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वकालत के पेशे में आने वाले लोग : वकील और कानून-व्यवस्था (2)

वकील एक पेशेवर (professional) समुदाय तो है,  लेकिन उन्हें आर्थिक एक वर्ग नहीं कहा जा सकता।  वकीलों में ऐसे लोग मिलेंगे जो देश के सब से बड़े व्यक्तिगत आयकर दाता रहे हैं और ऐसे भी जो आयकर देना तो छोड़ सारे जीवन आयकर सीमा को छूने का प्रयत्न करते रहते हैं लेकिन उसे कभी छू नहीं पाते।  जिन पेशों को तीन दशक पहले सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उनमें वकालत, चिकित्सा, इंजिनियरिंग, अध्यापन आदि सम्मिलित थे। लेकिन चिकित्सा, इंजिनियरिंग, अध्यापन जैसे पेशों में पेशेवर अध्ययन के लिए प्रवेश परीक्षा आरंभ हो गई।  लेकिन वकालत के पेशे के लिए इस तरह की कोई रुकावट नहीं रही।  नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत लोगों ने विधि-स्नातक होना एक मार्ग के रुप में चुना।  पहले इस पेशे में आने के लिए किसी वरिष्ठ वकील के पास प्रशिक्षण लेना और इस का प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य था।  इस से कम से कम एक वर्ष किसी वरिष्ठ वकील के कार्यालय में रह कर एक व्यक्ति इस पेशे से संबंधित आचार की शिक्षा प्राप्त करता था और बहुत से परंपरागत गुण सीखता था। लेकिन जब से विधि की प्रोफेशनल डिग्री का प्रचलन हुआ। यह अनिवार्यता समाप्त हो गई और विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत कोई भी बार काऊंसिल में अपना पंजीकरण करवा कर सीधे वकालत आरंभ कर सकता है।  इस का नतीजा यह हुआ कि वकालत के पेशे में पेशेवर आचार-संहिता के ज्ञान और अभ्यास से हीन व्यक्तियों का प्रवेश संभव हो गया। आज इस पेशे में इस तरह के लोगों की संख्या अस्सी प्रतिशत से कम नहीं है।

वकीलों के लिए जो तीन वर्षीय पाठ्यक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों ने तय किया है, उस में पेशेवर आचार संहिता की पढ़ाई शामिल नहीं है।  वकीलों को किस तरह की यूनिफॉर्म पहननी चाहिए और उस का महत्व क्या है? यह तक उस में शामिल नहीं है।  इस की जानकारी वह या तो पुराने वकीलों से पूछ कर करता है या उसे बार काऊंसिल नियम पढ़ने से यह जानकारी हो पाती है।  वकीलों का उन के मुवक्किलों के साथ क्या व्यवहार होना चाहिए? उन्हें मुवक्किलों के धन का किस तरह हिसाब रखना चाहिए? उन का न्यायालय में क्या व्यवहार होना चाहिए? यहाँ तक कि एक न्यायालय में उन की स्थिति न्यायालय के एक अधिकारी की है, इस का तक ज्ञान नहीं होता है।  वकील का काम किसी मुवक्किल की विधि से संबंधित समस्या के हल के लिए सुझाव देना और उसे कार्यरूप में परिणत कर उस की समस्या के हल के लिए आगे बढ़ना है।  जब भी कोई मुवक्किल किसी वकील से संपर्क कर अपनी समस्या सामने रखता है, तो सब से पहला काम वकील का यह है कि उस समस्या के हल के लिए उचित उपाय खोजे, अपनी परियोजना मुवक्किल को सुझाए।  मुवक्किल द्वारा सहमति दे देने पर उस परियोजना पर काम करे।  इस के लिए यह आवश्यक है कि किसी वकील को विधिक उपायों की जानकारी हो।  जब मैं वकालत का अध्ययन कर रहा था तब विधि के पाठ्यक्रम में एक विषय विधिक उपायों का भी होता था।  अभी हाल में जब कोटा विश्वविद्यालय बनने के बाद जब वहाँ विधि पाठ्यक्रम बनाया गया तो पता लगा उन में विधिक उपायों का कोई विषय है ही नहीं। अधिकांश विश्वविद्यालयों से यह विषय पाठ्यक्रम से नदारद है।  ऐसे में एक नया वकील विधिक उपायों को अभ्यास से सीखता है।  प्रारंभ में वह अनेक मुवक्किलों को गलत उपायों के मार्ग पर डाल देता है।  उस का हाल उस कहावत जैसा है, “सीखे बेटा ना

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