यह शोक का वक्त नहीं, हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं
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यह शोक का वक्त नहीं, हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं
- दिनेशराय द्विवेदी
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए
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17 Comments
I’d have to be of the same mind with you here. Which is not something I usually do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
humongous entry you’ve latch on to
सशक्त अभिव्यक्ति,स्वस्थ प्रतिक्रिया, अंतर्मन का दर्द. आपने हमारे दिल के दर्द को वाणी दी है, रहनुमाई की है.
-मंसूर अली हाशमी
अवसन्न हूँ।
आपकी यह कविता आपके नाम के साथ आज याहूसमूह हिन्दी-भारत
( http://groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/ )
पर भेजी है।
आदरणीय द्विवेदी जी /सही कहा आपने वास्तव में ये एक कविता नहीं है और वास्तव में ही हर चौराहे पर चपकने लायक है /यह आपकी कविता नहीं वर्तमान के रणक्षेत्र की गीता है /इस कविता को मैं कहा सकता हूँ “अक्षर अक्षर गीता ,कविता बनी पुनीता “”इस टिप्पणी के रूप में , मैं संजय जैन और ब्रिज मोहन श्रीवास्तव मिल कर निवेदन कर रहे हैं /
ॐ शान्तिः।
कोई शब्द नहीं हैं…।
बस…।
हार्दिक श्रद्धांजली मेरे उन शहीद भाईयो के लिये जो हमारी ओर हमारे देश की आबरु की रक्षा करते शहीद हो गये।लेकिन मन मै नफ़रत ओर गुस्सा अपनी निकाम्मी सरकार के लिये
अब तो हद ही हो गयी। कुछ क्रान्तिकारी कदम उठाना चाहिए। कुछ भी…।
अब समय आ गया है कि देश का प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को, राष्ट्रपति लालकृ्ष्ण आडवाणी को, रक्षामन्त्री कर्नल पुरोहित को, और गृहमन्त्री साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बना दिया जाय। सोनिया,मनमोहन,शिवराज पाटिल,और प्रतिभा पाटिल को अफजल गुरू व बम्बई में पकड़े गये आतंकवादियों के साथ एक ही बैरक में तिहाड़ की कालकोठरी में बन्द कर देना चाहिए। अच्छी दोस्ती निभेगी इनकी।
इनपर रासुका भी लगा दे तो कम ही है।
अमरीकाके राष्ट्रपति बुश से यहँ की जनता भी नाराज है परँतु एक ही सही काम किया उन्होँने और वह था आतँकवाद को
धिक्कारने का ! अब भी ना चेते भारतवासी तो कब ? हरेक नागरिक को मुँबई पर हमले को निजी हमला है ये जान कर
प्रतिकार, सामना और सामूहिक और सबल प्रयास करना जरुरी है – जिनकी जानेँ गईँ ईश्वर उनके परिवार को शक्ति देँ –
बेबस ना होँ अपने अपने सरकारी सचिव से मिलेँ और उन से
अपना रोष व्यक्त करेँ – ये वही लोग हैँ जो अपनी स्कुल जाती बेटीयोँ के मुँह पर तेजाब फेँकते हैँ :-(((
और अनगिनत निर्दोष व्यक्तियोँ की जान लेने रोज नये प्लान बनाते हैँ और बम, ए.के. ४७ राईफल का भारत मेँ जमकर प्रयोग करते हैँ — भारत की शाँति, सफलता और बढता उन्नत भविष्य इन्हेँ नापसँद है –
– लावण्या
सभी एक सुर में तो कह रहें हैं कि यह युद्ध है.. मगर जब सच में एकजुट होने का मौका आयेगा तो अधिकतर लोग खिसक लेंगे..
आप विलकुल ठीक कहते हैं
रामधारी सिंह दिनकर ने परशुराम की प्रतिक्षा में लिखा है
समर शेष है नहीं हिंस्त्र का दोषी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
this is not the time for a शोक
why are some bloggers encouraging this so much?
they have to participate in a natural anger.
सबकी एक ही चिंता है ! इस संगीन घड़ी में होश नही खो देना चाहिए ! पहले के आतंकवादी हमलो और आज के हमलो में जमीन आसमान का फर्क है ! हम पर बार बार आंतकवादी हमले होते हैं , चार दिन बाद हम भूल जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही ना हो ! अगर हमें इज्जत से जीना है तो हमारे आकाओं को “राष्ट्रपति बुश” जैसे ही सख्त कदम उठाने होंगे ! जैसा की माननीया लावण्या जी ने भी इंगित किया है ! और इसमे कई लोगो को अडचन भी खड़ी होगी ! हो सकता है मेरी टिपणी यहाँ आज के माहौल में अतिशयोक्ति पूर्ण लगे ! पर आप यकीन रखिये हम चार दिन बाद ही इस आंतकवादी हमले या युद्ध को भी भूल जाने वाले हैं ! और फ़िर जब नया हमला होगा तब फ़िर यही सब दोहराया जायेगा !
चित्र लगा कर हम अपनी एक जुटता का परिचय दे रहे हैं , ये शोक हैं आक्रोश हैं , हम एक जुट होगे तभी बदल सकेगे
बिल्कुल सही कह रहे हैं । यह युद्ध है हर भारतीय का
बिल्कुल सही
अब
आईये हम सब मिलकर विलाप करें
बिल्कुल सही कह रहे हैं । यह युद्ध है और सैनिकों का नहीं हर भारतीय का युद्ध है ।
घुघूती बासूती