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जिस सम्पत्ति की रक्षा सम्भव नहीं हो उसे विक्रय कर दूसरी रक्षा की जा सकने वाली सम्पत्ति बना लेनी चाहिए

समस्या-

विकास कुमार ने देहरादून उत्तराखण्ड से पूछा है-

मैं जिला हरिद्वार का स्थाई निवासी हूँ तथा वर्तमान में जिला देहरादून में कार्यरत हूँ और यहीं पर निवास करता हूं| जिला हरिद्वार में मेरे दादाजी के नाम एक कृषि भूमि है| परंतु इस भूमि के कुछ हिस्से पर कुछ लोगों द्वारा जो कि हमारे गांव के ही निवासी हैं जबरन कब्जा करने की नियत से पक्का निर्माण (नींव आदि) कर लिया है। इस संबंध में मुझे तत्काल क्या कार्यवाही करनी चाहिए कृपया मार्गदर्शन करें। मेरे दादाजी बहुत ही वृद्ध (98 वर्ष)  है और अस्वस्थ भी।  मैं न्यायालय वाद में भी नहीं जाना चाहता और ना ही प्रत्येक बार हरिद्वार ही आ सकता हूं। मुझे इस निर्माण को हटवाने हेतु क्या कार्यवाही करनी चाहिए कृपया मार्गदर्शन करें।

समाधान-

कृषि भूमि के स्वामी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी भूमि पर कृषि कार्य करता रहे। चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो। आपका कहना है कि कुछ लोगों ने पक्का निर्माण आपके दादाजी की भूमि पर किया है जिससे वे उस पर कब्जा कर सकें। इसका अर्थ है कि आप के दादाजी/पिताजी किसी न किसी माध्यम से उस भूमि पर काबिज हैं। जब भूमि के स्वामी आप के दादाजी हैं और कब्जा भी उन्हीं का है तो उन्हें ऐसे निर्माण को तुरन्त हटा देना चाहिए। यदि कोई इस काम में बाधा उत्पन्न करता है तो उसके विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करना चाहिए।

यदि फिर भी कोई परेशानी उत्पन्न होती है तो आपको न्यायालय का मार्ग ही अपनाना पड़ेगा। न्यायालय के बाहर का कोई कानूनी मार्ग नहीं होता। हर राज्य का कृषि भूमि सम्बन्धी कानून भिन्न होता है। आपके यहाँ उ.प्र. जमींदारी विनाश अधिनियम प्रभावी है। उसी के अनुसार आपको कार्यवाही करनी होगी और अपनी संपत्ति बचानी है तो न्यायालय की शरण में जाना ही होगा। इसके लिए आपको किसी स्थानीय वकील की मदद लेनी होगी। यदि सलाह ही लेना हो तो आप देहरादून में किसी राजस्व मामले काे अनुभवी वकील से मिल कर  परामर्श कर सकते हैं।

यदि आप हरिद्वार में नहीं रहते औऱ आपके परिवार का कोई सदस्य वहाँ ऐसा नहीं है जो उस जमीन की देखभाल कर सके तो बड़ी मुश्किल होगी। क्योंकि वैसी स्थिति में कोई न कोई उस जमीन को हथियाने का प्रयत्न करेगा। आप तमाम कोशिशें करके भी उस जमीन को बनाए नहीं रख सकेंगे। हमारी राय में जिस सम्पत्ति की उसका स्वामी रक्षा नहीं कर सकता उस संपत्ति को बनाए रखना ठीक नहीं होता और अन्ततः ऐसी संपत्ति को खो बैठता है। ऐसी संपत्ति को बाजार मूल्य पर विक्रय कर देना चाहिए और प्राप्त धनराशि से अन्य ऐसी सम्पत्ति बना लेनी चाहिए जिसकी रक्षा भी की जा सके और जिसका बेहतर उपयोग किया जा सके।

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