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ससुर पुलिस में हैं, क्या वे मुझे झूठे मुकदमे में फँसा सकते हैं ?

श्री शैल पूछते हैं ……
 

मेरी शादी मई 2003 में हुई थी और मेरी पत्नी मार्च 2004 से उस के मायके में रहती है। पहले नौ माह के दौरान वह मेरे पास दो माह भी नहीं रही है। एक सप्ताह वह हमारे पास रहती और दो माह उस के मायके में रहती। हम अभी तक चार बार लेने जा चुके हैं, लेकिन वह वापस नहीं आती। मेरे ससुर पुलिस विभाग में हैं। वे हम को झूठे केस में फँसाने की धमकी दे रहे हैं। हमारे घर में मेरे माता-पिता और मेरा छोटा भाई है जिस की शादी 2005 में हो चुकी है और एक बच्चा भी है। मेरी पत्नी कहती है, तुम्हारे माता-पिता से अलग रहो तो मैं तुम्हारे पास रहूंगी।  मेरी पत्नी कोई भी वजह बता कर मुझे माता पिता से अलग रहने की कहे तो क्या मुझे जाना पड़ेगा? वह पिछले छह वर्ष से मायके में रह रही है। मैं ने पिछले वर्ष धारा-9 की अर्जी कोर्ट में प्रस्तुत की है। क्या वे लोग मुझे झूठे मुकदमे में फँसा सकते हैं?

उत्तर —

शैल जी,
प की समस्या वास्तव में एक कानूनी कम और आम सामाजिक समस्या अधिक है। सास, ससुर, देवर, जेठ ननद विहीन ससुराल की छवि आज कल हर विवाह करने वाली लड़की के मन में पहले से समायी हुई होती है। उस के माता-पिता, भाई आदि उस की इस छवि को मजबूत करते हैं। नतीजा यह होता है कि विवाह के बाद इस तरह की समस्याएँ अक्सर खड़ी होने लगीं हैं। लेकिन समाज में यह प्रवृत्ति एक दिन में विकसित नहीं हो गई है। इस के पीछे विवाहिताओं के साथ उन की ससुराल में इन परिजनों के द्वारा होने वाले व्यवहार का लंबा इतिहास भी मौजूद है। जो माता-पिता अपनी पुत्री के लिए सपनों का ऐसा माहौल खड़ा करते हैं। अपनी पुत्रवधुओं  से उन की आकांक्षाएँ बिलकुल इस के विपरीत होती हैं। वस्तुतः हम लोग एक ही शरीर और मस्तिष्क के साथ दोहरा जीवन जी रहे होते हैं। विवाहिता कितना भी कम या अधिक दहेज लाए, उस की आलोचना अवश्य होती है। फिर एक लड़की जो ससुराल में पहली बार आती है उसे उस के भिन्न व्यवहार के लिए पल-पल टोका-टाकी का सामना करना पड़ता है। बहुत सी चीजें इस के पीछे हैं। हम लोग दोहरा व्यक्तित्व छोड़ने को तैयार नहीं हैं। एक सामाजिक समस्या का समाधान सामाजिक रीति से निकालने को हम तैयार नहीं। फिर आरंभ हो जाते हैं, कानूनी दाव-पेंच।

ब आया जाए आप के प्रश्न पर, कि क्या वे लोग मुझे झूठे मुकदमे में फँसा सकते हैं? तो इस का उत्तर है कि जरूर फँसा सकते हैं। वे पुलिस के पास जाएँगे, रिपोर्ट दर्ज कराएँगे। पुलिस अन्वेषण करेगी, गवाहों के बयान लेगी और मुकदमा बना देगी। आप को गिरफ्तार भी कर सकती है। आप सजग रहे तो उच्च न्यायालय में याचिका कर इस रिपोर्ट को खारिज करवा सकते हैं या अग्रिम जमानत ले सकते हैं। हमारे यहाँ अदालतें जरूरत की 20 प्रतिशत हैं तो मुकदमा बरसों चलता रहेगा। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज न की तो अदालत है वहाँ शिकायत दर्ज होगी और पुलिस को रिपोर्ट दर्ज कर कार्यवाही के लिए प्रेषित कर दी जाएगी। बरसों बाद मुकदमे में फैसला होगा तब शायद आप बरी हो जाएँ। इस बीच जो यातना आप भुगतेंगे उस का कोई मुआवजा नहीं है। जिन्दगी के जो साल आप के इस में गुजर गए वे व्यर्थ गए। इसी स्थिति का लाभ आप का प्रतिपक्ष उठाएगा। आप से उन की मर्जी का समझौता करने को कहेगा। यह सामाजिक समस्या फिर कानून के गलियारे में जा कर फँस जाएगी और पक्षकार इन गलियारों में चक्कर काटते हुए पूरा जीवन या उस के कई कीमती साल गुजार देंगे।

प्रश्न है कि आप ऐसे में क्या कर सकते हैं? सब से पहले तो आप बिलकुल सही कदम उठा चुके हैं कि आप ने धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम में आवेदन प्रस्तुत कर दिया है। यह आप के लिए रक्षा कवच के रूप में भी काम करेगा और यदि अदालत द्वारा की गई काउंसलिंग से मामला सुलझ जाए तो आप की गृहस्थी की पटरी मुकाम पर आ सकती है। एक सुझाव और है, आप का मामला सामाजिक है औऱ किसी बेहतर काउंसलर के हस्तक्षेप से पटरी पर लाया जा सकता है। आप चाहें तो अपने क्षेत्र के किसी बेहतर काउंसलर से संपर्क करें। शायद आप का काम बन जाए। जहाँ तक आप के ससुर साहब का पुलिस का कर्मचारी होने का असर है वह कुछ अधिक नहीं है। यदि उन्हों ने आप को वास्तव में धमकी दी है तो सीधे पुलिस में शिकायत कीजिए और जहाँ वे पदस्थापित हैं वहाँ कि पुलिस अधीक्षक को भी शिकायत भेजिए। आप चुप क्यों बैठे हैं? धमकी को गंभीरता से लीजिए। इन शिकायतों की प्रतियाँ उन की प्राप्ति स्वीकृति सहित अपने पास सुरक्षित रखिए। ताकि मुसीबत के समय काम  आएँ।

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