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Tag: न्याय प्रणाली

लॉर्ड बेंटिंक के न्यायिक सुधार : भारत में विधि का इतिहास-60

लॉर्ड एमहर्स्ट के उत्तराधिकारी के रूप में लॉर्ड बेंटिंक ने गवर्नर जनरल का पदभार 1828 में ग्रहण किया। वे 1835 तक केवल सात वर्ष इस पद पर रहे।
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सदर अमीन का पद वैतनिक हुआ : भारत में विधि का इतिहास-59

सदर अमीन को अब तक प्रचलित प्रथा के अनुसार प्रत्येक निर्णीत मामले के मू्ल्य के अनुपात में पारिश्रमिक दिया जाता था। लॉर्ड एमहर्स्ट ने 1824 के 13 वे
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राजस्थान का बजट न्याय-प्रशासन के लिए दिशाहीन और उदासीन

राजस्थान विधानसभा में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वित्त मंत्री की हैसियत में राज्य का बजट प्रस्तुत किया। तीसरा खंबा की निगाह इस बात पर थी कि वे न्याय
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दांडिक न्याय प्रणाली में लॉर्ड हेस्टिंग्स के सुधार : भारत में विधि का इतिहास-58

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने प्रारंभ में दांडिक न्याय प्रणाली को छेड़ने के स्थान पर उस का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया। सब से पहले उस का ध्यान इस बात पर गया
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द्वितीय अपील की समाप्ति और न्याय शुल्क में वृद्धि : भारत में विधि का इतिहास-57

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने अपने न्यायिक सुधारों के अंतर्गत सदर और प्रांतीय न्यायालयों की तरह ही  अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यप्रणाली में भी परिवर्तन किए। उस ने जिला दीवानी अदालत
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लॉर्ड हेस्टिंग्स के सुधार : भारत में विधि का इतिहास-56

लॉर्ड हेस्टिंग्स को 1813 में बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। वह एक कुशल प्रशासक और कुशाग्र बुद्धि का व्यक्ति था। उस ने तत्कालीन न्यायिक व्यवस्था का
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न्याय प्रणाली के विकास में लॉर्ड मिंटो का योगदान : भारत में विधि का इतिहास-55

अधीनस्थ न्यायालयों में सुधार   लॉर्ड मिंटो ने अधीनस्थ न्यायालयों के काम काज मे सुधार के प्रयत्न भी किए। उस ने प्रांतीय न्यायालयों की अपील की अधिकारिता में
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न्याय प्रणाली के विकास में लॉर्ड मिंटो का योगदान : भारत में विधि का इतिहास-54

वारेन हेस्टिंग्स के प्रयासों से आरंभ हुई न्याय प्रणाली को एक मंजिल तक पहुँचाने में लॉर्ड कॉर्नवलिस का महत्तम योगदान था। जॉन शोर और वेलेजली ने उस के
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स्वतंत्र न्याय पालिका की ओर कदम : भारत में विधि का इतिहास-53

जॉन शोर के उपरांत 1797 में लॉर्ड वेलेजली को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। जॉन शोर के उपायों से भी न्याय व्यवस्था मुकाम पर नहीं आ
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जॉन शोर ने न्यायशुल्क में और वृद्धि की : भारत में विधि का इतिहास-52

जॉन शोर के 1795 के उपायों से भी अदालतों में दीवानी मामलों की संख्या में अपेक्षित कमी नहीं आई। उस ने 1797 में पुनः न्यायालय शुल्क में वृद्धि
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