शिकायत मिथ्या सिद्ध होने पर न्यायालय शिकायत कर्ता के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है।
|अभिषेक आचार्य ने जबलपुर मध्यप्रदेश से पूछा है-
एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने कई बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतरगत झूठी शिक़ायत की। पुलिस द्वारा भी उसकी शिकायत झूठी पाई गई और पुलिस ने ख़ात्मा रिपोर्ट बना दी। दिनांक 12.02.2014 को सरकारी कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटाया गया। जिस में उसकी भी एक दुकान थी। उस ने दिनांक 13.02.2014 को पुलिस एसपी झूठी शिक़ायत की जिस में उस ने अपने विरुद्ध जातिसूचक शब्द कहे जाने का आरोप लगाया उस पर दिनांक 11.02.2014 की घटना बताई। दिनांक 12.03.2014 को फिर से घटना में बड़े पैमाने में परिवर्तन करके 11.02.2014 की घटना को बढ़ा चढ़ा के लिखित शिक़ायत एससीएसटी थाने में की। उक्त दोनों शिक़ायत पुलिस द्वारा झूठी पाई जाने और पुलिस द्वारा ख़ात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर देने पर भी उस व्यक्ति ने एक परिवाद जेएमएफसी (एसटीएससी) की कोर्ट में की। कोर्ट ने परिवादी के कथन ले कर परिवाद में जमानती वॉरण्ट 500/- 500/- रुपए के निकाले हैं। प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनने पर फिर भी कोर्ट कार्यवाही कर सकता है क्या? यदि ये सिद्ध हो जाए तो क्या न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध क्या कार्यवाही कर सकता है?
समाधान-
यह सही है कि पुलिस ने मामले को झूठा पाने पर उस में अन्तिम रिपोर्ट यह प्रस्तुत की कि मामला मिथ्या है। लेकिन फिर भी शिकायत कर्ता को यह अधिकार है कि पुलिस की अन्तिम रिपोर्ट को चुनौती दे और अपना व साक्षियों के बयानों से यह सिद्ध करने का प्रयत्न करे कि प्रथम दृष्टया मामला है।
यदि शिकायतकर्ता न्यायालय के समक्ष आपत्तियाँ प्रस्तुत करता है और न्यायालय समझता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो वह उस का प्रसंज्ञान ले कर जमानती वारंट से अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने को कह सकता है। इस मामले में भी न्यायालय ने प्रसंज्ञान लिया है और जमानती वारंट जारी किए हैं इस का यही अर्थ है कि वह मामले को प्रथम दृष्टया उचित समझता है।
यदि किसी को मजिस्ट्रेट द्वारा प्रसंज्ञान लिए जाने पर आपत्ति है तो प्रसंज्ञान लेने के आदेश को रिविजन के माध्यम से सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है। यदि आदेश गलत पाया जाता है तो सेशन न्यायालय उस आदेश को रद्द कर सकता है।
यदि मामला रद्द नहीं हो जाता है या फिर रद्द होने के स्थान पर उस पर विचारण किया जाता है और तब मिथ्या पाया जाने के कारण रद्द हो जाता है तो न्यायालय मिथ्या शिकायत करने के लिए परिवादी के विरुद्ध धारा 182 आईपीसी में प्रसंज्ञान ले कर मुकदमा चला सकता है। जिन लोगों के विरुद्ध जमानती वारंट जारी किए गए हैं या विचारण हुआ है वे भी धारा 182, 500 आईपीसी में परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं जिस पर मजिस्ट्रेट प्रसंज्ञान ले सकता है। इस के अतिरिक्त ये व्यक्ति मानहानि होने के कारण द्वेषपूर्ण अभियोजन के लिए हर्जाना मांग सकते हैं उसे वसूल करने के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
जय श्री कृष्णा
आप मार्गदर्शन की सदा आशा व अपेक्षा करता हूँ
तथा कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ