भ्रष्टाचार का पूल
|इन दिनों न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बातें माध्यमों पर आने लगी हैं। लेकिन माध्यमों से इतर भ्रष्टाचार के किस्से बहुत प्रचलित हैं। लेकिन मैं यहाँ किसी किस्से की बात नहीं करने जा रहा हूँ। मैं वह हकीकत बयान करने जा रहा हूँ जो खुद मेरी भुगती हुई है।
बात उन दिनों की है जब मैं एक यूनियन के बहुत सारे मुकदमों में एक साथ पैरवी कर रहा था। सारे मुकदमे यूनियन के एक निष्कासित पदाधिकारी ने किए थे, जिन पर यूनियन फंड के दुरुपयोग के आरोप थे। उन्हें यूनियन से निकाले जाने की खबर मिलते ही सब से पहला काम उन्हों ने यह किया था कि यूनियन का बहुत सारा रुपया यूनियन के बैंक खाते से एक तीसरे खाते में और उस तीसरे खाते से अपने खाते में हस्तांतरित कर लिया था। इसी धन के बल पर वे मुकदमे लड़े जा रहे थे। यूनियन के हर काम में अदालत के जरिए रोड़ा अटकाना उन का परम ध्येय बन चुका था और यूनियन का केन्द्रीय नेतृत्व उन से बहुत परेशान था। हर मामले में इन निष्कासित नेता को अदालत में सफलता मिलती थी। एक नया मुकदमा और दायर हुआ और यूनियन के किसी काम पर स्थगन का आदेश आ गया। मुझे यूनियन की ओर से कहा गया कि मैं अपील प्रस्तुत कर दूँ। मैं ने जिला जज के यहाँ अपील प्रस्तुत कर दी। जिला जज इस तरह की अपीलों को अपने अतिरिक्त जजों की अदालतों में स्थानान्तरित कर देता था।
दो दिन बाद यूनियन के सचिव मेरे पास आए और कहने लगे – इस निष्कासित नेता की इस जज से कुछ सैटिंग है हर बार अपने हक में आदेश करा लेता है और हम हाथ मलते रह जाते हैं। ऐसी ही कोई सैटिंग आप नहीं भिड़ा सकते क्या?
मैं ने कभी कोई काम इस तरह का नहीं किया था और न करने की इच्छा रखता था। यह बात मैं ने उन्हें बता दी। लेकिन मेरे मन में यह आया कि मुझे देखना तो चाहिए कि लोग ये सब काम कैसे करते हैं? मैं ने उन्हें कहा कि मैं कोई सूत्र तलाशता हूँ। मैं अपने एक परिचित को जानता था जो अतिरिक्त जिला जज थे। मैं ने उन से बात की तो वे कहने लगे कि मैं ने कभी इस तरह का काम नहीं किया लेकिन आप की खातिर जज साहब से बात करूंगा। मैं ने उन्हें कहा कि यदि वे जज साहब मान जाएँगे तो इस अपील को उन्हीं की कोर्ट में स्थानान्तरित करवा दूंगा।
दूसरे दिन वे सज्जन मेरे पास आए और बोले कि -जज साहब ने केस की फाइल की पूरी प्रतिलिपि देखने को मंगाई है। मैं ने उस केस की फाइल की प्रति करवा कर उन्हें दे दी। उन्हों ने जा कर इसे जज साहब को दे दिया।
तीन-चार दिन बाद वे सज्जन मुझे फिर मिले और कहने लगे -आप के सेवार्थी के हक में निर्णय हो जाएगा। बस आप को बीस हजार रुपए देने होंगे। मैं ने कहा- इतने तो बहुत होते हैं। तो कहने लगे – अतिरिक्त जिला जज इस से कम में काम थोड़े ही करेगा। मैं ने यही बात अपने सेवार्थी को बताई तो कहने लगे बड़ी रकम है वे अपनी जेब से तो दे नहीं सकते। यूनियन से लेंगे तो इस खर्च को कहाँ दिखाएँगे? वे इस मामले में अपने केन्द्रीय नेतृत्व से बात करेंगे। केन्द्रीय नेतृत्व से बात करने पर उन्हें झाड़ पड़ गई कि वे यूनियन को इस तरह बेईमानी कर के चलाना चाहते हैं तो अपना पद तुरंत छोड़ दें। उन्हों ने यह बात मुझे फोन पर कही और उस के बाद कई दिनों तक मेरे संपर्क में ही नहीं आए। इस बीच जिला जज ने अपील को एक अतिरिक्त जिला जज के यहाँ स्थानान्तरित कर दिया और उस अपील का निर्णय भी यूनियन के विरुद्ध और उस निष्कासित नेता के हक में हो गया। जिन जज साहब से मेरे परिचित ने बात की थी उन्हें ससम्मान सेवानिवृत्त हुए आठ बरस हो चुके हैं।
जिस समय मेरे मिलने वाले सज्जन ने बीस हजार देने की बात की थी, उस समय मैं ने उन से कहा था कि बात हो जाएगी तो फिर मैं उस केस को उन की अदालत में स्थानांतरित करवा दूंगा। तो वे कहने लगे कि इस की कोई आवश्यकता नहीं है। अपील किसी भी अतिरिक्त जज के यहाँ जाए आप का तो काम हो जाएगा।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह काम वह जज किसी भी जज की अदालत में कैसे करवा देगा?
या तो वह दूसरे जज से कहेगा और दूसरा जज उनकी बात मान लेगा, या फिर दोनों मिले हुए धन को आपस में बांट लेंगे, या फिर वहाँ सारे जजों ने आपस में मिल कर पूल बना रखा है और सामुहिक रूप से यह काम मिल-बांट कर कर रहे हैं?
इस के पहले और बाद में वकालतखाने में अनेक किस्से सुने हैं। कभी किसी मामले का सहभागी नहीं रहा और किस्सों की सचाई को परखा भी नहीं। इसलिए नहीं कह सकता कितने सच्चे हैं, और कितने झूठे? मगर यह जानता हूँ कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, लेकिन आटे में नमक बराबर जिस से किसी को कड़वा न लगे।
उस के बाद से बहुत पानी गंगा में बह चुका है। गंगा की सफाई पर उच्चतम न्यायालय निर्देश जारी कर चुकी है। लेकिन गंगा फिर भी पहले से अधिक मैली है। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की यह गंगा भी पहले से अवश्य ही अधिक मैली हुई होगी। जब 1978 में मैं वकालत के पेशे में आया था तो अनेक में से किसी किसी जज के लिए कहा जाता था कि वह बेईमान है। लेकिन आज अनेक में से कुछ जजों के लिए कहा जाता है कि वे ईमानदार हैं।
भ्रष्टाचार उन्मुलन हो यही कामना है आपका आलेख हमेशा की तरह बढिया रहा ..
-लावण्या
कृष्ण का कर्म औरोँ के लिये प्रेरक होता है, उसी तरह बड़ी अदालत का कु-आचरण औरों के लिये एक निर्देश बन जाता है। और अदालत की बेइमानी औरों को भ्रष्ट बनने के लिये वर्जनायें खोलती है।
इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार का उन्मूलन अधिक आवश्यक है।
आपने बड़ा सुन्दर लिखा। बहुत सूचना-प्रेरणा देने वाला।
न जाने क्यूँ, मेरा मन यह नहीं मानता कि आटे में नमक बराबर ही न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है।
आपकी सत्यनिष्ठा मुझ जैसे लोगों के लिए काफी प्रेरणादायक है। आभार।
द्विवेदी जी, विचार के लिए धन्यवाद। हम आपकी भावनाओं का कद्र करते है, मगर जरा सोचिए आप जिन आतंकियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने की वकालत कर रहे है, उन्होंने सरकार से कोई अपील तो नहीं की है ना, फिर इस तरह की बयानबाजी क्यों हो रहीं है। अगर सरकार या जामिया प्रशासन अभियुक्तों को कानूनी सहायता देने पर इतना ही गंभीर है तो फिर प्रो. सभरवाल की हत्या करने वाले अभियुक्त को कानूनी सहायता क्यू नहीं दी गई। क्यों कि वो वोटबैंक नहीं था? संविधान प्रदत अधिकारों की दुहाई देने वाले लोगों को सबके बारे में सोचना चाहिए। सिर्फ किसी कौम या वोटबैंक के लिए नही।
दिनेश जी,
यह बात सच है कि आटे में नमक के बराबर भ्रष्टाचार है अदालतों में। इसका मतलब मैं ये मानता हूं कि निचली अदालतों में ये ज्यादा है और हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में शायद नहीं। अगर ऐसा होता तो पिछले दिनों जो धनपशुओं के खिलाफ फैंसले आए हैं, वह नहीं आते।
ये कह सकते हैं कि देर है अंधेर नहीं। मैं तो कम से कम न्यायप्रणाली पर यकीन करता हूं। ये जानते हुए भी कि मेरे कई वकील दोस्त सिर्फ सेटिंग से जमानतें करवाते हैं। मुआवजे दिलवाते हैं।
सीधी सी बात हे, जहां इमानदारी होगी, वहा केस भी जल्दी सुलझे गे, बेईमानी होगी वहां छोटे से छोटा केस भी कई सालो तक चलेगा,जेसे हमारे सरकारी दफ़तरो का हाल हे,
अदालतों से मेरा भी काम पडा है । पढाई पूरी करने के ठीक बाद वाले दिनों में वकील की मुंशीगिरी भी की । लेकिन कोर्ट परिसर के रूखे (सिंथेटिक) मिजाज ने ऐसी घबराहट पैदा की कि भाग खडा हुआ । वह दुनिया अलग ही है और अलग ही हैं वहां के लोग ।
महोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख “”ज्यों की त्यों धर दीनी “”की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें
आजकल आप जो अपने अनुभव लिख रहे हैं इनको कहानी के समान आस्वादन के साथ पढा जा सकता है — एवं मैं वाकई में यही कर रहा हूँ.
लेकिन हर “कथा” के अंदर आप जिस “यथार्थ” को उजागर करते हैं वह अंदर तक कचोट जाता है. लेकिन निराश नहीं हूँ. उम्मीद है कि स्वर्णयुग जरूरा आयगा.
सस्नेह
— शास्त्री
— यदि कोई बात आपको बहुत कचोट रही है (जैसे अन्याय, विषमता, या लापरवाही) तो जरूर उस विषय पर चिट्ठालेखन करें. जम कर करें. हार न मानें. फल की चिंता न करें.
जब काफी लोग चेत जायेंगे, तब एक नये आंदोलन की नीव पड जायगी, लेकिन तब तक आपको सबर करना होगा. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
एक पुरानी कहावत है की बीमारी और मुकदमा इंसान को जीते जी मार देता है, ये एक ऐसा नासूर बन जाता है, जिस से किसी भी तरह छुटकारा मुमकिन नही, आज भी ये बात पूरी तरह सच है…आप यकीन नही मानेंगे, लेकिन जज के सामने उनके पेशकार लोगों से मनचाही तारीख के लिए मोलभाव करते हैं और पैसे लेते हैं…बहुत ही शानदार पोस्ट
इसको पढ़ कर तो लगता है की कभी किसी का अदालत से वास्ता ही न पड़े तो अच्छा …
Sthiti dukhad hai parantu ismen sachayee hai. nyaypalika men ab bhrastachar theek se ghush gaya hai. aapne theek kaha ki pahle kuchh bhrast judge hote the ab kuchh imandar hi hote hain, jyadatar bhrast hain. mukdamon ki halat to yahi hai. dusaron ka paisa hadap kar usi paise ke ek hisse se case ladte rahte hain aur ek hissa dekar jeet jate hain. parantu nyaypalika ke talab ko to gandi machhaliyon se door rakhne ki jarurat hai. sayad sting operation se hi yah kaam ho.
चार पहियो वाली गाडी का एक पहिया कितनी देर तक नही चलता ,चल पडा है धीरे-धीरे उस तरफ़,देर से चलना शुरु हुआ है इस्लिये रफ़्तार उतनी नही है।
पेशे से जुड़े हुए लोग कहने लगे हैं यह अच्छी बात है. वैसे भ्रष्टाचार में सबसे अग्रणी तो न्यायपालिका ही मानी जाती है फ़िर नंबर क्रमशः आता है पुलिस तथा आर टी ओ का. शुभकामनाओं सहित.
जो लोग गरीब और भुक्तभोगी हैं उनके दिल से पूछिए अदालत में क्या होता है ! बहुत अच्छा मार्गदर्शक उदाहरण दिया है!
दिनेशजी, न्यायतंत्र को नज़दीक से देखने के बावजूद और भ्रष्टाचार का प्रमाण मिलने के बावजूद आप उसे आटे में नमक के बराबर ही बता रहे हैं ?
वो कहते हैं ना कि भले आदमी का अस्पताल और अदालत से वास्ता न ही पडे तो अच्छा ।
मगर यह जानता हूँ कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, लेकिन आटे में नमक बराबर जिस से किसी को कड़वा न लगे।
आप सही कह रहे हैं ! पर जिनका भी कोर्ट कचहरी का काम पडा है वो तो सब जानते ही हैं! और दोनों ही तरह के लोग
इसमे हैं ! पर ये दुर्भाग्य ही है की इस क्षेत्र को भी इस बुराई ने नही छोडा ! भले ही प्रतिशत कुछ भी हो ! शुभकामनाएं !
mujhe aashchrya nahi huaa..maine peshkaron ko jaj ke samne moti rakam ghus me lete huye dekha hai manchahi tarikh dene ke liye.yahi to hamare desh ki pahchan hai.