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वकील भी इंन्सान ही होते हैं

  •  वकील इन्सान नहीं होते.
  • वकील अगर यह जानता है कि मुवक्किल गुनहगार है तो वह मुवक्किल को अपने गुनाह को समझने और मिलने वाली सजा को स्वीकार करने में मदद करे. लेकिन पैसे के लालच में या शायद किसी और कारण से ज्यादातर वकील ऐसा नहीं करता.
  • याद रखिये कानून का काम बेगुनाहों कि हिफाजत है, और वकील का भी.
  • जबकि वकील जान चुका है कि उसका “क्लाइंट” कितना गिरा हुआ इंसान है और देश के विरुद्ध षडयन्त्र करने और उसे तोड़ने में लगा हुआ है, तब उसे “पेशे के प्रति ईमानदारी” और “देशप्रेम” के बीच में किस बात का चुनाव करना चाहिये?
  • वकीलों का काम तो हर हालत में मुवक्किकों का साथ देना होता है, न मानो तो दिल्ली के आर के आनन्द के कर्म देखो। वकीलों की बात चली है तो बतादें कि पब्लिक प्रासीक्यूटर निकम को दिल्ली के बीएमडब्ल्यू वाले आई. यू. खान नसीहत लेकर कसाब का साथ ही देना चाहिये।
  • “पेशे के प्रति ईमानदारी” का मतलब मुवक्किल का साथ नहीं बल्कि न्याय का साथ देना होता है,
  • रोजी-रोटी और परिवार चलानें के लिए वकालत से ज्यादा घटिया पेशा और कोई नहीं। जहाँ सच को साबित करनें के लिए भी कई बार झूँठ गढ़्नें पड़ते हैं, झूठ को सच बनानें के लिए कितनें झूठ गढ़ने पड़्ते है इसका अनुमान ही किया जा सकता है। वकील को न्याय का साथ देंना चाहिये न कि मुवक्किल का। सत्य और तथ्य में जमीन आसमान का अन्तर होता है। तथ्य को सत्य बनानें में ही वकील झुठ गढ़ता है और जितना बढ़िया कारीगर उतना सफल वकील।
  • न्याय का ‘होना’ जितना जरूरी है उतना ही जरूरी न्याय होता ‘दिखना’ भी है। दुर्भाग्य से ऐसा होता दिख नहीं रहा है।
  • ये सारी बातें इस लिए हो रही हैं क्योंकि आम आदमी का वर्त्तमान कानून व्यवस्था से विश्वास उठ गया है , “justice delayed is justice denied” का मूलमंत्र तो शायद अब किसी को याद भी नहीं आता.
  • वकील न्याय व्यवस्था की लचरता से हानी उठा रहे हैं? किस तरह जरा समझाना? तारीख पे तारीख लेकर मुकदमे लटकाकर वो वादी और प्रतिवादी दोनों से जिस तरह नोट कूट रहे हैं इसके कई उदाहरण मैंने देखें हैं। दोषी व्यक्ति इंसाफ के डर से कहता है वकील से कि भाई तारीख ले लो और वकील कभी उसे अस्पताल भेज देता है कभी खुद बीमार पड़ जाता है और किसी न किसी बहाने तारीख लेता जाता है। वकील लोगों ने कानून की लचरता को नावांपीटी का जबर्दस्त जरिया बनाया है इसलिये वह नहीं चाहते की व्यवस्था सुधरे। जहां सुधरने की कोशिश होती है वकील हड़ताली बन जाते हैं।

ये विचार ब्लागिंग  कर रहे समझदार लोगों के हैं,  जो एक आलेख पर मेरी टिप्पणी पर छिड़ी बहस का परिणाम हैं।  ये विचार कोई अनपढ़ और नासमझ लोगों के नहीं हैं।  तरह के विचार मुझे पहली बार ही सुनने को नहीं मिले हैं।  तीस वर्षों की वकालत में बहुत लोगों ने इस तरह के विचार प्रकट किए हैं।  लेकिन वे कुछ खास वकीलों के प्रति थे।  यहाँ ये वकीलों की संपूर्ण बिरादरी के प्रति व्यक्त किए गए हैं।  विचारों की यह अभिव्यक्ति वास्तव में एक बैरोमीटर की तरह है, जो इस बात की द्योतक है कि इस पेशे को शीघ्र ही बड़े तूफान का सामना करना पड़ सकता है।

निश्चित रूप से लोगों के ये विचार किसी एक घटना या कुछ घटनाओं पर आधारित नहीं हैं।  ये विचार भी लोगों के सतत अनुभवों का परिणाम हैं, जो वकीलों के आचरण और व्यवहार के आधार पर लोगों ने बनाए हैं।   मेरे जीवन का अर्धांश से अधिक वकालत के पेशे में वकीलों के बीच गुजरा है।  मैं आज
भी पाता हूँ कि बेईमान वकीलों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है।  अधिकांश अपने पेशे के प्रति ईमानदारी रखते हैं।  लेकिन ईमानदार वकील शान्तिपूर्ण तरीके से अपनी वकालत करते हैं, राजनीति नहीं करते।  एक ईमानदार वकील के पास इतना भी समय नहीं कि वह अपने सामाजिक दायित्वों को ठीक से निभा सके।  फिर उसे इन सब में सर खपाने के लिए कहाँ समय है?  वह अपने मुवक्किलों से संतुष्ट है, जो उसे पूरा सम्मान देते हैं।  लेकिन वकालत के पेशे की गिरती प्रतिष्ठा से वह दुखी भी है कि उन के ही कुछ हमपेशाओं के कारण पूरे व्यवसाय की प्रतिष्ठा नष्ट हो रही है।   इस का कारण है कि वकील अपने पेशे को बदनाम करने वाले इन हमपेशा लोगों के प्रति सख्त नहीं हैं।

उक्त टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि वह वक्त आ गया है जब ईमानदार वकीलों को एक जुट हो कर आगे आना चाहिए।  वकालत के पेशे को बदनाम करने वाले हमपेशा लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए।  ऐसे लोगों के विरुद्ध तुरंत सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।  ऐसा नहीं कि वकील ऐसे मामलों में कार्यवाही नहीं करते।  मेरी अपनी अभिभाषक परिषद ने इस तरह की कार्यवाहियाँ की हैं और ऐसे वकीलों को दंडित किया है।  लेकिन जितनी कार्यवाहियाँ हो रही हैं वे बहुत कम हैं।  वास्तविक होते हुए भी लगता है कि वे इस लिए की जा रही हैं कि किसी मामले विशेष में पानी सर से ऊपर गुजर जाने के कारण की गई हैं।   वकीलों को अपने समुदाय में से गन्दगी को खुद ही साफ करना होगा।  वरना वह दिन दूर नहीं जब पूरा वकील समुदाय जनता का आक्रोश झेलेगा।

जहाँ तक मुकदमों के निर्णय में देरी का प्रश्न है।  उस का एक मात्र कारण अदालतों का अत्यधिक अभाव है।  अदालतों का अभाव दूर हो तो बहुत सी समस्याएँ अपने आप दूर हो लेंगी, क्यों कि उन समस्याओं के लिए स्थान ही शेष नहीं रहेगा।  जब एक अदालत के पास उस की क्षमता से चार से आठ गुना तक मुकदमे हों।  अदालतों को क्षमता के पांच गुना मुकदमे रोज सुनवाई के लिए सूची में डालने पड़ रहे हों।  तब तीन चौथाई मुकदमों में तो अदालत को पेशी बदलनी ही है।  इस से सब तरह की बुराइयों के लिए जो स्थान मिलता है, उस में वे बुराइयाँ पनपती हैं।  जब जज हर मुकदमें महीने में दो बार सुनवाई के लिए मजबूर हो जाए।   तो फिर अदालतों में तरह तरह की कारगुजारियों के लिए स्थान ही कहाँ रहेगा? वकीलों का सब से बड़ा दोष यदि कोई है, तो वह यह कि अदालतों की कमी को वह महसूस ही नहीं करता है,  करता है तो उस के लिए कभी बात नहीं करता।  बात करता है तो वह केवल बात करता है,  उस के लिए कार्यवाही नहीं करता।  यदि केवल अदालतों की संख्या बढा़ने के लिए देश का वकील समुदाय एक हो ले और आंदोलन की राह पर आ जाए, तो सरकारों को यह करने को मजबूर होना पड़ेगा।   वकीलों के लिए अपने पेशे का सम्मान फिर से पाने का एक यही मार्ग शेष है।  वकीलों को एक दिन यह तो करना ही पड़ेगा।  या तो वे आसन्न खतरे को समझ कर खुद इस राह पर आगे बढ़ जाएँ। वरना जनता उन्हें यह करने पर मजबूर कर देगी।  लेकिन फिर वकीलों को अपनी प्रतिष्ठा को फिर से हासिल कर पाना और दुष्कर हो जाएगा।

देव और दानव किताबों में खूब मिलते हैं।  लेकिन पृथ्वी पर उन के अस्तित्व का आज तक कोई प्रमाण नहीं है।  निश्चित रूप से जिन लोगों का
देव और दानवों के रूप में वर्णन किया गया है, वे भी इन्सान ही थे।  मैं अन्त में यह कहना चाहता हूँ कि वकील  देव और दानव में से कुछ भी नहीं, वे भी इन्सान ही हैं।

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