तीसरा खंबा के विगत आलेख कंट्रेक्ट को निरस्त करने की न्यायालय की शक्ति पर भाई नीरज जी रोहिल्ला ने अपनी टिप्पणी में एक गंभीर प्रश्न किया था….. “इंजीनियरिंग
स्वतंत्र सहमति के बिना अनुबंधों की शून्यकरणीयता जब किसी भी अनुबंध के लिए सहमति जबर्दस्ती, कपट या मिथ्या-निरूपण के माध्यम से प्राप्त की गई हो, तो ऐसा अनुबंध
‘मिथ्या-निरूपण‘ (misrepresentation) कंट्रेक्ट का मूल कानून अंग्रेजी में है और वहाँ शब्द है ‘मिसरिप्रेजेन्टेशन’। इस शब्द का कोई हिन्दी, उर्दू या हिन्दुस्तानी पर्याय उपलब्ध नहीं है, इस कारण
अपनी उपस्थिति से स्वतंत्र सहमति को दूषित करने वाले तीसरे कारक ‘कपट’ अर्थात् (fraud) को भारतीय कंट्रेक्ट कानून में परिभाषित किया गया है। उस की परिभाषा इस तरह