आरक्षण लाभ के लिए जाति का निर्धारण जन्म से होगा न कि विवाह से
| मथुरा (उ.प्र.) से नेम प्रकाश ने पूछा है –
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अनुसूचित जाति की कोई लड़की किसी सामान्य जाति के पुरुष से विवाह करती है, तो क्या उस लड़की की जाति शादी के बाद बदल जाती है? क्या वह सरकारी नौकरियों के लिये अपनी जाति का प्रयोग कर सकती है? कृपया उचित सलाह दें।
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उत्तर –
नेम प्रकाश जी,
हमारे देश में जिस तरह से जातिवाद ने समाज को विभाजित किया है यह भारतीय समाज के लिए कोढ़ रोग से कम नहीं है। आजादी के आंदोलन ने समाज के इस विभाजन को कम किया था। लेकिन उसी आजादी के आंदोलन से आरक्षण की जो चिकित्सा उपजी उस ने इस कोढ़ को स्थायित्व भी प्रदान कर दिया। धीरे-धीरे जैसे जैसे आबादी बढ़ी, बेरोजगारी भी बढ़ी। जैसे ही आरक्षण रोजगार और शिक्षा से जुड़ा उस ने निम्न जातियों को लाभ पहुँचाया। अब हर कोई जाति अनुसूचित, जनजाति या पिछड़ी हो जाना चाहती है। राजस्थान में गुर्जर अनुसूचित होना चाहते हैं तो हरियाणा के जाट खुद को पिछड़ी जाति सूचि में देखना चाहते हैं. आरक्षण की मांग करने में राजपूत और ब्राह्मण भी पीछे नहीं हैं।
यूँ तो संविधान कहता है कि जाति, धर्म और लिंग आदि के आधार पर भेदभाव गलत है। लेकिन जब लोगों तो जाति के आधार पर लाभ मिल रहा हो तो लोग उसे क्यों न चाहेंगे? इस तरह इस रोग का जड़मूल से समाप्त होना तो दूर रहा उसे जीवनदान प्राप्त हो गया है। अनुसूचित, जनजाति, और पिछड़ी जातियों के लिए जो आरक्षण है उस का आधार ही यह है कि इन जातियों में जन्म के कारण किसी व्यक्ति को सामाजिक भेदभाव और पिछड़ेपन का दोष झेलना पड़ा है। इस कारण से किसी व्यक्ति की जाति उस के जन्म से निर्धारित होती है और उसे विवाह और दत्तक ग्रहण के आधार पर बदला नहीं जा सकता।
आप की जिज्ञासा के संबंध में 2 जुलाई 2010 को उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा श्रीमती राना निगम बनाम उत्तरप्रदेश राज्य एवं अन्य के मुकदमे में पारित ताजा निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मामले में आवेदिका श्रीमती राना निगम का जन्म मध्यप्रदेश में हुआ और उस ने बीएएमएस की डिग्री प्राप्त की थी और वह एक आयुर्वेदिक पंजीकृत चिकित्सक थी। उस का जन्म जाटव जाति में हुआ था जिसे मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्यों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। उस का विवाह उत्तरप्रदेश के एक सामान्य जाति के युवक से हुआ। उस ने उत्तरप्रदेश में आयुर्वेदिक चिकित्सक के पद के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। साक्षात्कार के दौरान उस ने जो जाति प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया उस में उस के पति का नाम दर्ज था जो कि सामान्य श्रेणी से था। उसे अपने पिता के नाम सहित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा जो उस ने प्रस्तुत कर दिया। इस पर उस का मामला राज्य सरकार को प्रेषित कर दिया गया। राज्य सरकार ने उसे नौकरी देने से मना कर दिया। इस पर उस ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को रिट याचिका प्रस्तुत की।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यू.पी. पब्लिक सर्विस कमीशन बनाम संजय कुमार तथा स्वयं इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत डॉ. मधु राणा बनाम उत्तरप्रदेश राज्य के मामलों का उल्लेख करते हुए निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण उस के जन्म से होगा न कि इस आधार पर कि उस का विवाह किस जाति के व्यक्ति से हुआ है। इस मामले में यह भी निर्धारित किया गया है कि जिस व्यक्ति का जन्म जिस राज्य में हुआ है, तो उस राज्य में वह जाति जिस श्रेणी में है, सभी राज्यों में उसी श्रेणी में मानी जाएगी और उसे उस का लाभ प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता।
यूँ तो संविधान कहता है कि जाति, धर्म और लिंग आदि के आधार पर भेदभाव गलत है। लेकिन जब लोगों तो जाति के आधार पर लाभ मिल रहा हो तो लोग उसे क्यों न चाहेंगे? इस तरह इस रोग का जड़मूल से समाप्त होना तो दूर रहा उसे जीवनदान प्राप्त हो गया है। अनुसूचित, जनजाति, और पिछड़ी जातियों के लिए जो आरक्षण है उस का आधार ही यह है कि इन जातियों में जन्म के कारण किसी व्यक्ति को सामाजिक भेदभाव और पिछड़ेपन का दोष झेलना पड़ा है। इस कारण से किसी व्यक्ति की जाति उस के जन्म से निर्धारित होती है और उसे विवाह और दत्तक ग्रहण के आधार पर बदला नहीं जा सकता।
आप की जिज्ञासा के संबंध में 2 जुलाई 2010 को उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा श्रीमती राना निगम बनाम उत्तरप्रदेश राज्य एवं अन्य के मुकदमे में पारित ताजा निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मामले में आवेदिका श्रीमती राना निगम का जन्म मध्यप्रदेश में हुआ और उस ने बीएएमएस की डिग्री प्राप्त की थी और वह एक आयुर्वेदिक पंजीकृत चिकित्सक थी। उस का जन्म जाटव जाति में हुआ था जिसे मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्यों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। उस का विवाह उत्तरप्रदेश के एक सामान्य जाति के युवक से हुआ। उस ने उत्तरप्रदेश में आयुर्वेदिक चिकित्सक के पद के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। साक्षात्कार के दौरान उस ने जो जाति प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया उस में उस के पति का नाम दर्ज था जो कि सामान्य श्रेणी से था। उसे अपने पिता के नाम सहित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा जो उस ने प्रस्तुत कर दिया। इस पर उस का मामला राज्य सरकार को प्रेषित कर दिया गया। राज्य सरकार ने उसे नौकरी देने से मना कर दिया। इस पर उस ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को रिट याचिका प्रस्तुत की।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यू.पी. पब्लिक सर्विस कमीशन बनाम संजय कुमार तथा स्वयं इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत डॉ. मधु राणा बनाम उत्तरप्रदेश राज्य के मामलों का उल्लेख करते हुए निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण उस के जन्म से होगा न कि इस आधार पर कि उस का विवाह किस जाति के व्यक्ति से हुआ है। इस मामले में यह भी निर्धारित किया गया है कि जिस व्यक्ति का जन्म जिस राज्य में हुआ है, तो उस राज्य में वह जाति जिस श्रेणी में है, सभी राज्यों में उसी श्रेणी में मानी जाएगी और उसे उस का लाभ प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता।
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3 Comments
aarkshan ka labh us ke aarthik aadhar se hona chahiye na ki us ki jaati se
informative post…
dhanyvaad.
सबूत के साथ बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, लेकिन यह आरक्षण सच मे देश के लिये एडंस से कम खतरनाक नही, अगर इसे बिलकुल खत्म ना किया गया तो देश की बरवादी का एक कारण यह भी जरुर होगा,