बिना तथ्यों के कोई उपाय/ समाधान सुझाना संभव नहीं है।
|समस्या-
दीपक लाम्बा ने फतेहाबाद, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
एक महिला जिसे अपने पति से वसीयत द्वारा जो सम्पत्ति प्राप्त हुई है क्या वो उस सम्पति को अपने गोद दिए पुत्र के बेटों को एक तर्कनामा 2010 सन् मे ये लिखकर कि ये मेरे हकीकी पोते हैं और इन्हें मैं अपने हिस्से की सम्पति देती हूं, दे सकती है या नही? क्योंकि हमारे पङोस मे एक महिला ने ऐसे ही एक तर्कनामा लिखकर जमीन का नामान्तरण करवाया है क्या इस में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी का मामला बनता है। जबकि 2010 के बाद हरियाणा में ये कानून बना है कि खून के रिश्ते मे किसी सम्पत्ति के हस्तांतरण पर कोइ स्टाम्प ड्यूटी नहीं चुकानी पङेगी। लेकिन जब ये हस्तांतरण हुआ था तब ऐसा कोइ कानून नहीं था।
समाधान-
जो महिला पहले तर्कनामा लिख कर इस तरह का हस्तान्तरण करवा चुकी है उस संपत्ति में उस महिला का हिस्सा रहा होगा और जिन के नाम तर्कनामा किया उन का भी। उस ने केवल अपना हिस्सा त्याग कर उस का त्यागपत्र लिखा होगा जिस के आधार पर यह हस्तान्तरण हुआ होगा।
जिस संपत्ति की आप बात कर रहे हैं वह महिला को वसीयत से प्राप्त हुई है और उस महिला की निजि संपत्ति है उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं हुई है। उस में इस तरह हिस्सा त्याग नहीं किया जा सकता। वह महिला 2010 में वसीयत कर सकती थी जिस के आधार पर वह संपत्ति जिन्हें उस वसीयत से दी है उस महिला के देहान्त के बाद वसीयतियों की हो जाती। उस दस्तावेज का पंजीकरण भी नहीं हुआ होगा। यदि हुआ होगा तो केवल वसीयत के रूप में। यदि उस दस्तावेज का पंजीकरण नहीं हुआ है तो उस का पंजीकरण अब दानपत्र के रूप में कराया जा सकता है जिस पर स्टाम्प शुल्क मुक्ति के कारण अधिक खर्चा नहीं आएगा या नया दानपत्र लिख पंजीकृत कराया जा सकता है। इस मामले में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी का मामला कैसे बनेगा?
लगता है आप ने मामले के तथ्यों की पूरी जानाकारी नहीं की है या होते हुए भी यहाँ अपने प्रश्न में नहीं रखी है। हम भी इस समस्या का समाधान यहाँ यही बताने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं कि इस तरह अधूरे तथ्यों की समस्याओं का कोई हल प्रस्तुत करना संभव नहीं होता। इसी कारण अनेक पाठक समझते हैं कि उन की समस्या का उत्तर हमने जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं किया। कृपया पाठक इस का नोटिस लें और अपनी समस्या सभी जरूरी तथ्यों सहित प्रेषित करें।