न्यूनतम मजदूरी बढने से ठेकेदार को घाटा नहीं, लेकिन मजदूरी मजदूरों को मिलती नहीं
|भारत संघ बनाम सारस्वत ट्रेडिंग कम्पनी के मुकदमे में सु्प्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी निर्माण कार्य को करने के लिए कोई ठेकेदार नियुक्त किया जाता है और ठेके की अवधि में सरकार न्यूनतम वेतन में वृद्धि कर देती है तो ठेकेदार से उस के लाभों को कम करने के लिए नहीं कहा जा सकता है, चाहे ठेकेदार ने अपने कंट्रेक्ट में उस काम को निश्चित दरों पर करने का वादा क्यों न किया हो। न्यूनतम वेतन में वृद्धि से जितना भार ठेकेदार पर बढ़ता है उस का भुगतान मूल नियोजक द्वारा ठेकेदार को करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल्यों में वृद्धि के इस युग में मूल्य में वृद्धि सामान्य बात है।
इस तरह अब न्यूनतम वेतन के बढ़ने पर ठेकेदार को किसी प्रकार की हानि होने की संभावना उस के ठेके में नहीं है। लेकिन फिर भी जब तक कंट्रेक्ट पुनरीक्षण नहीं हो जाता है तब तक काम चलता रहता है और ठेकेदार पुरानी दरों से ही मजदूरों और कर्मचारियों को वेतन देता रहता है। कंट्रेक्ट का पुनरीक्षण आम तौर पर ठेके का काम पूरा हो जाने के उपरांत बहुत समय बाद होता है। जिस का नतीजा यह होता है कि जो राशि मजदूरो और कर्मचारियों को वेतन के रूप में मिलनी चाहिए थी वह भी ठेकेदार ही प्राप्त कर लेता है। इस तरह मजदूरों और कर्मचारियों को उन के हक की राशि नहीं मिल पाती है।
इस का मुख्य कारण है कि ठेके के कामों में जहाँ मजदूर और कर्मचारी अस्थाई रूप से काम करते हैं। मजदूरी देनगी अधिनियम और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत मजदूरों और कर्मचारियों को समय पर कानून के अनुसार मजदूरी भुगतान कराने के लिए श्रम विभाग की मशीनरी पर्याप्त नहीं है। अनेक मामलों में तो स्थिति यह है कि मजदूरों को पुरानी दर से भी मजदूरी पूरी नहीं दी जाती है और वे उसे प्राप्त करने के लिए भटकते रहते हैं। कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि वे उस का खर्च उठा कर भी अपनी बकाया मजदूरी प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। न्यायालय में कार्यवाही हो सके इस से पहले ही मंजदूर नए स्थान पर पलायन कर जाते हैं। न्यायालय निर्णय दे भी देता है तो उस की वसूली असंभव हो जाती है क्यों कि ठेकेदार वह क्षेत्र छोड़ कर अन्यत्र चला जाता है।
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8 Comments
गरीब आदमी की सुनवाई कही नही हो पाती है । आज का ठेकेदार तो पुराने जमाने का शोषक शासक का ही एक रूप है ।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया! मैं आपकी बातों से सहमत हूँ!
सही कहा आपने.
रामराम.
हकीक़त बयान की है आपने !
@vijay gaur/विजय गौड़
यह कानून की नहीं, शासन की विसंगति है कि शासन संसद और विधानसभाओं द्वारा निर्मित और खुद शासन द्वारा उन के तहत की गई घोषणाओं और बाध्यताओं को लागू कराने के लिए पर्याप्त मशीनरी नहीं रखता और ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है कि कानूनों और उन के तहत की गई घोषणाओं और बाध्यताओं का सशक्त लोग उल्लंघन कर कमजोर लोगों को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक हानि पहुँचाते रहते हैं। यहाँ तक कि चुने हुए जन प्रतिनिधि ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें लागू कराने वाली मशीनरी भी ऐसे ही लोगों का सहयोग करती है और बदले में दाम वसूलती है।
क्या इसे कानून की विसंगति कहा जाए कि वे जितने अच्छे से व्याख्यायित किए जाते हैं उतनी ही उनके लागू होने की त्रासद कथाएं हैं ?
Thnaks for taking the time to post. It’s lifted the level of debate
यह सही है कि हर स्थिति मे फायदा ठेकेदार को ही होता है कम मजदूरी के भुगतान के बावजूद मज्दूर ठेकेदार को इसलिये कुछ नही कहते कि वह उन्हे हटाकर दूसरे मजदूर रख लेता है यह भय मजदूरों मे हमेशा बना रहता है इसलिये वे शिकायत नही करते