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न्याय प्रणाली के विकास में लॉर्ड मिंटो का योगदान : भारत में विधि का इतिहास-54

वारेन हेस्टिंग्स के प्रयासों से आरंभ हुई न्याय प्रणाली को एक मंजिल तक पहुँचाने में लॉर्ड कॉर्नवलिस का महत्तम योगदान था। जॉन शोर और वेलेजली ने उस के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया। अपनी दूसरी पारी में लॉर्ड कॉर्नवलिस को अधिक समय नहीं मिल पाया। 1805 में ही उस की मृत्यु हो गई। उस के उपरांत सर जार्ज वार्लो ने अल्पावधि तक गवर्नर जनरल का पदभार संभाला। 1807 में लॉर्ड मिंटो को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। उस ने प्रचलित प्रणाली का ही अनुसरण किया। लेकिन न्यायालयों में मुकदमों की संख्या को नियंत्रित करने और न्याय व्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए अनेक रचनात्मक कदम उठाए।
सदर दीवानी और निजामत अदालतों में सांगठनिक सुधार
लॉर्ड मिंटो ने 1807 में 15 वें विनियम के माध्यम से सदर दीवानी अदालत में सद्स्य न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा कर तीन से चार कर दी। सदर दीवानी अदालत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर गवर्नर जनरल, और कमांडर इन चीफ के अतिरिक्त किसी भी अन्य परिषद सदस्य की नियुक्ति का उपबंध कर दिया गया। शेष तीन न्यायाधीशों के पदों पर  कंपनी के विश्वसनीय कर्मचारियों को  नियुक्ति दी जा सकती थी। इन उपबंधों से न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण की नीति उलट दी गई। परिषद के एक सदस्य के माध्यम से न्यायपालिका पर कार्यपालिका का नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न किया गया था। 
दर दीवानी अदालत में चार न्यायाधीश भी अपर्याप्त सिद्ध हुए। इस कारण से 1811 में 12वें विनियम में इस समस्या का निराकरण करने का प्रयत्न करते हुए गवर्नर जनरल को आवश्यक संख्या में न्यायाधीश नियुक्त करने का प्राधिकार दिया गया। यह प्रतिबंध हटा दिया गया कि गवर्नर जनरल की परिषद का सदस्य ही मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है। अब वह किसी भी योग्य और उपयुक्त व्यक्ति को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर सकता था। इस से न्यायपालिका के कार्यपालिका से मुक्त होने की संभावनाएँ पुनः बन गई थीं।
1807 के पंद्रहवें विनियम में यह उपबंध किया गया कि सदर निजामत अदालत का मुख्य न्यायाधीश भी गवर्नर जनरल की परिषद का ही सदस्य होगा। इस विनियम से अदालत में न्यायाधीशों की संख्या तीन के स्थान पर छह कर दी गई थी।
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