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संतान के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता

 आकाश ने पूछा है –
मेरी पत्नी तीन वर्ष से मेरे साथ नहीं रहती है। मैं ने एक साल पहले हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री न्यायालय से प्राप्त की है। मेरी पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता का आवेदन न्यायालय के समक्षन प्रस्तुत किया है मेरी एक संतान भी है जिस के लिए न्यायालय ने अंतरिम भत्ता देने का आदेश किया है। मैं इस कार्यवाही को रुकवाना चाहता हूँ इस के लिए मुझे क्या करना होगा?  धारा 125 दं.प्र.संहिता से बचने का कोई मार्ग हो तो सुझाएँ।  
 उत्तर – 
आकाश जी,
प न्यायालय से वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त कर चुके हैं। इस डिक्री में यह तय हो चुका है कि आप की पत्नी के पास आप से अलग रहने का कोई उचित कारण विद्यमान नहीं है। यदि ऐसा है तो आप की पत्नी यदि यह साबित नहीं करती है कि उस के उपरांत कोई अन्य कारण उत्पन्न हुआ है तो वह आप से धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आप से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है। यदि वह एक वर्ष की अवधि में आप के पास आ कर नहीं रहने लगती है तो आप अपनी पत्नी के विरुद्ध विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर उस की डिक्री भी प्राप्त कर सकते हैं। 
हाँ तक आप की संतान का प्रश्न है, यदि वह पुत्र है तो आप पाँच वर्ष की आयु का हो जाने पर उस की कस्टडी़ लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यदि पुत्र के हित में न्यायालय यह समझती है कि उस की कस्टडी आप को दिलाई जानी चाहिए तो वह उस की कस्टड़ी आप को दिला सकती है। जब तक आप को अपने पुत्र की कस्टड़ी प्राप्त नहीं होती है आप को उस के भरण-पोषण की राशि जो न्यायालय ने निर्धारित की है वह देनी होगी। यदि वह पुत्री है तो फिर आप को अपनी पुत्री की कस्ट़डी तब तक प्राप्त नहीं होगी जब तक कि आप के परिवार में कोई महिला आप की पुत्री को संरक्षण देने वाली न हो और आप की पुत्री का आपकी पत्नी द्वारा ठीक से पालन-पोषण नहीं किया जा रहा हो। आप की संतान आप की है उस के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी आप की है। संतान के मामले में धारा-125 दं.प्र.संहिता के आदेश से आप बच नहीं सकते।
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