सूचना अधिकारी से सूचना के स्थान पर डाक में खाली लिफाफा या फालतू दस्तावेज मिले तो क्या करें?
|डॉक्टर पुरुषोत्तम मीना, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) ने आम लोगों की समस्या लिखी है ….
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के समक्ष अनेक परेशान लोगों ने कानूनी सवाल उठाया है, कि-
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सूचना से वंचित करने का जन सूचना अधिकारियों ने एक ऐसा नया रास्ता निकाला है कि इस कानून और अधिकार की ऐसी-तैसी कर दी है। हो ये रहा है कि चाही गयी सूचना को प्राप्त करने के लिए बाकायदा आवेदक को डाक से सूचित किया जाता है, कि …… पेज की सूचना हेतु …. रुपये जमा करें। रुपये जमा करने के बाद आवेदक से कहा जाता है कि आपको सूचना डाक से भेज दी जायेगी, उसके बार-बार आग्रह करने पर भी, उसे हाथों-हाथ सूचना नहीं दी जाती है।
कुछ दिन बाद उसे रजिस्टर्ड डाक मिलती है, जिसे पाकर वह खुश होता है, लेकिन लिफाफा खोलकर देखता है तो, ये क्या? लिफाफे में खाली या रद्दी कागज निकलते हैं। या एक ही दस्तावेज की 5-10 फोटो कॉपी करवाकर रख दी जाती हैं, लेकिन असल जानकारी वाला वह दस्तावेज नही दिया जाता है। जिससे कि भ्रष्टाचार की पोल खुलने की संभावना होती है। अपील करने पर अपील अधिकारी निर्णय देता है कि फाइल को देखने से पता चलता है कि सारी जानकारी दे दी गयी हैं। और अपील निरस्त कर दी जाती है। हर व्यक्ति के पास इतना समय नही होता कि वह मुख्य सूचना आयुक्त के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर इन कारगुजारियों को बतला सके, क्योंकि रिकोर्ड पर तो सब कुछ ठीक ही होता है।
ऐसे में, इन चालाक एवं भ्रष्ट लोगों को दंडित कराने हेतु किस कानून के तहत, कहाँ और क्या कार्यवाही की जावे?
उत्तर-
डॉ. साहब!
यह आम अनुभव है कि लोग खाली लिफाफा या लिफाफे में खाली कागज या फालतू के कागजात रजिस्टर्ड डाक से भेज कर उस की प्राप्ति स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं और उस का अदालती कार्यवाही में गलत लाभ उठाने का प्रयत्न करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन इस धोखाधड़ी का इलाज भी कानून के पास है।
जैसे ही आप को या किसी व्यक्ति को अपने जवाब या आवश्यक दस्तावेज के स्थान पर उक्त तरह की धोखाधड़ी वाली रजिस्टर्ड डाक प्राप्त हो जिस के पते पर वह डाक मिली है वह तुरंत उसी दिन और उस दिन संभव न हो तो अगले दिन जिस पते से वह डाक प्राप्त हुई है उसी पते पर रजिस्टर्ड डाक से यह सूचना प्रेषित करे कि ‘उसे जो रजिस्टर्ड डाक प्राप्त हुई है उस में खाली, बेकार के कागज प्राप्त हुए हैं, यह एक प्रकार की धोखाधड़ी है, कृपया 7 दिनों में वास्तविक दस्तावेज भेजा जाए या फिर स्पष्ट किया जाए कि खाली बेकार के कागज भेजने का क्या आशय है। यदि एक सप्ताह में वास्तविक द्स्तावेज अथवा कोई स्पष्टीकरण प्राप्त नहीं हुआ तो इस धोखाधड़ी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी जाएगी अथवा फौजदारी न्यायालय के समक्ष शिकायत दर्ज कराई जाएगी।’ रजिस्टर्ड डाक की रसीद संभाल कर रखें और प्राप्ति स्वीकृति भी प्राप्त हो जाए तो उसे भी संभाल कर रखेंष प्राप्त न होने पर संबंधित पोस्ट ऑफिस को पत्र लिख कर अपने पत्र के
गंतव्य पर डिलीवर कर देने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लें।
गंतव्य पर डिलीवर कर देने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लें।
इस के बाद भी यदि सूचना सही तरीके से न दी जाए तो आप पुलिस में इस धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज कराएँ और पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं करने पर सीधे अदालत में परिवाद/शिकायत पेश करें और पुलिस जाँच के लिए थाने भिजवा दें।
इसी तरह और केवल इसी तरह सरकारी अफसरों की इस धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सकती है। आप एक दो परिवाद करेंगे तो अपने आप अफसर लाइन पर आ जाएंगे। आप ने अथवा सूचना प्राप्त करने वाले लोगों ने इस धोखाधड़ी को समय पर उजागर न कर के केवल अपील पेश की जहाँ धोखाधड़ी एक विषय था ही नहीं। इस कारण से अपील तो सरकारी विभाग के पक्ष में निर्णीत होनी ही थी।
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7 Comments
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जय हो… बेहतरीन ढंग से बताई जरूरी जानकारी… साधुवाद..
सूचना मांगने वालों की एक नई जमात उग आई है यह खरपतवार अब फसल लीलने को है. एक प्रकाशक ने DOPT से 35,000 रूपये में 1947 के बाद से जारी सभी सर्कुलर RTI का रौब गांठ कर ले लिए…अब उन्हें प्रकाशित कर खीस निपोरते हुए लाखों कूट रहा है..गरीब वहीं का वहीं है..ब्लैकमैलर मूछों पर ताव दिए धूम रहे हैं
द्विवेदी जी, सिर्फ अफसर ही हेरा फेरी नहीं करते बल्कि आज कल लोग भी इस अति उपयोगी हथियार का दुरूपयोग करते हुए अफसरों को ब्लैक मेल करते हैं.
एक १० रूपये की दरख्वास्त में सालों की सूचना मांगते हैं सिर्फ परेशान करने के लिए, जोकि काफी टाइम कन्ज्युमिंग होता है.
इस अधिकार का सही इस्तेमाल होना अति आवश्यक है.
हर तरफ़ हेरा फ़ेरी… है राम .
आप ने बहुत सुंदर जानकारी ओर राय भी अच्छी दी.
धन्यवाद
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