संबंधों के कारण अनुचित प्रभाव का उपयोग कर किए गए कंट्रेक्ट
|‘अनुचित प्रभाव’ वह दूसरा कारक है जिस की उपस्थिति में सहमति स्वतंत्र नहीं रह जाती है और एक कंट्रेक्ट शून्यकरणीय हो जाता है। इसे कानून में इस तरह परिभाषित किया गया है।
“अनुचित प्रभाव” (1) जहाँ किसी कंट्रेक्ट के पक्षकारों के बीच संबंध ऐसे हों कि उनमें से एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा प्रभुत्व रखने की स्थिति में हो और अपनी इस स्थिति का उपयोग अनुचित लाभ उठाने के लिए करे तो ऐसा कंट्रेक्ट अनुचित प्रभाव से उत्प्रेरित कहा जाएगा।
(2) विशेष रूप से और ऊपर वर्णित सिद्धान्त की व्यापकता को प्रभावित किए बिना कुछ मामलों में कोई भी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करने की स्थिति में माना जाएगा यदि वह –
(क) अन्य व्यक्ति पर वास्तविक या दिखाई देने वाला अधिकार रखता है या उस के साथ विश्वास रखने की स्थिति में है; या
(ख) ऐसे व्यक्ति के साथ कंट्रेक्ट करता है जिस की उम्र, बीमारी, या मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण मानसिक समर्थता अस्थाई या स्थाई रूप से प्रभावित है।
(3) जहाँ कोई व्यक्ति, जो अन्य व्यक्ति की इच्छा पर प्रभुत्व रखने की स्थिति में हो और उस के साथ कंट्रेक्ट करे और उन का यह संव्यवहार देखने से ही या न्यायालय में प्रस्तुत की गई साक्ष्य से लोक विरुद्ध प्रतीत होता हो वहाँ इस बात को सिद्ध करने का दायित्व कि वह कंट्रेक्ट ‘अनुचित प्रभाव’ से उत्प्रेरित नहीं है उस व्यक्ति पर होगा जो अन्य व्यक्ति की इच्छा पर प्रभुत्व रखने की स्थिति में था।
यहाँ कानून में उन स्थितियों को स्थान दिया गया है जिन में किसी व्यक्ति को उस की इच्छा के विपरीत किसी कंट्रेक्ट में शामिल किया जा सकता है; जैसे…
(क) रमेश जी अपने पुत्र केशव को उस की अवयस्कता के दौरान कुछ धन उधार देते हैं और केशव के वयस्क (18 वर्ष की उम्र के) होते ही उस से उधार दी गई धनराशि से अधिक राशि के लिए एक बंधपत्र (बोण्ड) लिखा लेते हैं, तो यह माना जाएगा कि यहाँ अनुचित प्रभाव का प्रयोग किया गया है।
(ख) उम्र या रोगी होने के कारण कमजोर हो चुके रमेश जी एक नर्स शान्ति को अपनी सेवा के लिए कहते हैं, और वह उन की नियमित रूप से सेवा करती है, और शान्ति रमेश जी से कोई अनुबंध पत्र इस आशय का लिखा लेती है कि वे प्रतिमाह इस सेवा के लिए पाँच हजार रुपए देंगे अथवा अपने मकान का एक भाग उसे हस्तांतरित कर देंगे, और यह प्रतिफल शान्ति द्वारा की गई सेवाओँ के उचित पारिश्रमिक से बहुत अधिक असंगत हो तो यह माना जाएगा कि रमेश जी को अधिक प्रतिफल देने का अनुबंध लिखने के लिए उत्प्रेरित किया गया था।
(ग) अब घीसू को जरूरत हुई तो उस ने गाँव के महाजन से दो रुपया सैंकड़ा प्रतिमाह ब्याज पर उधार ले लिया, उस का ब्याज देता आ रहा है, उसे फिर जरूरत हुई तो फिर महाजन के यहाँ उधार लेने पहुँचा। महाजन ने उधार तो दिया लेकिन ब्याज बढ़ा कर पाँच रुपया सैंकड़ा प्रतिमाह देने का कागज लिखाया। ब्याज की दर आम बाजार दर से बहुत अधिक है। इस लिए इस मामले में यह साबित करने का भार कि कंट्रेक्ट अनुचित असर से उत्पेरित नहीं था महाजन पर होगा।
(घ) विनोद ने बैंक में ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन किया तब बाजार में धन की उपलब्धता कम थी बैंक ने शर्त रखी कि प्रचलित दर से दो प्रतिशत अधिक देना होगा। विनोद फिर भी बैंक से ऋण प्राप्त कर लेता है, तो इसे विनोद के साथ हुए इस कंट्रेक्ट को अनुचित प्रभाव से उत्प्रेरित नहीं मानते हुए इसे बैंक का सामान्य व्यवहार ही माना जाएगा।
अनुचित प्रभाव का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, यह मानते हुए कानून में इसे अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। न्यायालयों ने इस परिभाषा के आधार पर मुकदमों में निर्णय देते हुए अनेक संबंधों के बीच होने वाले कंट्रेक्टों में अनुचित प्रभाव के उपयोग को व्याख्यायित किया है, उन पर हम बात करेंगे, आगामी कड़ी में………
सही…सटीक…सरल है
संविदा पर ये पोस्ट विरल है
=======================
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
बहुत सही और सरल ढँग से एक ल्स्ठिन कानून को एक सफल एडवोकेट ही समझा सकता है –
धन्यवाद –
– लावण्या
हाँ जी,
अब पढ़ कर लगा कि
बात पते की है ।
धन्यवाद !
यह समझ में आ गया। अगर कोई करार अपने आप में सामान्य से परे लगता है तो अनुचित प्रभाव के कोण पर नजर मार लेनी चाहिये।
बहुत सही लिखा आपने सोदाहरण।
apne bahut sundar dhang se samajhaya hai aap badhai ke patr hai. dhanyawaad ji
बहुत सरलता से समझाने के लिए आभार.
उदहारण देने के लिए.. आभार, बहुत सी बातें सरलता से समझ में आ जाती हैं. अब लगता है वकील क्यों न हुए!
उदारहण देकर आपने बखूबी समझाया है ,शुक्रिया
आ. दद्दू ,
टिप्पणी क्या करें, मूढ़मति से पूरी पोस्ट पढ़ना ही
संभव नहीं हो पाया । कृपया अगली पोस्ट भेजें ।
सादर – अ. कु.