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Tag: Judiciary

निजि शिक्षण संस्थाओं का उत्पीड़न और संवैधानिक संस्थाओं, सरकार व न्याय व्यवस्था की उदासीनता

बबीता वाधवानी मानसरोवर, जयपुर, राजस्थान ने निम्न चिट्ठी कानूनी सलाह के लिए “तीसरा खंबा” को लिखी है-   महोदय,  मैंने एम.एड. प्रीवीयस राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय से तलाक व विधवा
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हमारी सरकारें अभी भी भारत को अपना देश नहीं समझतीं

कुछ दिन पूर्व एक समचार चैनल पर एक वरिष्ठ अधिवक्ता का साक्षात्कार प्रस्तुत किया जा रहा था। समस्या थी जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की। इन कैदियों को
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क्या न्यायपालिका विनायक है?

गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने डॉ. कैलाश काटजू मेमोरियल के वार्षिक व्याख्यान में शनिवार को न्यापालिका के बारे में बहुत अच्छी अच्छी बातें कही हैं लेकिन साथ ही उन्हों ने
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लोकपाल और न्यायपालिका के लिए सरकारों के बजट का निश्चित प्रतिशत निर्धारित हो

आखिर यह तय हो ही गया है कि लोकपाल विधेयक संसद के अगले सत्र में प्रस्तुत होगा। इस के लिए जिस प्रकार का वातावरण बना है उसे देखते
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पैबंद लगी पैरहन

कल के आलेख न्यायालयों की श्रेणियाँ और उन में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ पर सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की टिप्पणी थी कि “इसमें परिवार न्यायालयों, उपभोक्ता फोरम व विविध ट्रिब्यूनल्स
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क्यों उठते हैं न्यायिक व्यवस्था पर प्रश्न, बार-बार

पिछले दिनों मेरे ही एक संबंधी के पुत्र को 498-ए में गिरफ्तार किया गया। हम करीब साल भर पहले से यह जानते थे कि ऐसी स्थिति आ सकती
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मैं वह फैसला पढ़ लेता तब भी मेरा फैसला वही होता ……

साल का आखिरी दिन है, और अपने पाठकों और मित्रों से कानून की बात नहीं, व्यवहार की बात करना चाहता हूँ। यह ब्लाग विधि और न्याय प्रणाली से
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आलोचना नहीं, तो हम न्यायपालिका जितनी निष्पक्ष रह गई है, उसे भी खो देंगे

वर्षान्त आ गया है। मैं जब इस लेख को लिखने बैठा हूँ, उस के ठीक दो घंटे बाद साल 2010 का आखिरी दिन आरंभ हो चुका होगा, फिर चौबीस
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डॉ. बिनायक सेन व अन्य दो अभियुक्तों को दंडित करने वाला मूल निर्णय अंतर्जाल पर उपलब्ध

दिसंबर 24, 2010 को रायपुर (छत्तीसगढ़) के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बी.पी. वर्मा ने अपने यहाँ लंबित सत्र प्रकरण क्रमांक 182/2007 छत्तीसगढ़ शासन बनाम पिजूष उर्फ बुबून गुहा,
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