवाद बढ़ता दिखाई देता है तो ठेकेदार का ठेका समाप्त कर दिया जाता है और उस के साथ ही इन श्रमिकों का नियोजन समाप्त हो जाता है।
क सितंबर 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने भीलवाड़ा दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति बनाम विनोद कुमार शर्मा के मामले में निर्णय पारित करते हुए कहा है कि न्यायालय कानून के इस तरह के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं कर सकता वैश्वीकरण और उदारीकरण के नाम पर मानव शोषण को अनुमति नहीं दी जा सकती। इस मामले में नियोजक द्वारा ठेकेदार के कर्मचारी घोषित किए गए श्रमिकों को मूल उद्योग के कर्मचारी घोषित करते हुए उन्हें मूल उद्योग में मिलने वाली सुविधाएँ दिलाने के श्रम न्यायालय के निर्णय को उचित ठहराया गया है।
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