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भ्रष्टाचार अनमाप अनियंत्रित

सुप्रीम कोर्ट ने कल  पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा आयकर निरीक्षक मोहनलाल शर्मा को बरी किए जाने को चुनौती देते हुए प्रस्तुत की गई सीबीआई की याचिका को स्वीकार करते हुए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं है। विशेष रूप से आयकर, बिक्रीकर और आबकारी विभाग में काफी भ्रष्टाचार व्याप्त है। पीठ ने व्यंग्य करते हए कहा कि सरकार भ्रष्टाचार को वैध क्यों नहीं कर देती ताकि हर मामले में एक राशि निश्चित कर दी जाए। ऐसा किया जाए कि यदि कोई व्यक्ति मामले को निपटाना चाहता है तो उससे ढाई हजार रुपये मांगे जा सकते हैं। इस तरह से हर आदमी को पता चल लाएगा कि उसे कितनी रिश्वत देनी है। अधिकारी को मोलभाव करने की जरूरत नहीं है और लोगों को भी पहले से ही पता होगा कि कि उन्हें बिना किसी फिक्र के क्या देना है। 

देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी देश में मौजूद वर्तमान तंत्र के चेहरे पर एक कालिख है जिसे चाहने पर भी साफ नहीं किया जा सकेगा। हो सकता है यह टिप्पणी न्यायालय के रिकॉर्ड का भाग न बने, लेकिन माध्यमों ने इसे स्थाई रूप से रिकॉर्ड का भाग बना दिया है।  इस टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जितने भी उपाय सरकार द्वारा आज तक किए गए हैं वे सिर्फ दिखावा मात्र हैं। उन से भ्रष्टाचार के दैत्य का बाल भी बांका नहीं हो सका है। हाँ दिखावे के नाम पर हर वर्ष कुछ व्यक्तियों को सजाएँ दी जाती हैं। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जो-जो भी उपाय किए गये वे सभी स्वयं भ्रष्टाचार की गंगा में स्नान करते दिखाई दिए। 
 
कोई तीस पैंतीस वर्ष पहले तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन-अभियान भी चले लेकिन उन की परिणति ने यह सिद्ध कर दिया कि मौजूदा व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचार का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता है। अब तो यदि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कोई जन-अभियान की आरंभ करता दिखाई पड़े तो लोग उस की मजाक उड़ाते हैं। खुद न्यायपालिका भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है, अपितु वहाँ भी इस की मात्रा में वृद्धि ही हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल सरकार पर ही नहीं समूची राजनीति और व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। यह संकेत दे रही है कि इस देश की मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर के एक नई व्यवस्था की स्थापना  आवश्यकता है। देखना यही है कि उस के लिए देश कब खुद को तैयार कर पाता है।
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