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भीरुता त्यागें, साहस करें, और पति के अत्याचारों के विरुद्ध अपने हकों की लड़ाई खुद लड़ें

 
अनिता जी पूछती हैं____________

मेरी शादी को पूरे दो साल हो गये हैं। मेरा विवाह मेरे मायके के नगर में एक होटल में 200-250 बारातियों की मौजूदगी में हुआ।   अगली ही सुबह मेरे जेठ ने (जो निहायत ही शैतान प्रवृति के हैं और फौज में अफसर हैं) मेरे मुंह पर कपड़े फेंककर मारे जो मेरी माँ ने उनको उपहार में दिये थे।   कुछ रोज़ बाद मेरे साथ मारपीट शुरु हो गई।   मेरी सास सामने खड़े होकर मुझे पिटवाती रहीं।  फिर मेरी ननद की डिलावरी के लिये सास विदेश चली गईं और मेरे फौजी जेठ फोन पर मेरे पति को उकसाकर मुझे रोज़ पिटवाते रहे।  ना मुझे खाना खाने दिया जाता था ना फोन करने की इजाजत।  मुझे सब्जियों के छिलेक और एक्सपायरी डेट की दवाइयां खाने के लिये मजबूर किया जाता था।  मेरे पति ने शादी के पहले अपनी उम्र से लेकर अपनी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी-सेलेरी तक सब कुछ गलत बताई, शादी के दो महीने बाद ही नई शादी करने की जुगत में रहने लगे।  मुझे घर की पानी की टंकी से कूदकर खुदकुशी करने के लिये उकसाया जाता।  मेरी मां को फोन पर गाली दी जाती।   अगस्त 2007 में मेरा गला घोटकर मारने की कोशिश की गई।  पुलिस की मदद से मैं अपनी मां के घर आई और तब से आजतक ससुराल नहीं लौटी हूं।  मेरी मां ने तकरीबन दस लाख खर्च करके मेरी शादी की लेकिन मेरी सास, मेरे दो जेठों और विदेश में रहने वाली ननद को 5 लाख नकद, मेरी मां के मकान में हिस्सा और होंडा सिटी कार चाहिये। (जबकि मेरी मां ने ऑल्टो दी जो मेरे नाम से है और मेरे ससुराल वाले ही उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। मेरे मांगने पर भी वापस नहीं कर रहे हैं) मुझे घर से निकालने के बाद मेरे पति ने फेमिली कोर्ट में धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का मुकदमा किया है मुझ पर आरोप है  कि मैं सब-कुछ लेकर भाग गई हूं और बार-बार बुलाने पर भी आ नहीं रही हूं।  साल भर हो गया, फेमिली कोर्ट में मामला चलते।  मेरे पति बहाने बनाकर 3-4 तारीख पर गायब रहते हैं फिर एक पर आ जाते हैं।  मामला आगे बढ़ नहीं रहा, तारीख पर तारीख। जज साहिबा भी कुछ कहती नहीं हैं, अगली तारीख दे देती हैं।  मैं पति और उनके फौजी भाई की धमकियों से डरकर भाई के पास दूसरे प्रदेश में रह रही हूं।  मुझे बार-बार पेशी के लिए भागना पड़ता है।  पिछले साल मैंने अपने मायके के थाने में रिपोर्ट भी की लेकिन कुछ नहीं हुआ।  उल्टे मेरे पति ने मेरी बुजुर्ग मां और बाहर रह रहे भाई के खिलाफ उल्टी सीधी शिकायत कर दी।  मेरे पति और जेठ के भेजे गुंडे चाहे जब रात को आकर मेरी मां के साथ गालीगलौच कर घर पर पत्थर फेंक जाते हैं। मां डरकर दरवाजा नहीं खोलतीं, रोती रहती हैं।  मेरी वजह से उनका बुढापा भी खराब हो रहा है। पिता हैं नहीं, भाई भी जितना कर सकता है कर रहा है उसकी भी अपनी ज़िंदगी है अपना परिवार है।  अब मैं हार चुकी हूं और पति से तलाक लेकर ससुराल वालों को उनको किये की सज़ा दिलाना चाहती हूं। नई शादी का कोई इरादा नहीं है लेकिन एक जानवर जैसे इंसान से निजात पाकर कुछ दिन चैन की नींद सोना चाहती हूं।   क्या फेमिली कोर्ट का मामला मेरे भाई के निवास स्थान की अदालत में ट्रांसफर हो सकता है?  क्योंकि हर 10-12 दिन में मेरा वहाँ जाना संभव नहीं,  पैसा भी खर्च होता है और जान का भी डर बना रहता है।  मुझे ससुराल वालों को सज़ा दिलाने, अपना सामान वापस लेने और तलाक लेने के लिये क्या करना होगा क्योंकि मेरा ससुराल लौटना मुश्किल है? लौटने पर या तो वो मुझे मार डालेंगे या मैं खुदकुशी करने को मजबूर हो जाउंगी।  एक और समस्या, मेरे पति मुझे पर तलाक लेने के लिये अर्जी दाखिल करने का दबाव डाल रहे हैं।  फेमिली कोर्ट में जब भी मिलते हैं धमकाते हैं और कहते हैं मैं खुदकुशी कर लूंगा और सुसाइड नोट में तेरे सारे घरवालों के नाम लिख जाउंगा। मैं क्या करूं?

 उत्तर-

अनिता जी,

आप ने पूछा है कि क्या आप के पति द्वारा किया गया धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का प्रकरण जहाँ आप अपने भाई के साथ रहती हैं स्थानान्तरित किया जा सकता है? तो मेरा उत्तर हाँ में है।  आप एक दूसरे राज्य में निवास कर रही हैं।  इस कारण से आप को इस मुकदमे को स्थानान्तरित करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका प्रस्तुत करनी पड़ेगी।  इस याचिका में सभी परिस्थितियों का विवरण अंकित करना पड़ेगा जिन के आधार पर मुकदमे को स्थानान्तरित करना सुप्रीमकोर्ट उचित मान ले।  लेकिन इस काम के लिए आप को सुप्रीम कोर्ट का वकील करना पड़ेगा जो अपने आप में बहुत महँगा होगा।  मेरा मानना है कि इस मुकदमे को स्थानांतरित करवाने से आप की समस्या का हल नहीं निकलेगा।

आप चाहती हैं कि आप अपने पति से तलाक लें और आप को दहेज में प्राप्त स्त्री-धन भी आप को वापस मिले और आप को भरण पोषण के लिए एक मुश्त राशि मिले या जब तक आप पैरों पर खडी़ न  हो जाएँ अथवा दुबारा विवाह न कर लें तब तक आप को भरण पोषण राशि मिलती रहे।  आप .यह भी चाहती हैं कि आप के ससुराल वालों को उन के किए अपराधों की सजा भी मिले।

इस के लिए आप को भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए व 406 के अंतर्गत पुलिस थाने में अथवा अदालत में परिवाद प्रस्तुत कर दर्ज कराना होगा।  यह मुकदमा आप के मायके के नगर में जहाँ आप की ससुराल स्थित है वहीं दर्ज होगा और इस के लिए आप को वहीं जाना पड़ेगा।  इस के अलावा आप को तलाक लेने के लिए भी मुकदमा आप के मायके के नगर में ही करना पड़ेगा।   ये दोनों मुकदमे वहाँ दायर नहीं किए जा सकते जहाँ आप अपने भाई के साथ निवास कर रही हैं।  फिलहाल आप को प्रतिमाह भरण पोषणप्राप्त करने के लिए धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता का करना चाहिए।  यह मुकदमा भी वहीं होगा जहाँ आप के पति निवास करते हैं।  लेकिन इस का एक विकल्प यह है कि आप घरेलू हिंसा अधिनियम का मुकदमा है जो आप वहाँ कर सकती हैं जहाँ आप वर्तमान मे अपने भाई के साथ निवास कर रही हैं।  इस मुकदमे के माध्यम से आप मासिक भरण पोषण प्राप्त करने का आदेश अदालत से प्राप्त कर सकती हैं।

वास्तविकता यह है कि आप की समस्या को आप की निष्क्रीयता और आप के अंदर व्याप्त भय ने ही भयावह बना दिया है।  आप का मायका उसी नगर में है जहाँ आप पैदा हुई और पली बढ़ीं।  आप के मुहल्ले के लोग, आप के परिवार के मित्र, आप के खुद के मित्र और सहपाठी उसी नगर में बहुत बड़ी संख्या में हैं।  आप अपनी समस्या को लज्जा का विषय मान कर छुपाती रहीं और आप ने किसी से भी सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं किया।  ऐसा नहीं कि उस नगर में महिला संस्थाएँ भी नहीं हों जो आप की सहायता नहीं कर सकती हों।  आप यदि कोशिश करतीं तो आप आप अपनी माता जी के साथ उसी नगर में निवास करते हुए अपनी लड़ाई लड़ सकती थीं।  आप अब भी यह कर सकती हैं।  आप अपने मित्रों, पारिवारिक मित्रों, सहपाठियों को अपनी व्यथा बताएँ उन में से कुछ अवश्य ही सहृदयी, सामाजिक और साहसी होंगे जो आप की मदद कर सकते हैं। आप को यह भी पता करना चाहिए कि उस नगर में कौन सी महिला संस्थाएँ ऐसी हैं जो आप की मदद कर सकती हैं।  फिर आप उन में से तय कर सकती हैं कि किस के पास आप को मदद के लिए जाना चाहिए। यदि आप खुद ऐसी महिला संस्थाओं का पता नहीं कर सकती हैं तो हि्न्दी ब्लाग जगत में सक्रिय महिलाएँ आप की इस काम में मदद कर सकती हैं।  आप इस उत्तर को पढ़ने के बाद मुझे बता सकती हैं।  मैं आप की मदद करने के लिए उन्हें कह सकता हूँ।

मेरा सुझाव है कि आप हिम्मत करें, व्यर्थ की लज्जा को त्यागें और मदद प्राप्त करें।  तलाक प्राप्त करने के लिए, भरण पोषण के लिए, अपने स्त्री-धन की वापसी और क्रूरता तथा आप का स्त्री-धन दबा कर बैठ जाने के लिए आप के ससुराल वालों को दण्डित कराने के लिए सारी कार्यवाही आप अपने मायके के नगर में ही करें।  इस के बात भी आप को वहाँ परेशानी हो तो आप सभी मुकदमों को एक साथ अपने वर्तमान निवास स्थान अपने भाई के नगर में स्थानान्तरित करवाने की कार्यवाही कर सकती हैं।

आप को चाहिए कि आप सब से पहले तो घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत अपने वर्तमान निवास स्थान अपने भाई के नगर में अदालत में आवेदन प्रस्तुत करें।  उस में  आप के पति और ससुराल वालों के विरुद्ध नोटिस जारी हो जाने के उपरांत आप तलाक प्राप्त करने, अपने स्त्री-धन की वापसी और क्रूरता तथा आप का स्त्री-धन दबा कर बैठ जाने के लिए आप के ससुराल वालों को दण्डित कराने के लिए कार्यवाही अपने मायके के नगर में जा कर करें।  अन्यत्र यह कार्यवाहियाँ किया जाना कानून के अन्तर्गत संभव नहीं है।

वास्तविकता यह है कि आप के पति और आप के ससुराल वाले अपराधी हैं और अपराधी हमेशा कमजोर होता है।  उस के पैर कमजोर होते हैं।  यही कारण है कि उन्हों ने अपने अपराध को छुपाने की गरज से तुरत फुरत धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम की अर्जी अदालत में पेश कर दी।  आप किसी भी स्तर पर कमजोर नहीं हैं।  केवल आप की भीरु मानसिकता ने आप को कमजोर बना रखा है।  आप तुरंत अपनी भीरु मानसिकता से मुक्ति प्राप्त करें।   इस के बाद आप की समस्याएँ हल होना शुरू हो लेंगी।  खुद आप का कहना है कि आप आत्मह्त्या कर लेंगी।  इस तरह तो आप अपने पति और ससुराल वालों को उपहार प्रदान कर देंगी।  आप को इस तरह से सोचने की आवश्यकता नहीं है।  आप साहस बटोर कर अपनी लड़ाई खुद लड़ने की तैयारी कर लेंगी तो बहुत लोग हैं जो आप का साथ देने को तैयार हो जाएँगे।  आप अपनी लड़ाई भी जीतेंगी और अपना एक मजबूत अस्तित्व भी कायम करेंगी।

इस उत्तर को पढने के उपरांत कोई शंका हो तो तुरंत मुझे मेल करें।  आप को सहायता उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयत्न किया जाएगा।

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