बीमा पॉलिसी का मूल बॉण्ड नहीं मिलने पर क्या करें ?
|आप जीवन-बीमा या किसी भी अन्य प्रकार का बीमा कराते हैं तो आप को बीमाकर्ता कंपनी द्वारा पॉलिसी बॉण्ड दिया जाता है। यह पॉलिसी बॉण्ड कंपनी के किसी कर्मचारी द्वारा आप को व्यक्तिगत रूप से दिया जाता है अथवा रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से आप को प्रेषित किया जाता है। लेकिन अनेक बार यह पालिसी बाण्ड बीमा कराने वाले व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाता है। बीमाकर्ता कंपनी में संपर्क करने पर डुप्लीकेट बॉण्ड प्राप्त करने की सलाह दी जाती है जिस के लिए शुल्क और क्षतिपूर्ति बंधपत्र (इंडेम्निटी बॉण्ड) देने के लिए कहा जाता है। यह बिलकुल गलत है। पॉलिसी बाण्ड को आप तक पहुँचाने की जिम्मेदारी बीमाकर्ता कंपनी की है। डाक या किसी भी अन्य माध्यम में यदि वह खो जाता है तो भी उस की जिम्मेदारी बीमाकर्ता कंपनी की ही है। डाक या कूरियर कंपनी की सेवाएँ बीमा कर्ता कंपनी द्वारा प्राप्त की गई हैं। वह मसला उन दोनों के बीच का है और उस में बीमा कराने वाले का कोई दोष नहीं है।
अब समस्या यह है कि बीमा कराने वाला उपभोक्ता क्या करे? इस संबंध में तीसरा खंबा पर दो आलेख जीवन बीमा का मूल पॉलिसी बॉण्ड नहीं मिला, मुझे क्या करना चाहिए? तथा जीवन बीमा का मूल पॉलिसी बॉण्ड नहीं मिला, बीमा एजेण्ट खर्चे पर डुप्लीकेट निकलवाने को कहता है, क्या करना चाहिए? पहले भी लिखे जा चुके हैं। लेकिन एक पाठक ने यह प्रश्न आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल के संबंध में पुनः पूछा गया है। बीमाकर्ता कंपनी कोई भी हो नियम सभी के लिए एक ही लागू होता है।
यदि आप को पॉलिसी बॉण्ड नहीं मिलता है तो आप बीमा कंपनी को रजिस्टर्ड डाक से शिकायत भेज दें अथवा कंपनी के कार्यालय में शिकायत व्यक्तिगत रूप से दे कर उस की प्राप्ति की रसीद ले लें। शिकायत में यह अवश्य लिखें कि आप की शिकायत दूर नहीं किये जाने पर आप स्थाई लोक अदालत या जिला उपभोक्ता मंच में शिकायत करेंगे। यदि आप की शिकायत फिर भी दूर नहीं की जाती है तो आप कार्यवाही कर सकते हैं।
सभी जिला मुख्यालयों पर विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत स्थाई लोक अदालतें स्थापित की गई हैं जो आवश्यक सेवाओं के मामलों में समझौता पारित कर आप की शिकायत दूर करने का आदेश दे सकती हैं। बीमा सेवाओं को इस कानून के अंतर्गत आवश्यक सेवा में लिया गया है। इस के लिए आप सादा फुलस्केप कागज पर अपनी शिकायत जिला स्थाई लोक अदालत को प्रस्तुत कर सकते हैं। यह अदालत जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में हर जिला मुख्यालय पर स्थापित हैं।
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6 Comments
आदरणीय श्री द्विवेदी जी,
नमस्कार।
सार्थक, सकारात्मक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुत करने के लिये आभार।
शुभाकांक्षी
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
इसकी ज़रूरत तो कभी भी पड सकती है । बहुत उपयोगी जानकारी
द्विवेदी जी,
किसी को अपनी तलाक़शुदा पत्नी को हर्जा-खर्चा देते रहने पर अपनी संतान से. जो कि तलाक़शुदा पत्नी के साथ ही रहती है से मुलाक़ात करने का क्या कानूनी प्रावधान है? प्लीज़ इसे डिटेल में बताएं???
आपका पाठक व ब्लॉग-मित्र
सलीम ख़ान
9838659380
सही ओर सुंदर सलाह, धन्यवाद
Bahut hi achi jaankari di sir aapne…
humare paas bhi kai bhima policy hai…
ye jaankari sambhal kar rakhenge…