वारंट मामले में अभियुक्त को समन्स या वारंट से तलब करना न्यायालय का विवेक है।
|पिंकी कुमारी ने बिहार से पूछा है-
मैं एक अनुसूचित जाति की लड़की हूँ और मैं बिहार सरकार की एक सोसायटी में काम करती हूँ। मैंने अपने वरिष्ठ पदाधिकारी की प्रताड़ना से तंग आकर वरिष्ठ पदाधिकारी के विरुद्ध न्यायालय में परिवाद पत्र दायर किया था। जिस पर न्यायालय ने प्रसंज्ञान लेते हुए धारा 3(1) (x) अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सम्मन जारी किया है जिस में आरोपित को दो महीने बाद उपस्थित होना है। क्या इस बीच आरोपित व्यक्ति की गिरफ़्तारी हो सकती है।
समाधान-
किसी भी मामले में न्यायालय द्वारा प्रसंज्ञान लिए जाने के उपरान्त अभियुक्त को न्यायालय में लाने के लिए प्रोसेस धारा 204 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत जारी किया जाता है। यदि मामला समन्स केस का हो तो न्यायालय अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष लाने के लिए समन्स जारी कर सकता है। लेकिन यदि मामला वारंट केस का हो तो न्यायालय उस मामले में अपने विवेक से समन्स या वारंट दोनों में से कोई एक तरीका अभियुक्त को कोर्ट के समक्ष लाए जाने हेतु अपना सकता है।
आप के मामले नें न्यायालय ने समन्स से अभियुक्त को बुलाना उचित समझा है। इस कारण इस मामले में अभी वारंट जारी होना या गिरफ्तारी संभव नहीं है। यदि अभियुक्त समन्स तामील होने पर भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो आप न्यायालय से आग्रह कर सकती हैं कि गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाए। न्यायालय मामले में वारंट जारी कर सकता है और पुलिस अभियुक्त को गिरफ्तार कर के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है।
इस मामले में न्यायालय ने समन्स जारी किए हैं इस कारण अगली बार भी गिरफ्तारी के स्थान पर जमानती वारंट ही जारी किए जाने की संभावना है।
मेरा एक रिश्तेदार मेरे ऊपर फर्जी ४१९ 420 ५०४ ५०६ का मुकदमा किया है जानकारी होने पर मैंने अपने अधिवक्ता से संपर्क किया । तो पता चला फाइल में तारिक लगी है , जो तलबी बहस होने की है । इसका क्या अर्थ हुआ कृपया बताएं । और क्या फर्जी मुकदमा करने वाले के ऊपर कोई कार्यवाही करवा सकते हैं