पत्नी भाभी के साथ संबंध का आरोप लगा कर मायके से नहीं लौट रही है, क्या किया जाए ?
|मनोज कुमार ‘आजाद’ पूछते हैं ………………
हमारा संयुक्त परिवार है, मेरी माँ का 2009 में देहान्त हो गया है। अब परिवार में मेरे पापा, बड़े भाई, भाभी और मेरा छोटा भाई है। मेरी शादी चार माह पहले 31 मई 2010 को हुई है। शादी के एक माह बाद से मेरी पत्नी मुझ पर भाभी के साथ संबंध होने का आरोप लगा रही है। मेरे ससुर मुझे अदालत में जाने की धमकी दे रहे हैं। वर्तमान में मेरी पत्नी अपने मायके में है और मेरे लाख समझाने पर भी मेरी बात नहीं मान रही है और अपे घर आने को तैयार नहीं है। अब आप बताएँ कि मैं क्या करूँ?
उत्तर – – –
मनोज जी,
आप के विवरण से ऐसा लगता है कि आप की भाभी के साथ बहुत निकटता है, जो स्वाभाविक भी है। वह भी तब जब कि वे परिवार में अकेली महिला हैं। बीमार मानसिकता के लोग इस निकटता का गलत अर्थ लगाते हैं। वे वैसा ही सोचते हैं जैसा अपने आस-पास देखते हैं। इस से यह भी अनुमान लगता है कि आप के ससुराल का आस-पास अच्छा नहीं है। यह बीमार मानसिकता आप के ससुराल में सभी सदस्यों की हो सकती है।
आप के ससुर ऐसा कर सकते हैं कि आप की पत्नी को अदालत ले जाएँ और आप के विरुद्ध बेबुनियाद मुकदमें संस्थित करवा दें। इस कारण से आप को चाहिए कि आप तुरंत हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की प्रत्यास्थापना के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर दें। वहाँ न्यायाधीश पहले सुलह-समझौते की कार्यवाही करेंगे। हो सकता है कि उसी से बात बन जाए। यह आवेदन आप की पत्नी की ओर से संभावित मुकदमों में आप के बचाव का एक माध्यम भी बनेगा।
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4 Comments
आदरणीय श्री द्विवेदी जी,
नमस्कार।
वैसे तो सदा से ही रुग्ण एवं संकीर्ण मानसिकता के वहमी व्यक्तियों का समाज में अस्तित्व रहा है, लेकिन वर्तमान में इस प्रकार के लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
जहाँ तक महिलाओं के सन्दर्भ में इस पहलु को समझने की बात है तो मेरे देखने में ऐसा आया है कि अनेक महिलाएँ पति पर वहम करने को अपनी आजादी के अधिकार से जोडकर देखने लगी हैं।
आपसी दाम्पत्य विवादों को सुलझाते समय महिलाओं की ओर से तर्क दिया जाता है कि अब वो समय गया जबकि पुरुष कहीं भी मु:ह मारता फिरे और घर में बैठी औरत चुपचाप सबकुछ सहती रहे। यदि अब पति के बारे में जरा भी शक हो तो हमें उस पर लगाम लगाने का कानूनी हक है। अब हम आजाद हैं। हमें भी पुरुष के बराबर कानूनी हक हैं। हमारा भी वजूद है। हमें भी कानूनी संरक्षण प्राप्त है। इसलिये हम चुप नहीं बैठ सकती!
मेरा मानना है कि महिलाओं की ओर से प्रस्तुत किये जाने वाले तर्क सैद्धान्तिक रूप से बेशक सही प्रतीत होते हों, लेकिन इनमें पूर्वाग्रह की बू आती है। इन दिनों इस प्रकार के मामले सामने आने लगे हैं, जिनमें जानबूझकर और तंग करने के दुराशय से पत्नियों द्वारा अपने पतियों पर नाजायज सम्बन्धों के आरोप लगाकर मामाले आदालतों में डाले जा रहे हैं। अनेक बारे तो 40 से अधिक की उम्र में भी ऐसे मामले देखे जा रहे हैं। पूर्वाग्रही सोच एवं रुग्ण मानसिकता के चलते अनेक स्त्रियाँ अकारण और केवल वहम के कारण अपने दाम्पत्य को बर्बाद कर रही हैं। अनेक पुरुष भी इसी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त हैं।
इस स्थिति के लिये हमारा सामाजिक एवं पारिवारिक परिवेश भी जिम्मेदार है, क्योंकि जिस समाज में व्यक्ति का, जिस प्रकार से समाजीकरण होता है, उसी प्रकार का व्यक्ति का व्यक्तित्व विकसित होता है। इस बारे में विचार करने और समाधान तलाशने की आवश्यकता है।
शुभाकांक्षी
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
घटिया मानसिकता की सही विवेचना की है ! मैं आज अयोध्या केस पर आपको सुनाने लाइन में लग कर आपके कोर्ट पंहुचा हूँ भाई जी ! आपके विचार महत्वपूर्ण होंगे ऐसा मेरा विश्वास है !
साद
आप की बार से सहमत, हम जेसे होते है वेसा ही दुसरे के बारे सोचते है, सही राय दी आप ने, धन्यवाद
सुंदर और वक्तोपयोगी जानकारी.
रामराम.