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भारतीय कानून के अनुसार अपराध बने बिना केवल रेड कॉर्नर नोटिस पर प्रत्यर्पण संभव नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय में कहा है कि किसी आरोपी का सिर्फ रेड कार्नर नोटिस या किसी विदेशी अदालत द्वारा जारी वारंट के आधार पर प्रत्यर्पण नहीं किया जा सकता। भावेश जयंती लखानी बनाम महाराष्ट्र सरकार के मुकदमे में कानूनी प्रावधानो और प्रत्यर्पण संधि को व्याख्यायित करते हुए यह कहा है कि किसी नागरिक का प्रत्यर्पण तभी किया जा सकता है जब संबंधित देश से औपचारिक अनुरोध किया गया हो और कथित अपराध भारतीय कानूनों के मुताबिक भी अपराध हो। ऐसा नहीं होने पर वह संविधान के अनुच्छेद 21 (स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होगा। प्रत्यर्पण कानून और किसी देश के साथ हुआ समझौता अपने देश के कानूनों के अनुरूप होना चाहिए। किसी समझौते का कार्यान्वयन कार्यपालिका के हाथों में है।

भावेश अमरीका में पढ़ने के लिए गया था। बाद में उस ने वहाँ नौकरी भी की। भावेश और हेतल की मुम्बई में शादी संपन्न हुई और दोनों अमरीका चले गए। इस शादी से उन के एक पुत्री उत्पन्न हुई। बाद में दोनों के सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे। हेतल भावेश को छोड़ कर अमरीका में रह रही अपनी  बहन के पास ही रहने चली गयी। वहाँ उस ने तलाक के लिए अर्जी दाखिल की और साथ ही पुत्री उस के संरक्षण में देने के लिए। अमरीकी अदालत ने पुत्री को पत्नी के संरक्षण में देने का अंतरिम आदेश दिया। इस बीच भावेश अपनी पुत्री के साथ भारत आ गया। उस का कहना था कि मुकदमे के बीच दोनों के संबंध अच्छे हो गए थे और हेतल उस के साथ रहने और भारत आने के लिए सहमति दे दी थी। वह उस की अनुमति से ही पुत्री को साथ ले कर भारत आया था जिस के लिए उस ने एक शपथ पत्र नोटेरी से प्रमाणित करवा कर दिया था। हेतल का कहना है कि यह शपथ पत्र फर्जी है। हेतल ने मुम्बई परिवार न्यायालय में आवेदन दिया। यहाँ भी पुत्री का संरक्षण हेतल को देने का आदेश दिया गया। इस बीच हेतल के आवेदन पर भावेश को पत्नी के संरक्षण से अपहृत कर ले जाने का अपराधिक मुकदमा दर्ज किया और इंटरपोल को उस का वारंट जारी कर दिया। इस वारंट के तहत सीबीआई भावेश को अमरीकी सरकार के समक्ष प्रत्यर्पण करना चाहती थी। भावेश ने परिवार न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध और प्रत्यर्पण करने के प्रयास के विरुद्ध याचिकाएँ उच्चन्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कीं जो खारिज हो गईं। भावेश ने तब सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

न्यायमूर्ति एसबी सिन्हा और न्यायमूर्ति मुकुंदकम शर्मा की खंडपीठ ने भावेश को राहत प्रदान करते हुए कहा कि ऐसे कार्यान्वयन देश के घरेलू कानूनों के अनुरूप होना चाहिए। प्रत्यर्पण संधि में विदेश से पहले उचित अनुरोध की बात कही गयी है। एक वैवाहिक विवाद मामले में भावेश जयंती लखानी की अपील को स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसे किसी अनुरोध के अभाव में कोई प्रक्रिया नहीं शुरू की जा सकती। लखानी ने सीबीआई के उस फैसले को चुनौती थी जिसमें अमेरिका की एक मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा रेड कार्नर नोटिस जारी किए जाने के आधार पर उसके प्रत्यर्पण का फैसला किया गया था। लखानी से अलग रह रही उसकी पत्नी हेतल जी ठक्कर न
े उस पर आरोप लगाया था कि भावेश अपनी बेटी का अपहरण कर भारत ले गया है। लखानी के मामले में अमेरिका की ओर से कोई औपचारिक अनुरोध नहीं किया गया है और एक विदेशी अदालत द्वारा जारी वारंट के आधार पर प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू की गयी। मुम्बई उच्च न्यायालय ने प्रत्यर्पण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद उसने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

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