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स्थाई हड़ताल (स्वैच्छिक अवकाश) का विस्तार

तीसरा खंबा के पुराने पाठकों को विदित है कि हम वकीलों ने कैसे स्थाई हड़ताल के माध्यम से एक और सप्ताह को पाँच दिनों का बना लिया। नए पाठक तीसरा खंबा की पोस्ट स्थाई हड़ताल बनाम महत्वपूर्ण दिन पढ़ सकते हैं।

आज फिर वही महत्वपूर्ण दिन है। यानी माह का आखिरी शनिवार। उस का विस्तार हो गया है। कोटा अभिभाषक परिषद का हर साल दिसम्बर में चुनाव हो जाता है। जनमत नया अध्यक्ष और नयी कार्यकारिणी जनमता है। इस साल जब जनवरी में नये अध्यक्ष आए तो उन्होंने संभाग के चारों जिलों के मुख्यालयों की अभिभाषक परिषदों की बैठकें कीं और सब की सहमति प्राप्त की कि कोटा में हाईकोर्ट बैंच की मांग जायज है।

कुछ बैठकों के बाद नतीजा यह रहा कि आखिरी शनिवार की हड़ताल का विस्तार पूरे संभाग तक हो गया। कल मैं दोपहर से रात तक अपने जन्मनगर बाराँ गया हुआ था। वहाँ शाम को मेरे वकालत गुरूजी श्री हरिश्चन्द्र गोयल (लेखकीय नाम हरीश ‘मधुर’) के दर्शन सड़क पर मोपेड चलाते हुए हो गए। मैं ने उन्हें इस की बधाई दी। (उन्हें कभी सायकिल चलाते भी नहीं देखा था बाइक आदि तो दूर की बातें हैं, पैदल चलने में महारत थी उन्हें। थी इस लिए कि मोपेड मेहरबानी से अब नहीं रही होगी) कब आया? कब जाएगा से पता लगा कि मैं तुरन्त ही लौट रहा हूँ। तो कहने लगे -कल तो छुट्टी है?

मैं ने कहा छुट्टी नहीं, हड़ताल।

हाँ, हाँ एक ही बात है।

तो इस छुट्टी का विस्तार हो गया है।

इस का अर्थ यह नहीं कि व्कीलों की मांग जायज नहीं। वह तो जायज है ही। कभी जितना काम पूरे राजस्थान हाईकोर्ट में हुआ करता था। अब उस से अधिक केवल कोटा संभाग का है। इन मुकदमों के लिए सैंकड़ों लोग जयपुर की रोज यात्रा करते हैं। वकीलों से मिलने के लिए वहाँ रुकते हैं। इससे रेल, मोटरों में भीड़ बढ़ती है। राजधानी के होटल, लॉजें, रेस्टोरेन्ट और टेम्पो, ऑटो रिक्षा चलते हैं। राजधानी में भीड़ बढ़ती है। न्याय महँगा हो जाता है। हालाँ कि मजबूर और न्याय के वास्तविक जरुरतमंद लोग नहीं जा पाते, तो मुकदमे कम लगते हैं।

पता नहीं कब संभाग के वकीलों और जनता की बात न्यायपालिका और सरकारें सुनेंगी?

तब तक स्थाई हड़ताल और आखिरी शनिवार की “छुट्टी” जारी रहेगी।

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