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सेवा से हटाए गए श्रमिक शिकायत के तीन माह बाद अपना विवाद सीधे श्रम न्यायालय में ले जा सकेंगे

संसद द्वारा पारित Industrial Disputes (Amendment) Act, 2010 (No. 24 of 2010) औद्योगिक विवाद (संशोधन) अधिनियम, 2010 को केंद्र सरकार ने दिनांक 15 सितंबर 2010 से प्रभावी बना दिया गया है। इस संशोधन से कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन इस विधि में हुए हैं। इन परिवर्तनों से सेवा समाप्ति के मामलों को श्रम न्यायालय तक ले जाया जाना सरल किया गया है, साथ ही 20 या उस से अधिक श्रमिकों को नियोजित करने वाले उद्योगों में परिवाद समाधान समिति बनाया जाना अनिवार्य किया गया है। अभी तक श्रम न्यायालयों, अधिकरणों और राष्ट्रीय अधिकरण को अपने ही अवार्डों को लागू कराने की शक्तियाँ नहीं थीं। इस संशोधन के उपरांत अब इन्हें दीवानी अदालतों की भांति यह शक्तियाँ प्रदान कर दी गई हैं। 
सेवा समाप्ति के मामलों में समझौता अवधि को सीमित और निर्देशन की बाध्यता को समाप्त  किया गया।
द्योगिक विवादों के मामले में कोई भी शिकायत केवल ट्रे़ड यूनियनों या श्रमिक समूहों द्वारा समझौता अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत की जाती थीं, जिन पर यह सुनिश्चित होने पर कि मामला किसी औद्योगिक विवाद से संबंधित है, समझौता वार्ता आरंभ की जाती थी। दोनों पक्षों के मध्य समझौता संपन्न न होने पर समझौता अधिकारी समजौता वार्ता के असफल होने की रिपोर्ट उचित सरकार को करता था। राज्य सरकार उस रिपोर्ट पर विचार कर के मामले को श्रम न्यायालय, औद्योगिक न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय न्यायाधिकरण को न्यायनिर्णयन के लिए संप्रेषित करती थी। इस तरह किसी भी औद्योगिक विवाद को न्याय निर्णयन के लिए पहुँचने में छह माह से ले कर तीन वर्ष तक लग जाते थे। ऐसे मामलों में जिन में किसी श्रमिक की सेवाएँ समाप्त हुई हों और उस ने व्यक्तिगत रूप से शिकायत की हो, प्रक्रिया में परिवर्तन किया गया है। अब समझौता अधिकारी को शिकायत प्राप्त होने के तीन माह में न्याय निर्णयन के लिए राज्य सरकार का संप्रेषण किसी न्याय निर्णयन अधिकरण को नहीं भेजे जाने की स्थिति में व्यथित श्रमिक अपने मामले को सीधे श्रम न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकता है, श्रम न्यायालय उस मामले में उसी तरह न्याय निर्णयन करेगा जैसे वह मामला उसे उचित सरकार द्वारा संप्रेषित किया गया है। लेकिन जिस दिन श्रम न्यायालय या अधिकरण को आवेदन प्रस्तुत करे उस दिन श्रमिक की सेवा समाप्त हुए तीन वर्ष से अधिक समय व्यतीत हुआ नहीं होना चाहिए। तीन वर्ष से अधिक पुराने मामलों में पुरानी प्रक्रिया ही अपनानी होगी। 
श्रम न्यायालयों व औद्योगिक अधिकरणों को उन के अवार्डों के निष्पादन की शक्तियाँ
स संशोधन से श्रम न्यायालयों व औद्योगिक अधिकरणों को उन के अवार्डों के निष्पादन की शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं। अब वे अपने द्वारा प्राप्त अवार्डों के निष्पादन के लिए उसी तरह कार्यवाही कर सकते हैं जिस तरह दीवानी प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कोई दीवानी अदालत अपनी डिक्रियों के मामले में कर सकती हैं। ये अधिकरण जिस दीवानी अदालत के क्षेत्राधिकार में निष्पादन किया जाना है उस दीवानी न्यायालय को निष्पादन कार्यवाही को स्थानांतरित कर सकती हैं, जिस पर वह दीवानी न्यायालय उसे भेजे गए अवार्ड का निष्पादन उसी रीति से कराएगा जैसे कि वह अवार्ड उसी न्यायालय ने पारित किया हो। 
न दोनों संशोधनों से सेवा समाप्ति वाले औद्योगिक विवादों में सरकार की भूमिका लगभग समाप्त प्रायः हो गई है। इस से सेवा से ह

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