प्रतिरक्षा करने वाले पक्ष को मुकदमे में किए गए विरोधाभासी कथनों का लाभ मिलता है
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एक ही महिला अपने पति के विरुद्ध क्रूरता के लिए धारा 498-ए भा.दं.संहिता, स्त्री-धन न लौटाने के लिए धारा 406 भा.दं.संहिता में एक मुकदमा करती है और धारा 125 दं.प्र.संहिता का भरण-पोषण के लिए अलग मुकदमा करती है तो निश्चित रूप से दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों में कोई अंतरविरोध नहीं होना चाहिए। ऐसा तो हो सकता है कि मुकदमे की आवश्यकता के अनुसार एक मुकदमे में कुछ तथ्य प्रस्तुत किए गए हों और दूसरे मुकदमे में कुछ तथ्य और भी प्रस्तुत किए गये हों तथा पहले के कुछ तथ्यों को अभिवचनों में शामिल नहीं किया हो। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि दोनों मुकदमों में एक दूसरे के विरोधी तथ्य अंकित किए गए हों। यदि दो मुकदमों में एक दूसरे के विपरीत कथन किए गए हों तो निश्चित रूप से यह परिवादी/प्रार्थी के लिए घातक है। स्वयं प्रार्थी/परिवादी के विरोधाभासी अभिकथन ही इस बात को सिद्ध कर देंगे कि जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वे बनावटी और मिथ्या हैं।
इस बात को साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को चाहिए कि वह दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों और बयानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त कर दूसरे मुकदमों में प्रस्तुत करे और जब भी पत्नी बयान देने के लिए आए तो जिरह के दौरान प्रश्न पूछ कर यह साबित किया जाए कि उस ने विरोधाभासी कथन किए हैं। इस से स्त्री के दोनों मुकदमे कमजोर होंगे और पति को उस का लाभ प्राप्त होगा। इस तरह के मामलों यदि पति की पैरवी कोई अनुभवी वकील कर रहा होगा तो इस परिस्थिति का लाभ अवश्य लेगा। लेकिन पत्नी की लालच और परेशान करने की नीयत साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को अतिरिक्त साक्ष्य अवश्य प्रस्तुत करनी होगी। उस के बिना केवल विरोधाभासी कथनों के आधार पर पत्नी के इरादे को साबित नहीं किया जा सकता।
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आप सभी(शुभचिंतकों) ने मेरी समस्या पर दी क़ानूनी सलाह पर टिप्पणी की है. उसके लिए आप सभी का धन्यबाद करता हूँ.
श्रीमान जी,मेरे तीनों प्रश्नों का उत्तर देने के लिए दिल की गहराईयों से धन्यबाद स्वीकार करें. तीसरे प्रश्न के उत्तर में भी काफी अच्छी जानकारी दी है. आपने समय-समय पर बहुत मदद की है. आपकी मदद के कारण ही आज मेरा जीवन है. आपके दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए यह बताते बहुत ख़ुशी हो रही है. कि मुझे अपने दोनों केसों में एक सरकारी वकील मिल गया है. इस सन्दर्भ में आपको ईमेल भेजकर प्रक्रिया की जानकारी भेज रहा हूँ.जिससे आप समय अनुकूल दूसरों जानकारी देते समय उदाहरन के रूप में प्रकाशित कर सकें.
मेरी एक अन्य जिज्ञासा और शांत करें. क्या सरकारी वकील अपने मुक्व्विल की अग्रिमी जमानत याचिका नहीं लगता है और गिरफ्तार होने पर ही जमानत करता है या आत्मसमपर्ण करने में मदद करता है. क्या आरोपी को पुलिस द्वारा रिमांड लेने से भी बचाता है?
बहुत सुंदर जानकारी मिली, प्रणाम.
रामराम.
अच्छी जानकारी देती रचना |बधाई
आशा
अच्छी जानकारी है। धन्यवाद।