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अदालत क्या करे? 1500 से अधिक मुकदमे अन्तिम बहस में

बाल श्रम उन्मूलन पर हुई परिचर्चा के दिन ही श्रम न्यायालय, कोटा की जज साहिबा से बात हुई थी।  वे बता रही थीं कि अदालत में साढ़े चार हजार मुकदमे लंबित हैं।  1500 से अधिक मुकदमें तो अन्तिम बहस में लगे हैं।  रोज कम से कम 20 से 25 मुकदमे बहस के लिए लगते हैं।  केवल बहस ही सुनी जाए तो अदालत के दिन भर के समय में केवल तीन या चार मुकदमों में बहस सुनी जा सकती है। यदि उन में उसी दिन निर्णय भी लिखाना हो तो अधिक से अधिक दो मुकदमे निपटाए जा सकते हैं।  ऐसे में अन्य मुकदमों में जो गवाहियाँ और  मुकदमों के बीच में प्रक्रिया संबंधी बिन्दुओं पर होने वाली बहसें तो सभी मुल्तवी करनी पड़ेगी। तब जा कर एक दिन में अधिक से अधिक तीन-चार निर्णय किए जा सकते हैं।  कुल 70 से अस्सी मुकदमे रोज की सूची में रखने पड़ रहे हैं।  यह हालत तो तब है, जब मुकदमों में अगली पेशी तीन से छह माह की दी जा रही है।  अन्तिम बहस के लिए सूची में रखे मुकदमों में से 18-20 में रोज केवल पेशी बदलनी पड़ रही है। पेशी बदलने पर मुवक्किल और वकील बहुत जद्दोजहद करते हैं। जल्दी लगाने को कहते हैं।  लेकिन अदालत जल्दी लगा नहीं सकती। जितने अधिक मुकदमे रोज लगेंगे उतने ही रोज बदलने पड़ेंगे। अदालत का दो ढ़ाई घंटे का समय इस पेशी बदलने की जद्दोजहद में बरबाद हो रहा है।  बस एक ही इलाज नजर आता है कि सरकार कम से कम एक श्रम न्यायालय कोटा में और खोल दे।  दूसरा रास्ता यह है कि न्याय चाहने वाला थक हार कर खुद ही अपना मुकदमा अदालत से वापस ले ले।

मेरी डायरी  बता रही थी कि गुरुवार को कुल 12 मुकदमे श्रम न्यायालय में अन्तिम बहस के लिए मुकर्रर हैं।  इन में से नौ कोटा ताप विद्युत परियोजना  के उन श्रमिकों के थे जिन्हें परियोजना के पहले ही बिजलीघर के आरंभ होने के समय नियोजित कर लिया गया था। अनेक वर्षों तक इन की नियुक्ति को नियमित न कर दैनिक वेतन पर काम लिया गया।  करीब आठ वर्षों के उपरांत उन्हें नियमित किया गया।  उन की मांग थी कि वे ही थे जिन्हों ने इस बिजलीघर को सब से पहले आरंभ किया।  इस लिए उन्हें उसी तिथि से नियमित किया जाना चाहिए जब उन्हें बिजलीघर में काम करते दो वर्ष पूरे हो गए थे। ये मुकदमे 1997-98 से  इसी अदालत में चल रहे हैं।  लगभग पाँच वर्ष पूर्व ही इन में गवाही ली जा चुकी है और तभी से ये अन्तिम बहस में चल रहे हैं।  अभी तक किसी भी जज ने इन में बहस पूरी करने का प्रयास नहीं किया।  सभी मुकदमों में विधि का एक ही बिन्दु है जिस से इन की सुनवाई एक साथ की जा सकती है।

उक्त  मुकदमों के अतिरिक्त तीन मुकदमे कोटा की बंद हो चुकी जे. के. सिंथेटिक्स लि. के उद्योगों से सम्बन्धित हैं। ये तीनों मुकदमे अवैधानिक सेवा समाप्ति के मुकदमे हैं।  जो 1991-93 से चल रहे हैं।

मैं इन बारह मुकदमों का अध्ययन कर अदालत पहुँचा कि यदि इन  में से दो-तीन मुकदमे भी सुने जा सके तो मेरी अलमारी में कुछ स्थान बनेगा।  लेकिन जब मैं अदालत पहुँचा तो अदालत विरोधी वकीलों को बुलवा कर उन से पूछ रही थी कि क्या इन मुकदमों में कोई समझौता नहीं हो सकता?  वकील अपने  उद्योगपति मुवक्किलों की गरीबी का बखान करते हुए तर्क दे रहे थे कि समझौता संभव नहीं है।  मैं ने अदालत से अनुरोध किया कि इन मुकदमों में इस अदालत में अब तक पीठासीन रहे सभी जज इस तरह का प्रयास कर चुके हैं।  इन मे

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