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पत्नी मायके से नहीं लौटती, क्या मैं तलाक ले सकता हूँ?

क पाठक ऋषि ने अपनी समस्या इस तरह रखी है …….

सर!

मेरी समस्या अपनी पत्नी को ले कर है। मेरी शादी को एक वर्ष हो चुका है शादी के कुछ समय बाद से ही मेरी पत्नी परिवार के सदस्यों से दूर रहने लगी थी। किसी से बात नहीं करती थी। हमने कभी उस के परिवार में यह बात नहीं कही। हमें लगता था कि समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। पर कुछ समय बाद वह झगड़ा कर के यह कहने लगी कि मुझे तो अब यहाँ नहीं रहना।  फिर वह अपने घर (मायके)  चली गई। उस के बाद हमारी और से उस के परिवार में बात करने पर हमें ही दोषी ठहराया गया, और कहते रहे कि हम कानून की मदद ले कर आप पर दहेज का मुकदमा करेंगे। यह सब होने के तकरीबन तीन महिने बाद उन के कुछ रिश्तेदार हमारे यहाँ मध्यस्थ बन कर आए और मौखिक राजीनामा करवा दिया। तीन चार माह सब कुछ ठीक रहा। उस के बाद करीब एक माह पहले मेरी पत्नी वापस उसी तरह से छोटी सी बात पर झगड़ कर वापस अपने मायके चली गई है। उस के परिवार वाले भी अब कुछ बात नहीं कर रहे हैं और जो मध्यस्थ थे वे भी यह कह कर चुप हो गए कि हम क्या करें? हम ने एक बार आप का समझौता करवा दिया। अब हम कुछ नहीं करेंगे।

  1. मैं ने अभी तक कहीं सलाह नहीं ली है, मुझे क्या करना चाहिए? 
  2. मेरे अधिकार क्या हैं? क्या मैं तलाक ले सकता हूँ? यदि हाँ तो कितने समय बात और किन किन कारणों से?
  3. क्या मैं किसी प्रकार का नोटिस दे कर उसे वापस बुला सकता हूँ। 
  4. यदि वह वापस आती है तो क्या मुझे कानूनी मदद लेना चाहिए ताकि वह बार बार ऐसा नहीं करे?
 समाधान —

ऋषि जी,

प ने अपनी सारी समस्या रखी है, लेकिन यह नहीं बताया कि आप की पत्नी की शिकायतें क्या हैं? यदि आप यह बताते कि आप की पत्नी की शिकायतें क्या हैं, तो उन्हें ध्यान में रखते हुए समस्या का समाधान खोजा जा सकता था। वैवाहिक जीवन पति-पत्नी के सामंजस्य से चलता है। आप की कहानी से लगता है आप का परिवार एक संयुक्त परिवार है, जिस में पत्नी को अपने पति के साथ-साथ उस के परिवार के साथ सामंजस्य पैदा करना पड़ता है। सामंजस्य कभी एक तरफा नहीं होता। परिवार के सदस्यों को भी अपने बीच आए नए सदस्य के साथ तालमेल करना पड़ता है। परिवार के सभी सदस्य चाहते हैं कि वह उन की समझ के साथ परिवार में व्यवहार करे। यह सब कुछ समय में संभव नहीं होता। सब से सही रीति यह है कि घर में आई नव वधु को उस के हिसाब से रहने दिया जाए और धीरे-धीरे उसे अपने परिवार के माहौल में ढाला जाए। अक्सर ऐसा भी होता है कि विवाह को ले कर परिवार के लोगों की समाज के अनुकरण से दहेज आदि की बहुत सी आकांक्षाएँ होती हैं। वे सब कभी पूरी किया जाना संभव नहीं है। अपूर्ण आकांक्षाओं के कारण परिवार के सदस्य रोजमर्रा की बातों में और कभी कटाक्ष करते हुए अपनी बात कहते हैं जिस के कारण नव-वधु को बहुत ही बुरा महसूस होता है। यही नव-वधु के अपने ससुराल के परिवार में असामंजस्य का कारण बन जाता है। 
ब से पहले तो आप को यह जानना चाहिए कि ऐसे तो कोई कारण नहीं हैं। यदि ऐसे कारण हैं तो उन्हें दूर करने का यत्न करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि आप को तलाक के बारे में सोचने की जरूरत है। आप को अपने परिवार को जमाने और बसाने के बारे में सोचना चाहिए और उस के लिए प्रयत्न करने चाहिए। 
र्तमान में आप के पास विवाह विच्छेद का कोई आधार उपलब्ध नहीं है। यदि आप विवाह विच्छेद के सभी आधारों को जानना चाहते हैं तो आप को हिन्दू विवाह अधिनियम का अध्ययन कर लेना चाहिए। हिन्दू विवाह अधिनियम की पुस्तक हिन्दी में किसी भी विधि पुस्तक विक्रेता के यहाँ उपलब्ध हो जाएगी, या फिर आप को अपने नजदीक के किसी विश्वसनीय वकील से सलाह करनी चाहिए।
दि आप का अपनी पत्नी और उस के मायके वालों के साथ संवाद ही नहीं है तो आप स्वयं या वकील के माध्यम से दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए अपनी पत्नी को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से नोटिस भिजवा दें। यदि नोटिस का कोई उत्तर आता है और संवाद स्थापित होता है तो आप बातचीत कर के अपनी पत्नी को ला सकते हैं। कोई संवाद स्थापित न होने पर आप किसी वकील की मदद से हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए परिवार न्यायालय में और आप के क्षेत्र के लिए परिवार न्यायालय न हो तो जिला न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। वहाँ समझाइश और सुनवाई के बाद दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त की जा सकती है। यदि इस डिक्री के उपरांत भी एक वर्ष तक आप की पत्नी आप के साथ आ कर न रहे तो फिर आप इसी आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री हेतु आवेदन कर सकते हैं।
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