स्वामित्व होने पर भी अचल संपत्ति का कब्जा विधिक रूप से ही प्राप्त करना होगा
|समस्या-
मेरे नानाजी ने अनुबंध की विशिष्ठ पालन तथा अनुषंगिक सहायता ते लिए वाद प्रस्तुत किया। व्यवहार न्यायाधीश ने नानाजी के पक्ष में आज्ञप्ति पारित की कि प्रतिवादीगण नाना के पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादित करवाये, स्थाई निषेधाज्ञा के द्वारा आदेशित किया कि नाना के आधिपत्य में न तो स्वयं हस्ताक्षेप करे ना ही किसी अन्य के द्वारा करवाये तथा वाद व्यय वहन करें। प्रतिवादियों ने उच्च न्यायालय में अपील की जो खारिज हो गई। लेकिन प्रतिवादियों ने नाना के पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादित नहीं करवाया। स्वयं व्यवहार न्यायाधीश ने रिसीवर के द्वारा विक्रय पत्र निष्पादित करवाया तथा कब्जा दिलाया। नामांतरण के समय पता चला की वाद के दौरान प्रतिवादियों द्वारा उक्त भूमि अन्य 6 लोगों को बेच दी गई थी। अंततः नाना के पक्ष में भूमि का नामंतरण हो गया।
इतना करने में नाना को 18 साल लगे, 2010 में नाना का नामंतरण हो गया। नाना को प्रतिवादी तथा जिन्हों ने प्रतिवादी से जमीन खरीदी थी वे जमीन बेचने का दबाब बनाने लगे तथा नाना की फसल काटकर ले जाने लगे तो पुलिस को सूचना दी तो पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता 145/146 के तहत प्रकरण दर्ज किया एस डी एम नें कब्जे के आधार पर फसल प्रतिवादियों को देने का फैसला दिया तथा भू-राजस्व संहिता की धारा 250 के तहत कब्जा लेने का सुझाव दिया। साल भर एस डी एम के आदेश का अनुपालन करने की हिम्मत सरकारी अधिकारी ने नहीं की। 85 साल के नाना से जमीन मैंने क्रय कर ली।
मैं ने फसल बोई तो भी 145/146 के तहत प्रकरण दर्ज किया एस डी एम नें कब्जे के आधार पर फसल प्रतिवादियों को देने का फैसला दिया तथा भू-राजस्व संहिता की धारा 250 के तहत कब्जा लेने का सुझाव दिया। 250 की कार्यवाही नवम्वर 2011 से फरवरी 2012 तक चल रही है वे आज तक तहसीलदार के सामने नही आये। क्या मैं न्यायालय की अवमानना के तहत वाद ला सकता हूँ? मैंने नाना से जमीन विक्रय पत्र कर क्रय की है किन्तु में उक्त आदेश में वादी नही था
आज मेरे नाम पर जमीन है सरकारी दस्तावेजों में जमीन मेरे पास है। फसल भी बोई तो पुलिस तहसीलदार प्रतिवादी को ही दे देते हैं। क्या मैं न्यायालय के आदेश की अनुपालना का वाद ला सकता हूँ? आप उचित सलाह दें।
-देवेन्द्र सिंह, भोपाल, मध्यप्रदेश
समाधान-
प्रतिवादीगण ने आप के नानाजी को भूमि बेचने का अनुबंध किया था जो कि एक विधिक संविदा थी। संविदा के अनुसार प्रतिवादीगण द्वारा भूमि विक्रय न करने पर आप के नानाजी ने उन के विरुद्ध संविदा के विशिष्ठ अनुपालन का वाद दीवानी न्यायालय में किया जिस में वे विजयी रहे और उच्च न्यायालय ने दीवानी न्यायालय के निर्णय को बहाल रखा। निर्णय की अनुपालना में विक्रय पत्र निष्पादित न करने पर न्यायालय ने उस भूमि के विक्रय पत्र का पंजीयन आप के नानाजी के पक्ष में करवा दिया। यह मानते हुए कि भूमि पर कब्जा प्रतिवादीगण का है रिसीवर ने उन से कब्जा लेने का दस्तावेज तैयार कर दस्तावेज पर ही कब्जा भी आप के नानाजी को दे दिया। लेकिन विक्रय पत्र आप के नानाजी के पक्ष में निष्पादित होने के पूर्व ही प्रतिवादीगण भूमि को विक्रय कर के उस का कब्जा अन्य लोगों को दे चुके थे। इस तरह आप के नानाजी द्वारा दस्तावेज पर कब्जा प्राप्त करने के पूर्व ही वास्तविक कब्जा प्रतिवादीगण अन्य व्यक्तियों को सौंप चुके थे। चूंकि आप के नानाजी द्वारा दस्तावेज के द्वारा कब्जा प्राप्त किए जाने के दिन कब्जा प्रतिवादीगण का नहीं था इस कारण से भूमि का वास्तविक कब्जा आप के नानाजी को प्राप्त नहीं हुआ।
अब जब धारा 145 द.प्र.सं. के अंतर्गत कार्यवाही हुई तो कब्जा अन्य व्यक्तियों का साबित हुआ और फसल उन्हें सौंप दी गई। इस तरह एसडीएम का निर्णय सही था। उस के द्वारा भू-राजस्व संहिता की धारा 250 के तहत कब्जा लेने का सुझाव देना सर्वथा उचित है। नानाजी भूमि के कृषक थे। उन्हों ने भूमि आप को विक्रय कर दी। अब आप उक्त भूमि के स्वामी हैं। लेकिन वास्तविक कब्जा नानाजी के पास नहीं था इस कारण से आप को भी वास्तविक कब्जा प्राप्त नहीं हुआ। अब आप के पास भू-राजस्व संहिता की धारा 250 के तहत कब्जा प्राप्त कर लेने के सिवा अन्य कोई उपाय नहीं है। आप ने इस के लिए कार्यवाही भी कर दी है। अब कब्जा प्राप्त करने के इस कार्यवाही के संपन्न होने तक आप को प्रतीक्षा करनी ही होगी। राजस्व न्यायालयों में काम की जो गति है उतना समय तो आप को लगेगा। भूमि आप के कब्जे में आने पर ही आप उस का उपयोग कर सकेंगे।
जहाँ तक न्यायालय की अवमानना का प्रश्न है। वह नहीं हो रही है। निर्णय के अनुसार विक्रय पत्र निष्पादित कर दिया गया है। कब्जा इस लिए नहीं दिलाया जा सका कि वह प्रतिवादीगण पहले ही हस्तांतरित कर चुके थे। यदि आप ने दीवानी न्यायालय में संविदा के विशिष्ठ पालन के मुकदमे में आवेदन प्रस्तुत कर प्रतिवादीगण द्वारा कब्जा हस्तांतरित करने पर अस्थाई व्यादेश प्राप्त कर लिया होता तो यह परेशानी खड़ी नही होती, या फिर आप के नानाजी को दीवानी वाद के लंबित रहने के दौरान आप के नानाजी इस बात का ध्यान रखते कि कब्जा हस्तांतरित कर दिया गया है और जिन्हें हस्तांतरित किया गया है उन्हें भी दीवानी वाद में पक्षकार बना लेते तो भी आप को परेशानी न उठानी पड़ती। किसी भी डिक्री का केवल निष्पादन होता है। उस की अवहेलना करने पर किसी तरह की न्यायालय की अवमानना नहीं होती है। फिर जिन लोगों के पास कब्जा है उन के विरुद्ध आप के पास कोई आदेश या डिक्री नहीं है। इस कारण उन से विधिक रूप से कब्जा प्राप्त करने के सिवा आप के पास कोई अन्य उपाय नहीं है।