पुरुषों के प्रति महिलाओं की हिंसा के लिए कानून
|समस्या-
जब घर में पत्नी या बेटी या किसी अन्य महिला के साथ हिंसा का व्यवहार होता है तो वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है। लेकिन यदि कोई महिला या लड़की अपने परिजनों के विरुद्ध हिंसा का व्यवहार करे तो क्या कोई कानून नहीं है क्या? यदि है तो कृपया जानकारी प्रदान करें।
-दीपक कुमार, पानीपत, हरियाणा
समाधान-
जब भी कोई व्यक्ति (स्त्री या पुरूष) किसी अन्य व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) के प्रति हिंसा का व्यवहार करता है तो वह एक अपराध दोषी होता है। उस के द्वारा की गई हिंसा किस तरह का अपराध है, इस से यह तय होता है कि उस ने क्या अपराध किया है। भारतीय दंड संहिता के उपबंधों को पढ़ कर यह जाना जा सकता है कि उस ने क्या अपराध किया है। उस हिंसक घटना की रिपोर्ट पुलिस को की जा सकती है। यदि पुलिस समझती है कि किया गया कृ्त्य एक संज्ञेय अपराध है तो वह उस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर के कार्यवाही कर सकती है। यदि वह समझती है कि किया गया कृत्य असंज्ञेय अपराध है तो वह रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को सलाह देती है कि उस मामले में वह व्यक्ति सीधे न्यायालय के समक्ष अपनी शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। यदि मामला असंज्ञेय अपराध का हो या संज्ञेय अपराध में पुलिस रिपोर्ट दर्ज न करे तो वह व्यक्ति न्यायालय के समक्ष शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय मामले को पुलिस को अन्वेषण करने के लिए प्रेषित कर सकता है अथवा स्वयं साक्षियों के बयान दर्ज कर अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। भारतीय दंड संहिता के ये उपबंध स्त्री या पुरुष दोनों ही यदि हिंसा कर के कोई अपराध करें तो प्रभावी होते हैं। इस मामले में स्त्री पुरुष का कोई भेद नहीं किया गया है। ये अपराध क्या हैं और इन में से कौन से संज्ञेय (Cognizable) हैं और कौन से असंज्ञेय ( Non Cognizable) हैं यह दंड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची देख कर जाना जा सकता है।
लेकिन इस बात को तो आप भी स्वीकार करेंगे कि लगभग सारी दुनिया में मानव समाज पुरुष प्रधान है और स्त्री चाहे घर में रहे या कामकाजी हो उसे घर में पुरुषों की हिंसा का सामना करना पड़ता है। इस कारण से संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में स्त्री के प्रति घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। भारत में भी ऐसा कानून बनाया गया है। लेकिन उस कानून में की गई किसी कार्यवाही में किसी को दंडित नहीं किया जा सकता है लेकिन हिंसा को रोकने के लिए और हिंसा की शिकार महिला को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए आदेश पारित किए जा सकते हैं। यदि इन आदेशों की अवहेलना की जाए तो फिर वह अवहेलना अपराध होगी। इस कानून का यह अर्थ कदापि नहीं है कि कोई स्त्री यदि हिंसा करती है तो उस के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
इस के अतिरिक्त भारत में दहेज प्रथा और उस के या अन्य कारणों से महिलाओं को अपनी ससुराल में क्रूरता का शिकार होना पड़ता है। इस के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा 498-अ जोड़ी गयी है जो एक संज्ञेय अपराध है। ऐसी परिस्थिति पुरुषों के साथ नहीं है इस कारण से यह धारा केवल स्त्रियों के प्रति की गई क्रूरता के लिए है, न कि पुरुषों के प्रति क्रूरता के लिए। यदि कभी यह आदर्श स्थिति भारतीय समाज में उत्पन्न हो जाए कि स्त्रियों को इस तरह की क्रूरता और हिंसा का शिकार न होना पड़े और यह अपवाद स्वरूप रह जाए तो संभव है कि भारत की संसद इन कानूनों और उपबंधों की आवश्यकता न समझे और समाप्त कर दे। लेकिन यह संभावना अभी दूर दूर तक दिखाई नहीं देती।