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लिव-इन-रिलेशन के अपराध होने, न होने पर एक निरर्थक बहस

मंगलवार को मीडिया में जब यह खबर आई कि “सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्ण पीठ ने यह कहा है कि वयस्क स्त्री-पुरुष यदि साथ रहते हैं और यौन संबंध स्थापित करते हैं तो यह अपराध नहीं है,” तो इस पर देश भर में एक तूफान उठ खड़ा हुआ है। इस निर्णय की निंदा की जा रही है। इस मामले में राधा-कृष्ण का उल्लेख किए जाने पर भी लोगों को घोर आपत्ति है। राजस्थान के समाचार पत्र ‘राजस्थान पत्रिका’ ने तो इस पर एक सर्वेक्षण भी कल के संस्करण प्रस्तुत किया है। इंदौर उच्च न्यायालय में तो कुछ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध एक रिट याचिका भी प्रस्तुत की गई है। यह भी कहा जा रहा है कि इस मामले में ‘राधा-कृष्ण’ के उल्लेख पर तो सु्प्रीम कोर्ट को क्षमा मांगते हुए अपने कथन को वापस ले लेना चाहिए।
मेरे पास शाम को एक सज्जन का फोन आया। ये सज्जन अक्सर लोगों को गीता की प्रतियाँ भेंट करते हैं। वे कहने लगे कि यह तो जगत विख्यात है कि कृष्ण 12 वर्ष की आयु में गोकुल से मथुरा चले गए थे और फिर वापस लौट कर नहीं आए। यदि उन का राधा के साथ प्रेम था भी तो वह बाल्यावस्था का प्रेम था और उसे तो किशोर प्रेम भी नहीं कहा जा सकता। फिर कहीं भी किसी भी पौराणिक आख्यान में यह नहीं है कि राधा कृष्ण साथ रहे हों। वे अपने-अपने घरों पर रहते थे। यह अवश्य है कि वे आपस में मिलते थे। ये सज्जन कहने लगे कि मैं मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखना चाहता हूँ कि आप को तो कृष्ण के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है और गीता भेंट करना चाहता हूँ। मैं ने उन्हें कहा कि आप की बात सच हो सकती है लेकिन राधा-कृष्ण के जितने चित्र गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित ग्रंथों और चित्रावलियों में प्रकाशित हुए हैं उन में से 80 प्रतिशत से अधिक में  राधा-कृष्ण को वयस्क प्रदर्शित किया गया है उस पर तो कोई आपत्ति नहीं करता।

ब से मैं ने यह समाचार और इस पर प्रतिक्रियाएँ जानी हैं, मैं सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तलाश कर रहा हूँ। आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय उसी दिन अथवा अगले दिन इंटरनेट पर अपलोड हो जाते हैं। लेकिन 23 मार्च से आज तक भी यह निर्णय इंटरनेट पर अपलोड नहीं हुआ है। आज जब मैं ने इंटरनेट पर इस से संबंधित सामग्री सर्च की तो आईबीएन खबर का समाचार पढ़ने को मिला। जिस में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह बात सुनवाई के दौरान कही है और निर्णय सुरक्षित रखा गया है। इस का सीधा अर्थ .यह है कि निर्णय अभी दिया ही नहीं गया है और मीडिया में जो खबरें निकल कर सामने आई हैं वे सब सम्वाददाताओं द्वारा दी गई खबरें हैं। यह हो सकता है कि कोई सम्वाददाता स्वयं सुनवाई के समय न्यायालय में उपस्थित रहा हो हालांकि इस की संभावना कम है। इस तरह यह समाचार जो लोगों के सामने आया है या तो पक्षकारों द्वारा या फिर उन के वकीलों द्वारा जो कुछ सम्वाददाताओं को कहा है उन पर आधारित है। जब सारी बात मौखिक है तो यह सुनिश्चित करना भी कठिन है कि सु्प्रीम कोर्ट ने सुनवाई के समय क्या कहा था और किस संदर्भ में राधा-कृष्ण का उल्लेख किया था।निश्चित रूप से इस तरह के समाचार पर बवाल उठ खड
़ा होना अत्यंत खेद जनक है। मुझे तो लगता है कि हमारा मीडिया न्यायालयों के समाचार प्रकाशित करने में बहुत उतावला है और अक्सर इस तरह के मामलों में समाचार प्रकाशित कर सनसनी पैदा करता रहता है। मेरा तो मत है कि किसी मामले पर जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना निर्णय जारी नहीं कर देती है माध्यमों को संयम बरतते हुए इस तरह के समाचारों का प्रकाशन नहीं करना चाहिए।  यदि न्यायाधीशों ने राधा-कृष्ण के संबंद में कोई आपत्तिजनक बात खुली अदालत में कही है तो वह उन की भी गलती है। उन्हें भी समझना चाहिए कि जब वे न्यायाधीश की पीठ पर आसीन होते हैं तो उन  के बोले हुए एक-एक शब्द पर पूरे समाज, देश और दुनिया की निगाह रहती है। उन्हें कुछ भी कहने के पहले अपने कहे हुए के असर के बारे में ध्यान रखना चाहिए। आखिर भारत एक जनतांत्रिक देश है।

हाँ तक लिव-इन-रिलेशन का मामला है तो हमारा कानून किसी भी वयस्क स्त्री-पुरुष के यदि वे अविवाहित हैं या उन के विवाहित जीवन-साथी जीवित नहीं रहे हैं, या उन का तलाक हो चुका है, या  सात वर्ष से विवाहित जीवन-साथी लापता हैं, तो उन के साथ रहने और सहमति से यौन संबंध बनाने को अपराध घोषित नहीं करता।  अदालतें केवल कानून की व्याख्या करती हैं। कोई कानून यदि संविधान के विरुद्ध हो तो उसे अवैध घोषित करती हैं। वे कानून की निर्मात्री नहीं हैं। किसी भी कानून को बनाना, उसे निरसित करना और संविधान में संशोधन करना संसद, विधानसभाओं और राष्ट्रपति का काम है। यदि किसी कृत्य और अकृत्य को अपराध की श्रेणी में रखे जाने का कोई कानून नहीं है तो इस का दोष न्यायपालिका या न्यायाधीशों का नहीं है। वे तो वही अभिव्यक्त कर सकते हैं जो कि कानून में लिखा है। मेरे विचार में सारी बहस निरर्थक है, जिसे मीडिया ने सनसनी पैदा करने और अपने उत्पादन को बिकाऊ बनाने के लिए खड़ा किया है।   लोग अपने-अपने महत्व को स्थापित करने के लिए इस बहस को हवा दे रहे हैं।

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