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चैक अनादरण के अपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज नहीं कराई जा सकती

योगेन्द्र मौदगिल  जी कह रहे हैं कि, ‘पानीपत जैसी निर्यात नगरी में निर्यातकों द्वारा अपने सप्लायरों को दिये चैक रूटीन में बाउंस होते हैं जब सप्लायर समन भिजवाता है तो समन लाने वाला पहले ही फोन करके उन को आगाह कर देता है कि मैं आ रहा हूं आप पतली गली में चले जायें सारा तंत्र आकंठ भ्रष्ट है कानून है तो सही पर इसके पालक और जानकार इस के भी बाप है बचने के रास्ते भी वहीं से आते हैं बहरहाल मेरी समझ में या प्रेम आता है या डंडा बस्स…’
 
भाई मौदगिल जी,  आप को जो दिख रहा है वह हमें भी दिख रहा है।  तीसरा खंबा का उद्देश्य ही यह है कि न्याय-प्रणाली को पटरी पर लाया जाए।  न्याय प्रणाली में दो तरह का भ्रष्टाचार पनप रहा है।  एक प्रकार का भ्रष्टाचार तो न्यायाधीशों के बीच है जिस में न्याय बिक जाता है।  इस तरह का भ्रष्टाचार कम है लेकिन बढ़ता जा रहा है।  और अब सर्वोच्च न्यायालय और प्रधान मंत्री भी उस पर बात कर रहे हैं।  उसे काबू में करने के प्रयत्न भी किए जा रहे हैं।  लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं।  आज से 20 वर्ष पूर्व तक स्थिति यह थी कि एक पक्षकार या वकील उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायालय को एक पत्र लिख भर देता था तो भ्रष्ट जज परेशानी में पड़ जाता था।  आज स्थिति भिन्न है।  


दूसरी तरह का भ्रष्टाचार अदालतों के रीड़र और बाबुओं के बीच देखा जाता है।  वस्तुतः इस स्तर पर कोई भी काम नियम विरुद्ध नहीं होता।  लेकिन धन का लेन देन इस स्तर पर आम है।  उस का कारण यह है कि अदालतें जरूरत की 20 प्रतिशत भी नहीं है।   वहाँ काम लाइन से होने में बरसों लग जाते हैं।  वहाँ कोई लाइन तोड़ कर काम कराने  या किसी को लाइन के पीछे की ओर धकेल देने की के फिराक में रहता है।  इसी काम का धन देता है।  इस का एक ही इलाज है कि देश में अदालतों की संख्या बढ़ाई जाए।  देश के न्याय मंत्री ने चार बरस पहले संसद को बताया था कि देश में हमें हर 10 लाख की आबादी पर 50 अदालतें स्थापित करने की ओर तेजी से बढ़ना है।  लेकिन चार साल बीतने के बाद भी स्थिति वहीं की वहीं है।  केन्द्र सरकार ने जरूर इस तरफ कुछ नाकाफी कदम उठाए हैं।  पर राज्य सरकारें आज तक कान में तेल डाले बैठी हैं।  स्थिति पहले से बुरी हो गई है।  निचली अदालतों की संख्या 10 लाख पर 14 के पास अटकी है जिनमें से 2 में जज नहीं हैं।  केवल 12 काम कर रही हैं।  इस के लिए आम जनता को सजग हो कर राज्य सरकारों को अदालतों की संख्या बढ़ाने के लिए बाध्य करना होगा। 
 

रिचा जोशी …कहती हैं कि, ‘मैने तो सुना था कि बाउंस होने पर सीधे थाने में एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। क्‍या ऐसा नहीं है?  क्‍योंकि कोर्ट-कचहरी के झंझट तो बहुत लंबे हैं। कृपया आगे की कड़ी में जानकारी दें। 

रिचा बहन,
 चैक अनादरण का कानून एक विशेष कानून है।  इस के अंतर्गत पुलिस को कोई अधिक

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