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मुकदमों के निपटारे की अवधि कम करने की कवायद

केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली जिस ऊर्जावान रीति से बयान जारी कर रहे हैं उसी रीति से परिणाम भी ले कर आएँ तो देश में प्रतिष्ठा खोती जा रही न्याय प्रणाली को अपनी पुरानी प्रतिष्ठा पुनः स्थापित कर पाने में मदद मिलेगी। कल उन्हों ने जो बयान दिया है उस के अनुसार सरकार ने यह लक्ष्य निर्धारित किया है कि वे 2012 तक देश में मुकदमों के निपटारे में लगने वाले औसतन समय 15 वर्ष को तीन वर्ष तक ले कर आएंगे। यह देश के लिए एक शुभ सूचना है। यदि वे इस काम को कर पाए तो निश्चित ही यह मौजूदा केंद्रीय सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

ह बयान देना बहुत नहीं तो कम कठिन भी नहीं था। जिस तरह के अभी हालात हैं उन में यह संभव नहीं दिखाई देता क्यों की आवश्यक अधीनस्थ अदालतों की संख्या इस समय केवल 20 प्रतिशत है और उन की संख्या में 500 प्रतिशत इजाफा किए बिना न्याय प्रशासन को दुरुस्त किया जाना संभव नहीं है। लेकिन अभी तो उन की संख्या 200 प्रतिशत करने के बारे में भी कोई इरादा दिखाई नहीं देता। फिर यह काम राज्य सरकारों पर है कि वे अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं या नहीं। अभी तो हालात यह  हैं कि न्यायाधीशों के जो पद रिक्त हैं विलम्बित चयन प्रक्रिया के दोष के कारण उन्हें ही भरा जाना संभव नहीं हो पा रहा है। राज्यों के सेवा आयोगों को चयन के लिए समय ही नहीं है। ऐसी अवस्था में क्या न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पृथक राष्ट्रीय आयोग होना चाहिए। उस दिशा में उन की क्या योजना है इस का खुलासा किया जाना भी जरूरी है। सब से बड़ी बात तो यह है कि राज्य सरकारों को इस काम के लिए प्रेरित किया जाए। उन के व्यवहार से ऐसा लगता है कि वे न्यायालयों की स्थापना को सब से गैर जरूरी काम समझती है। इस का उदाहरण है कि अभी राजस्थान में कुछ विशेष अदालतें स्थापित की गई हैं जो धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के मुकदमे सुनेंगी। कोटा में भी एक ऐसी अदालत स्थापित हुई है। मौजूदा लंबित मामले अन्य अदालतों से इसे स्थानांतरित किए जा रहे हैं। कल नई अदालत का रीडर बता रहा था कि अदालत में अभी से  6000 से अधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं और संभावना है कि सारे मुकदमे स्थानांतरित हो कर प्राप्त हो जाने के बाद इन की संख्या 7000 से ऊपर जाएगी। एक अदालत जो 500 मुकदमों के लिए बनी होती है और किसी तरह 1000 मुकदमे संभाल लेती है वह कैसे 7000 मुकदमे संभाल पाएगी? हम जानते हैं कि इन में से आधे लोग जिन्हों ने मुकदमे दर्ज कराए हैं वे बिना किसी राहत के बीच रास्ते अदालत से लौट जाने वाले हैं। यह स्थिति निरंतर जनता में मौजूदा व्यवस्था के प्रति असंतोष में वृद्धि कर रही है। जिस की गाज सरकार पर ही गिरनी है और समाज में होने वाले अपराधों में वृद्धि होती है।

मोईली साहब ने सब से महत्वपूर्ण विचार देश में राष्ट्रीय वाद नीति के निर्माण का प्रकट किया है। सरकार देश में सब से बड़ी न्यायार्थी है जिस के द्वारा दायर किए गए मुकदमों की संख्या भी सब से अधिक है और जिस के विरुद्ध दायर किए गए मुकदमों की संख्या भी अधिक है। सरकार की यह नीति कैसी होगी यह तो उस के बन जाने पर ही पता लगेगा। पर इतना तो कहा जा सकता है कि यदि यह नीति बनी और सरकार अपने मुकदमों में कमी ला सकी तो यह न्याय प्रणाली के लिए उत्तम होगा

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