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प्राइवेट कॉलेज में व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और जीवन जीने के अधिकारों का हनन

एक पाठक ने प्रश्न रखा है …                                                                                                                        
मैं एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में बी. टेक. में अध्ययनरत हूँ। यहाँ अनुशासन के नाम पर छात्र-छात्राओं के साथ बदसलूकी की जाती है, तथा छोटी-मोटी गलतियों पर आर्थिक दंड लगाकर पैसा उगाहने का कार्य किया जाता है। विगत दिनों छात्र-छात्राओं के कैम्पस में कहीं भी साथ घूमने या बैठने पर पाबन्दी लगाने से सम्बंधित नोटिस जरी किया गया। यह पाबन्दी कॉलेज के उपरांत अवकाश समय में होस्टेलेर्स पर विशेष रूप से लागू की गई। यहाँ तक कि कैंटीन जैसी अनौपचारिक जगहों पर भी। यह पाबन्दी बिना किसी भड़काने वाली या अप्रिय घटना के बावजूद लागू की गई है और ऐसा भी नही है कि किसी आपत्तिजनक घटना के फलस्वरूप लगाई गई हो। इससे भी बुरी बात है, इस नियम की वजह से चलने वाली गार्डों की बदतमीजी, तथा वार्डेन का छात्रों के साथ घटिया व्यवहार, खासतौर पर बात करने का ढंग, गाली-गलौज तो आम बात है.

मेरा प्रश्न यह है, कि क्या अनुशासन के नाम पर स्टूडेंट्स की व्यक्तिगत ज़िन्दगी में अतिक्रमण जायज है, वह भी तब जबकि सभी स्टूडेंट्स कानूनी तौर पर वयस्क हैं, तथा अपने निर्णय के अधिकारी स्वयं हैं. क्या यह सब व्यक्तिगत स्वंतंत्रता तथा सम्मान-जनक जीवन के संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं है? और क्या ऐसा करना विधि-सम्मत है? 

उत्तर …                                                                                                                                                         

आपने जिस स्थिति का वर्णन किया है वह बहुत ही शर्मनाक है। यदि कॉलेज प्रबंधन को यही व्यवहार करना था तो उन्हें एक महिला महाविद्यालय खोलना था एक सह-शिक्षा संस्थान नहीं। पर आज कल हो यह गया है कि कानून को ताक पर रख कर लोग समितियाँ पंजीकृत करवाते हैं और शिक्षा संस्थान खोल रहे हैं। जब कि वास्तविकता यह है कि ये सभी संस्थान केवल एक व्यक्ति या परिवार की लाभ कमाने वाली इकाइयाँ बन कर रह गई हैं। यह विडम्बना ही है कि एक व्यक्ति को मत दे कर सरकार बनाने में योगदान करने का अधिकार है लेकिन एक वयस्क की भांति जीवन जीने का नहीं। आप ने जिस स्थिति का वर्णन किया है उस के होने का कारण यह है कि विद्यार्थी इस तरह के अन्याय का विरोध नहीं करते क्यों कि इस का मूल्य उन्हें अपनी परीक्षा में मिलने वाले अंकों और कैरियर से  चुकाना पड़ता है। यह और भी बुरी स्थिति है। 
यह स्थिति वाकई स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है। इस के साथ ही विद्यालय को चलाने के जो नियम हैं,  उन के विरुद्ध भी है। इस का उपाय यह है कि मान्यता देने वाले विश्वविद्यालय को शिकायत की जाए तथा उस पर कोई कार्यवाही न होने पर अपने मूल अधिकार की प्रस्थापना के लिए उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की जाए। समस्या यह है कि छात्र इस के लिए सामने नहीं आते हैं। मेरा सुझाव है कि सिविल राइट्स और संवैधानिक अधिकारों के लिए अनेक संगठन काम करते हैं और इस के लिए देश में उन की प्रतिष्ठा भी कायम है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज  और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइटस् की बहुत प्रतिष्ठा है। इन संगठनों त

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