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विवाह, नौकरी और धंधे में कपट

बीमा कंपनी के तो ऐसे हजारों मुकदमे अदालत में हुए हैं जिन में कंपनी ने कपट के आधार पर बीमा पॉलिसी को शून्यकरणीय घोषित कराया। लोग उपभोक्ता अदालत पहुँचे और वहाँ से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। लेकिन शादी-विवाह के मामलों में भी कपट की भूमिका सदियों से जारी है।

  • विवाह

एक महिला ने दूसरी शादी करते समय अपने दूसरे दुलहे को यह तो बताया कि उस की पहले शादी हुई थी और तलाक विधिपूर्वक हो गया है। लेकिन यह तथ्य छुपा लिया कि यह तलाक उस के अस्वस्थ मस्तिष्क होने के आधार पर उस के पूर्व पति ने अदालत से प्राप्त किया था। इसे अदालत ने कपट पूर्वक प्राप्त की गई सहमति माना और शादी को हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) में शून्य घोषित कर दिया।

इसी तरह से एक अन्य मामले में एक दुलहे ने विज्ञापन दे कर अपनी दुलहिन को तलाशा और शादी बना ली। बाद में दुलहिन को पता लगा कि उस का दुलहा पहले भी शादी कर चुका था और अदालत ने उस शादी को शून्य घोषित कर दिया है। पूर्व विवाह और उस के शून्यीकरण को छुपाना अदालत ने महत्वपूर्ण तथ्य माना और इस आधार पर दुलहिन को तलाक प्राप्त हुआ।

अब आया जाए वादे को न निभाने के इरादे पर। एक महिला और पुरुष ने शादी की रस्में पूरी की जिस में पुरूष का मन्तव्य था कि यह तो खेल है, असलियत नहीं। इस प्रकार उस का इरादा विवाह के कंट्रेक्ट की पालना करना नहीं था। इसे कपट माना गया।

  • नौकरी

एक व्यक्ति ने नौकरी करते हुए एक अन्य़ नियोजक के यहाँ गुप्त रूप से नियोजन प्राप्त किया और नए नियोजक के कहने पर पुराने नियोजक को नए के साथ कंट्रेक्ट करने को प्रेरित किया, यह तथ्य छुपा कर कि उस ने दूसरे नियोजक के यहाँ नियोजन स्वीकार कर लिया है। दोनों नियोजकों के मध्य कंट्रेक्ट को शून्य घोषित किया गया।

  • धंधा

अब एक आदमी दिनेशराय द्विवेदी वकील को तलाशता हुआ अदालत आया और एक अन्य वकील ने उसे खुद को दिनेशराय द्विवेदी बता कर उस से वकालतनामा हस्ताक्षर करवा कर अदालत  में पेश कर दिया। यह भी कपट पूर्वक मुकदमा लड़ने का कंट्रेक्ट हासिल करना हुआ।
इतने उदाहरणों के उपरांत अब इस दीवानी कपट को समझने में पाठकों को परेशानी नहीं होना चाहिए।  फिर भी कोई शंका हो तो "मैं हूँ ना" तीसरा खंबा पर।

अगले आलेख में हम ‘मिथ्या निरूपण’ (misrepresentation) को समझेंगे।

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