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न्याय के प्रति राज्य सरकार की चिंता

कोटा नगर जहाँ मैं वकालत का व्यवसाय कर रहा हूँ राजस्थान के प्रमुख औद्योगिक नगरों में से एक है। यहाँ औद्योगिक विवादों का होना स्वाभाविक था। इन की संख्या को देखते हुए राजस्थान सरकार ने यहाँ 1978 में श्रम न्यायालय एवं औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना की जिसे कोटा संभाग के सभी जिलों के मामले सुनने का अधिकार दिया गया। मेरी रुचि इन मामलों में थी इस कारण मैं सितंबर 1979 में अपने गृहनगर बाराँ को छोड़ कर कोटा चला आया और मुख्य रुप से इस अदालत में वकालत का आरंभ किया। हालांकि मैं ने राजस्व मामलों को छोड़ कर सभी प्रकार के मामलों की वकालत की और अब तक करता आ रहा हूँ। लेकिन मेरे पास लगभग आधे मामले हमेशा श्रम और औद्योगिक मामले रहे।
वास्तव में यह अदालत एक आदर्श अदालत थी, और अनेक अर्थों में अब भी है। प्रारंभ में इस अदालत में तीन दिन श्रम मामले सुने जाते थे। दो दिन मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरण का काम होता था और एक दिन भ्रष्टाचार निरोधक अदालत का काम होता था। लेकिन श्रम मामले बढ़ते चले गए। मोटरयान दुर्घटना मामले पहले जिला जज को स्थानांतरित किए गए और भ्रष्टाचार निरोधक न्यायालय पृथक स्थापित हो गया। यह अदालत सप्ताह के छहों दिन औद्योगिक विवादों की सुनवाई करने लगी। उस समय इस अदालत में पन्द्रह दिन से अधिक की पेशी किसी मुकदमे में नहीं होती थी। अब छह-सात माह की तारीख पड़ती है। इस न्यायालय की इस दुर्दशा के लिए पूरी तरह राज्य सरकार जिम्मेदार है।
स न्यायालय के मुकदमे कुछ जटिल प्रकार के होते हैं। इस कारण से औसतन एक मुकदमे के निपटारे में दो दिन लग सकते हैं। वर्ष में यह न्यायालय लगभग 220 दिन काम करता है। ऐसी अवस्था में यदि यह अपनी सामान्य गति से काम करे तो वर्ष में 110 मुकदमों का निपटारा कर सकता है। वर्तमान में इस न्यायालय में लगभग चार हजार मुकदमे लंबित हैं। मेरे निवेदन पर अदालत ने वर्ष 2003 से ले कर 2009 तक के मुकदमों के निपटारे के आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार वर्ष ……

  • 2003 के आरंभ में 2988 मामले लंबित थे, इस वर्ष 531 नए मामले प्राप्त हुए, 320 का निर्णय किया गया और 3199 में शेष रहे। 
  • 2004 के आरंभ में 3199 मामले लंबित थे, इस वर्ष 305 नए मामले प्राप्त हुए, 84 का निर्णय किया गया और 3420 मामले शेष रहे।      
  • 2005 के आरंभ में 3420 मामले लंबित थे, इस वर्ष 310 नए मामले प्राप्त हुए, 168 का निर्णय किया गया और 3562 मामले शेष रहे।      
  • 2006 के आरंभ में 3562 मामले लंबित थे, इस वर्ष 180 नए मामले प्राप्त हुए, 267 का निर्णय किया गया और 3475 मामले शेष रहे।  
  • 2007 के आरंभ में 3475 मामले लंबित थे, इस वर्ष 424 नए मामले प्राप्त हुए, 215 का निर्णय किया गया और 3684 मामले शेष रहे।
  • 2008 के आरंभ में 3684 मामले लंबित थे, इस वर्ष 288 नए मामले प्राप्त हुए, 138 का निर्णय किया गया और 3834 मामले शेष रहे।
  • 2009 के आरंभ में 3834 मामले लंबित थे, इस वर्ष 283 नए मामले प्राप्त हुए,218  का निर्णय किया गया और 3899 मामले शेष रहे।
प स्वयं ही देख सकते हैं कि यह अदालत औसतन वर्ष में 200 मामलों में निर्णय पारित कर सकती है और वर्तमान में लगभग चार हजार मामले लंबित हैं। ऐसी स्थिति में यदि इस अदालत में एक भी मामला नया नहीं दिया जाए तो भी इस अदालत को लंबित मामलों के निपटारे में बीस वर्ष लग सकते हैं। ये सब आँकड़े प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार को उपलब्ध कराए जाते हैं और प्रत्येक तिमाही पर उन्हें अपड़ेट किया जाता है। लेकिन लगता है कि ये सब आँकड़े राज्य सरकार के गोदाम में जा कर दफ्न हो जाते हैं। न तो न्यायालय में काम की गति को बढ़ाने के लिए कोई उपा
य किए जाते हैं और न ही एक और इसी तरह का न्यायालय स्थापित किए जाने के लिए कोई सिलसिला आरंभ किया जाता है। आरंभ में इस न्यायालय में जितने कर्मचारी थे उन में से दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी एक रीडर और एक लिपिक कम कर दिए गए हैं। इसी वर्ष एक और लिपिक सेवा निवृत्त होने वाला है। लगता है कि उस का स्थान भी रिक्त ही रहेगा। 
स न्यायालय में दो टाइप मशीनें 32 वर्ष पुरानी हैं जो जर्जर हो चुकी हैं और कभी भी  जवाब दे सकती हैं। कंप्यूटर स्थापित करने के लिए पिछले दस वर्षों से राज्य सरकार को लिखा जा रहा है लेकिन राज्य सरकार उस के लिए बजट ही नहीं दे रही है। आप इस न्यायालय की दशा को देख कर अनुमान लगा सकते हैं कि राज्य सरकारें सब से कमजोर तबके को न्याय प्रदान करने के लिए कितनी चिंता करती है।
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