विधि शिक्षा के नियंत्रण को ले कर बार कौंसिल और केन्द्र सरकार के बीच टकराव संभव
|देशी विदेशी पूंजीपतियों को देश की जनतांत्रिक संस्थाओं की गतिविधियाँ अब रास नहीं आ रही है, जिस के कारण उन के हितों के लिए काम करने वाली केंद्र और राज्य सरकारें इन संस्थाओं के पर कतरने की तैयारी में हैं। वकीलों की जनतांत्रिक संस्था बार कौंसिल ऑफ इंडिया अभी तक देश में कानून की शिक्षा को नियंत्रित करती आ रही है। प्रत्येक राज्य के वकील, जिन्हें बार कौंसिल ने वकालत का अधिकार प्रदान किया हुआ है, पाँच वर्ष के लिए अपने-अपने राज्य की बार कौंसिल के लिए मतदान के माध्यम से सदस्यों का चुनाव करते हैं। राज्यों की बार कौंसिलों के यही चुने हुए सदस्य अपने बीच से बार कौंसिल ऑफ इंडिया के लिए सदस्यों का चुनाव करते हैं। इस तरह बार कौंसिल ऑफ इंडिया एक जनतांत्रिक संस्था है। कानून के अनुसार उसे देश में विधि शिक्षा को नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन अब केंद्र सरकार विधि शिक्षा का नियंत्रण एक जनतांत्रिक संस्था से छीन कर अपने अधिकार में लेना चाहती है।
केन्द्रीय विधि मंत्रालय मानव संसाधन विकास और दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के उस निर्णय को मंजूरी दे चुका है जिस के अनुसार देश में विधि शिक्षा को नियंत्रित करने की शक्तियाँ बार कौंसिल ऑफ इंडिया से छीन ली जाएँगी। अब केन्द्रीय विधि मंत्रालयविधि शिक्षा और शोध के लिए एक राष्ट्रीय समिति का गठन किए जाने पर विचार कर रहा है जिस में मशहूर शिक्षाविद और विधि के पर्याप्त विशेषज्ञता प्राप्त तथा प्रोफेशनल अनुभव प्राप्त वरिष्ठ प्रोफेसर सम्मिलित किए जाने की योजना है। सरकार के अनुसार इस का लक्ष्य विधि शिक्षा के स्तर ऊँचा उठाना है। बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने सरकार की इस योजना को पूरी तरह से खारिज करते हुए इस का विरोध करते हुए कहा है कि इस के लिए सरकार को एडवोकेट एक्ट में संशोधन करना होगा। जब कि सरकार का कहना है कि इस तरह के संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है।
इस तरह वकीलों की सर्वोच्च संस्था और सरकार के बीच विधि शिक्षा के बारे में गंभीर मतभेद उत्पन्न हो गए हैं, जो निकट भविष्य में बड़े टकराव का आधार बन सकते हैं। यदि सरकार देश में विधि शिक्षा के ढाँचे में बदलाव लाना ही चाहती है तो उसे इस मामले में बार कौंसिल से टकराव का मार्ग अपनाने के स्थान पर अपने सुझाव बार कौंसिल को प्रस्तुत करने चाहिए जिन के आधार पर वह विधि शिक्षा को एक नया रूप प्रदान कर सके। लेकिन विधि शिक्षा के नियंत्रण को वकीलों की शीर्ष संस्था से वापस लेना एक गैरजनतांत्रिक कदम है। बार कौंसिल ही नहीं देश का संपूर्ण वकील समुदाय सरकार की इस नीति के विरोध में खड़ा हो सकता है जो न केवल सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत हो सकता है। यदि वकीलों ने इस मुद्दे पर देश भर में असहयोग का रवैया अख्तियार किया तो एक बार देश की संपूर्ण न्याय व्यवस्था कुछ दिन के लिए ठप्प हो सकती है।
More from my site
12 Comments
This blog appears to recieve a great deal of visitors. How do you promote it? It offers a nice unique spin on things. I guess having something useful or substantial to say is the most important thing.
This site appears to get a good ammount of visitors. How do you advertise it? It offers a nice unique twist on things. I guess having something real or substantial to give info on is the most important thing.
Great Blog. I add this Post to my bookmarks.
This is to good post. Are you try to copy it from anywere? It’s daaam good infos.
Thank you so much, nice job! Just the stuff I had to have
TY for posting, it was unbelieveably informative and helped me a ton
I find myself coming to your blog more and more often to the point where my visits are almost daily now!
सहमत हे जी आप के लेख से
संभव है.
आपसे सहमत हूँ.
बढ़िया जानकारी हमेशा की तरह.. इस बार बहुत देर से आया, क्षमा…
अच्छी जानकारी। धन्यवाद।