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हिन्दू विवाह केवल न्यायालय से ही विघटित हो सकता है, बाहर हुए समझौते से नहीं।

panchayatसमस्या-

रेशम लाल ने सिवानी, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-

2011 में मेरे दोस्त की शादी हुई उसकी एक संतान भी है। लड़की को लड़के का अत्यधिक भोला भाला पन पसन्द नही था, जिसके कारण उसका गाँव के एक लड़के के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। जिस बात को लेकर घर वालों में अक्सर झगड़ा होता था। एक दिन गांव वालों ने लड़की को प्रेम प्रसंग करते पकड़ लिया। तब से वो अपने मायके भाग कर चली गई, और अपने पति के घर वालों पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दी। थाणे बुलाकर दोनों पक्षों को सामाजिक बैठक बुलाकर अलग हो जाने की समझाइस दी गई। सलाह के अनुसार सामाजिक बैठक में लड़की पक्ष द्वारा 20000 रूपये दहेज का सारा सामान 500 रपये प्रतिमाह 5 साल तक भत्ता दिए जाने की सहमति के आधार पर दोनों पक्षों का विच्छेद हो गया। लड़का पक्ष द्वारा प्रति माह 500 भत्ता गाँव के मुखिया के समक्ष दिया जाने लगा। जिसका लिखित दस्तावेज नहीं है। लड़की ने 3 साल बाद भत्ता न देने का आरोप लगाते 30000 रूपये की मांग करते हुए धारा 125 का केस दर्ज करा दिया है। लड़के का परिवार अत्यंत गरीब है। कृपया बचाव के लिए मार्गदर्सन करने की कृपा करें। क्या उसे यह 30000 भत्ता देंने ही पड़ेंगे। क्या सजा हो जाने पर भत्ता देने से मुक्त हो जायेगा? सजा कितने साल की हो सकती है? इस झंझट से मुक्ति कैसे मिलेगी?

समाधान-

प अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी भुगतान को साबित करने के लिए रसीद का होना निहायत जरूरी है। यदि रसीद न हो तो भुगतान होना साबित करने में कई पापड़ बेलने पड़ते हैं। और जहाँ विवाद हो वहाँ तो रसीद प्राप्त करना निहायत जरूरी है। यदि मुखिया के सामने ही भुगतान हो रहा था तो मुखिया पति से धन प्राप्त कर रसीद दे सकता था और पत्नी को देते समय खुद रसीद ले सकता था। एक छोटी डायरी बनाई जा सकती थी जिस पर भुगतान कर के रसीद प्राप्त की जा सकती थी।

ह समझौता गाँव के लोगों के समक्ष हुआ था। जिस में पति पत्नी अलग हो गए और पति भत्ता देने लगा। यह निर्णय किसी भी न्यायालय के समक्ष बाध्यकारी नहीं हो सकता। हिन्दू विवाह सिर्फ न्यायालय द्वारा ही विघटित किया जा सकता है अन्य किसी भी प्रकार से नहीं। यदि किसी न्यायालय की विवाह विच्छेद की डिक्री नहीं है तो उस विवाह को विघटित हुआ नहीं माना जा सकता। इस कारण से इस विवाह विच्छेद का कोई मूल्य नहीं। उसी प्रकार लोगों द्वारा जो निर्णय भरण पोषण के लिए दिया गया है उस का भी कोई मूल्य नहीं है। पत्नी उस निर्णय के आधार पर बकाया भरण पोषण राशि की मांग नहीं कर सकती।

ब पत्नी ने भरण पोषण की मांग की है तो उस में अलग से निर्णय होगा जिस में केवल पत्नी द्वारा भरण पोषण का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करने की तिथि से भरण पोषण दिलाया जा सकता है उस से पूर्व की किसी तिथि से नहीं। पत्नी ने समाज के निर्णय के अनुसार पूर्व का जो भत्ता मांगा है वह न्यायालय नहीं दिला सकता।

न्यायालय द्वारा जो भत्ता निर्धारित किया जाता है किसी माह उसे न देने पर ही उसे एक माह के लिए जेल भेजा जा सकता है। लेकिन भत्ता तो हर माह बकाया होता है। दुबारा भत्ता न मिलने की शिकायत हो तो पति को फिर से जेल भेजा जा सकता है। न्यायालय द्वारा निर्धारित होने पर भत्ता तो देना होगा।

त्नी ने यदि भत्ते के लिए आवेदन किया है तो पति भी न्यायालय में विवाह विच्छेद के लिए आवेदन दे सकता है। विवाह विच्छेद की दशा में हर माह भरण पोषण देने से अच्छा है कि एक मुश्त भरण पोषण अदा कर के उस से मुक्ति प्राप्त कर ली जाए।

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