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Tag: अदालत

'तीसरा खंबा' का अभियान रंग लाया…………… न्यायिक सुधार बनेंगे आगामी चुनावों का केन्द्रीय मुद्दा

‘तीसरा खंबा’ का यह कथन सच होने जा रहा है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में न्यायिक सुधार एक अहम मुद्दा होना चाहिए। अपने जन्म से ही
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फिल्मों और टीवी सीरियलों में गलत जानकारियाँ और लिखित तथा रजिस्ट्रीकृत में फर्क

भाई अभिषेक ओझा ने पिछले आलेख पर एक सवाल किया “लिखित और रजिस्ट्रीकृत में कितना फर्क है… अगर केवल लिखित दस्तावेज है तो शायद वो वैध नहीं होता?”दिखने
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बिना प्रतिफल के शून्य अनुबंध, और उस के अपवाद

प्रतिफल के बिना अनुबंध शून्य है, जब तक कि वह रजिस्टर्ड और लिखित न हो, या वह किए जा चुके किसी कार्य के प्रतिकर का वादा, अथवा अवधि
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दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालतों में चक्का जाम

पिछले साल दिसम्बर में खबर थी कि एक टेलीफोन कंपनी ने एक ही दिन में बंगलुरू में 73000 मुकदमे चैक बाउंस के प्रस्तुत किए थे। तब भारत के
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शो-पीस बना, घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का कानून

क्या यह कड़ुआ सच नहीं कि सरकारें सामाजिक समस्या के प्रति बस इतना ही दायित्व निभाती हैं कि उस पर कानून बना दें और उस का प्रचार कर
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कथा फैमिली कोर्ट तक पहुँचने के पहले की

बदरीनाथ मेरा पुराना मुवक्किल बहुत दिनों, करीब पाँच बरस बाद एक दिन मुझे अपने दफ्तर में दिखाई दिया, तो मैं पूछ बैठा- अरे! बदरी, आज कैसे? जो किस्सा
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वकील अदालतों के विकेन्द्रीकण और संख्या वृद्धि से क्यों बिदकते हैं?

वकील जब हड़ताल पर जाते हैं?  नहीं, जब से सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि वकीलों की हड़ताल अवैध है तब से वे हड़ताल पर नहीं जाते। वे न्यायालयों
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सैर, फैमिली कोर्ट की – मुकदमा दाखिल होने से समझौते तक

फैमिली कोर्ट में मदद के लिए किसी न किसी तरह वकील तलाश कर ही लिया जाता है। अब आगे का सफर वैसा ही होता है जैसा मुकदमा करने
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व्यवस्था के प्रति विद्रोह को संगठित करने का औजार

“अर्थशास्त्र” में अभिव्यक्त की गई विष्णुगुप्त चाणक्य की यह सीख कि राजा को न्याय करना चाहिए, जिस से उस के विरुद्ध विद्रोह नहीं हो। भारत के सामंती युग के
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