क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद पूर्व पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं कर सकती ?
|प्रश्न-
जनाब शरीफ़ ख़ान साहब ने सवाल किया है कि क्या तलाक शुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी अपने खाविंद से धारा 125 दं.प्र.संहिता में जीवन निर्वाह भत्ते के लिए आवेदन कर प्राप्त कर सकती है, यदि उस ने विवाह नहीं किया हो?
उत्तर-
जनाब शरीफ़ ख़ान साहब मुस्लिम महिला ( तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) पारित होने के पहले तक तो स्थिति यही थी कि एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला पुनर्विवाह करने तक अपने पूर्व पति से जीवन निर्वाह के लिए भत्ता प्राप्त करने हेतु धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन कर सकती थी और प्राप्त कर सकती थी। लेकिन इस कानून के पारित होने के उपरांत यह असंभव हो गया। इस कानून के आने के बाद स्थिति यह बनी कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला इस कानून की धारा 5 के अंतर्गत भरण-पोषण की राशि के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन वह केवल उन व्यक्तियों से जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकती है जो उस की मृत्यु के बाद उस की संभावित संपत्ति के वारिस हो सकते हैं या फिर वक्फ बोर्ड से यह भत्ता प्राप्त कर सकती है। लेकिन धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत नहीं।
सुप्रीमकोर्ट ने इसी कानून के आधार पर बिल्किस बेगम उर्फ जहाँआरा बनाम माजिद अली गाज़ी के मुकदमे में उपरोक्त बात को स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा महिला अपने लिए तो नहीं लेकिन यदि उस की संतानें उस के पास हैं तो उन के लिए भरण पोषण प्राप्त करने के लिए वह धारा 125 दं.प्र.संहिता में आवेदन कर सकती है।
(क्रमशः आगे पढ़ें)
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10 Comments
मेरे विचार से मुश्किल सवाल है। जिसका जवाब इतना आसान नहीं है। मेरे विचार में कुछ महिला चिट्ठाकार इस पर कहना चाहें।
शायद इस प्रश्न का सही जवाब २००१ के उस लोक हित याचिक के फैसले में निहित है जिसमें डैनियल लतीफ ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम को चुनौती दी थी।
अच्छी जानकारी.
sabse pahle shadi ki shalgirah ki bahut bahut badhai evam shubh-kaamnayen……….
bahut achchhi jankari di
बहुत सुंदर जानकारी, लेकिन दोबारा शादी के बाद भी पहले पति से भत्ता प्राप्त करती थी यह जरुर अजीब था
धन्यवाद
उचित जानकारी के लिए आभार |
अच्छी जानकारी.
पहली बार जाना इस बारे में। धन्यवाद।
बहुत ही उपयोगी जानकरीं लगी , आभार ।
bahut see acchee posts padh nahee [paa rahee hoonaajkal bahut acchee jaanakaaree hai dhanyavaad
तभी तो हम कहते हैं कि देश में दो विधान की व्यवस्था को ख़त्म कर 'समान नागरिक संहिता' लागू की जानी चाहिए…
या फिर मुसलमानों के लिए पूरी तरह शरियत क़ानून लागू किया जाना चाहिए… यानी चोरी जैसे जुर्म में भी 'मुस्लिम चोरों' के हाथ काट दिए जाने चाहिए…
आख़िर शरीयत का 'सवाब' मुस्लिम पुरुषों भी तो मिलना चाहिए… अकेले औरतें ही क्यों भुगतें शरीयत के ज़ुल्म…