भज्जी को सजा किस बात की?
|मैं किसी भी व्यक्ति को थप्पड़ मार दूँ तो यह आई.पी.सी. यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 के अन्तर्गत एक मामूली अपराध होगा। जिस की सजा मात्र एक वर्ष का कारावास या एक हजार रुपए जुर्माना या दोनों होगा। इस की पिटने वाला व्यक्ति थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराए तो पुलिस रिपोर्ट तो दर्ज कर लेगी, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं करेगी। क्यों कि इस मामले में पुलिस को अभियुक्त को गिरफ्तार करने की शक्ति हमारे कानून ने प्रदान नहीं की है। पुलिस रिपोर्ट की प्रतिलिपि उसे पकड़ा कर कहेगी ‘आप की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। आप चाहें तो अदालत में अपना परिवाद सीधे दर्ज करा सकते हैं।’ अदालत में परिवाद दर्ज करने के बाद जब अदालत को समय मिलेगा जो तुरंत भी हो सकता है और छह माह या साल भर बाद भी क्यों कि उन्हें पुलिस द्वारा प्रस्तुत मुकदमे सुनने से ही फुरसत नहीं होती। परिवादी का बयान दर्ज करने के बाद अदालत गवाहों के बयान लेगी। इस के बाद लगा कि मुकदमा दर्ज होने लायक है तो वह मामले में प्रसंज्ञान कर के अभियुक्त यानी मेरे विरुद्ध सम्मन जारी करेगी। सम्मन मुझे प्राप्त हो जाने पर भी मैं अदालत में न जाऊँ तो अदालत मेरे नाम जमानती वारण्ट जारी करेगी। फिर भी न जाऊँ तो फिर मेरे नाम गिरफ्तारी वारण्ट जारी होगा। फिर पुलिस मुझे गिरफ्तार कर के अदालत में प्रस्तुत करेगी। वहाँ चाहूँ तो मैं जमानत करा सकता हूँ, जो बहुत आसान होगा। इतनी प्रक्रिया में पिटने वाले व्यक्ति का कचूमर निकल जाएगा। पैसा खर्च होगा सो अलग। पिटने वाला कहेगा कहाँ आकर फँस गया।
मुझे आरोप का सारांश सुनाया जाएगा। फिर एक बार परिवादी और गवाहों के बयान होंगे। मुझे खुद या वकील के जरीए उन से जिरह करने का अवसर मिलेगा। फिर मुझे अपने बचाव में साक्ष्य का अवसर मिलेगा। जिस में द्स्तावेज और गवाहियाँ सम्मिलित होंगी। इस बीच किसी तरह भी डरा-धमका कर या पटा कर पिटने वाले को तैयार कर लिया तो दोनों के संयुक्त राजीनामे की दरख्वास्त पर मुकदमा बिना निर्णय के समाप्त हो जाएगा। साबित हो जाने पर भी मुझे पहला मुकदमा होने के कारण चेतावनी मात्र दे कर छोड़ा जा सकता है, या फिर मात्र मामूली जुर्माना दे कर।
अब आप को लग रहा होगा कि भज्जी को जो सजा दी गई वह बहुत कठोर है। लेकिन ऐसा नहीं है। भज्जी का कसूर इतना सा नहीं है। अगर आप कहीं नौकरी करते हों और आप ने काम के समय या काम के स्थान पर ऐसा किया हो तो मात्र इतनी गलती से आप की नौकरी जा सकती है। क्यों कि आप ने नियोजन की शर्तों का उल्लंघन किया है। आप ने नियोजन स्थल का अनुशासन तोड़ा है। अब यह अपराध किसी व्यक्ति के प्रति अपराध नहीं रहा। अपितु नियोजक और नियोजन संस्थान में काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति अपराध किया है। आप का अपराध सामाजिक हो गया है, व्यक्तिगत नहीं रहा।
भज्जी का अपराध भी केवल श्रीशांत के विरुद्ध किया गया अपराध नहीं रहा। वह समूची क्रिकेट के प्रति किया गया अपराध है। क्रिकेट की संस्था जिस ने भज्जी को नियोजित किया है, क्रिकेट के सभी खिलाड़ियों के प्रति और सभी दर्शकों के प्रति चाहे वे मैदान पर हों या फिर टीवी पर मैच देख रहे हों अपराध किया है। उन का यह अपराध सामाजिक है। इसे समाज ही क्षमा कर सकता है। लेकिन यह संभव नहीं। जब समाज अपने प्रति अपराध को क्षमा कर देता है, तो वह समाज में अपराध को छूट दे देता है, समाज खुद अपराधी हो जाता है।
आप का सोचना क्या है?
दिनेश जी,आप ने विस्तार से इस बारे समझाया आप का बहुत बहुत ध्न्यवाद,
क्या तथाकथित मीडिया की अनुपस्थिति में भी यही सजा दी जाती?
क्या थप्पड़ मारना सहज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है?
क्या अपने ही परिवार/ समाज/ देश में की गयी ऐसी हरकत सजा के योग्य है, ‘बाहर’ की गयी नही?
आपके ब्लोग से बहूत सी जानकारीयां मीलती रहती है। जो मूझे पता भी नही होता वो आपसे मील जाता है।
आपने थप्पड मारने के उप्पर जो कानून बताया वो मूझे पता नही था बहुत काम की जानकारी।
आप कानून के बारे मे और अधीकारो के बारे मे ऎसे ही जानकारीयां देते रहीये जीससे जागरूक्ता फैले।
इस बार भज्जी को थप्पड़ बड़ा महंगा ( करोड़ों का )पड़ गया और इसकी तो भज्जी ने कल्पना ही नही की होगी क्यूंकि अभी तक तो वो बच ही जाता था।
सही फ़ैसला।
आई.पी.सी के तहद तो इस दम्भी को बुक ही नहीं किया गया। पुलीस IPC 323 में केस तो बनाये।
आजकल सोचना बंद करके लिखने और पढ़ने में दम साधे है/// यह सब आप देखिये. 🙂
हमारा तो यही मानना है- ऊंचे लोग ऊंची पसंद!
दिनेशजी
थप्पड़ मारना गुनाह भले न हो। लेकिन, करोड़ो की कमाई जब थप्पड़ से जुड़ी हो तो …