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Category: Judicial Reform

ठेकेदार श्रमिकों के लिए न्याय की कोई कानूनी व्यवस्था नहीं

बालकिशन पूछते हैं– मैं एक कंपनी में 6 साल से कार्यकर रहा हूँ, मेरा केवल ठेकदार बदला जाता है और कार्मिकों को नहीं बदला जाता है।  जब संविदा
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विधि शिक्षा की अव्यवस्था

 निशान्तधर दुबे ने अपनी व्यथा इस तरह व्यक्त की है– सर ! मैं भोपाल विश्वविद्यालय में एलएल .एम. का विद्यार्थी हूँ।  यूजीसी के अनुसार विधि महाविद्यालयों में शिक्षक
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व्यवस्था ने न्याय देने से अपने हाथ ऊँचे कर दिए हैं

देश भर की अदालतों में मुकदमे बहुत इकट्ठे हो गए हैं।  निर्णय बहुत-बहुत देरी से आ रहे हैं, पूरी की पूरी पीढ़ी मुकदमों में खप रही है। जजों
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मुकदमों के निपटारे की अवधि कम करने की कवायद

केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली जिस ऊर्जावान रीति से बयान जारी कर रहे हैं उसी रीति से परिणाम भी ले कर आएँ तो देश में प्रतिष्ठा खोती जा रही
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जिरह के बाद आत्महत्या के मामले में जज की जिम्मेदारी क्यों न तय हो?

कल अदालत में खबर पढ़ी “बलात्कार की शिकार महिला से अदालत में ऐसे सवाल-ज़वाब हुये कि उसने खुदकुशी कर ली”। खबर पढ़ कर मन खट्टा तो हुआ ही
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एक सही न्याय व्यवस्था के लिए भी इंकलाब से ही गुजरना पड़ेगा

जरा ये खबर देखिए…..20 साल बाद मिलावट प्रकरण में सजा उदयपुर की एक अदालत ने बीस साल बाद हल्दी व मिर्च पाउडर में मिलावट करने के मामले में
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ग्राम न्यायालय खटाई में

जब देश भर में अधीनस्थ अदालतों की संख्या जरूरत की चौथाई से भी कम रह गई हो, तब न्याय प्रणाली का जर्जर हो जाना स्वाभाविक है। न्याय-व्यवस्था की
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जान लें, हाल क्या है? अदालतों का

मेरे नगर में संभाग का श्रम न्यायालय स्थापित है, उसी को औद्योगिक न्यायाधिकरण और केन्द्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के भी अधिकार हैं। इस तरह एक अदालत में तीन अदालतें
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न्याय सस्ता, सुलभ और त्वरित क्यों न हो?

 राजस्थान में कोटा, उदयपुर और बीकानेर संभागों में हाईकोर्ट की बैंच स्थापित किए जाने हेतु आंदोलन जारी है। कोटा में वकीलों को न्यायिक कार्य का बहिष्कार करते दो
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