एक सही न्याय व्यवस्था के लिए भी इंकलाब से ही गुजरना पड़ेगा
|जरा ये खबर देखिए…..
उदयपुर की एक अदालत ने बीस साल बाद हल्दी व मिर्च पाउडर में मिलावट करने के मामले में गुजरात की दो कम्पनियों एवं उनके मैनेजिंग डायरेक्टर तथा स्थानीय डिस्ट्रीब्यूटर के दो पार्टनर को दोषी मानते हुए कारावास व जुर्माने की सजा सुनाई है। इस मामले में 3 मार्च व 30 मार्च 1989 को एक खुदरा दुकानदार के यहाँ से इंडिया सेल्स कॉर्पोरेशन की एगमार्क इंडिया ब्रांड की लाल मिर्च के दस किलो के पैक से लाल मिर्च और एगमार्क इंडिया स्पाइसिस नडियाद की हल्दी के दस किलो के पैक से नमूने लिए थे। दोनों जांच के बाद अपमिश्रित पाये गये और दुकान मालिक के पास खाद्य पदार्थ बेचने का लाइसेंस भी नहीं था। अब 20 साल बाद अदालत ने स्थानीय डीलर की दुकान व उक्त कम्पनियों को दोषी मानते हुए खाद्य अपमिश्रण अधिनियम 1954 की धारा 7/16 में दोषी करार पाते हुए दोनों मैनेजिंग डायरेक्टर व स्थानीय डीलर को तीन-तीन साल के कारावास व तीस-तीस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसके अलावा अहमदाबाद व नडियाद की कम्पनी तथा स्थानीय डीलर की दुकान पर भी तीस-तीस हजार रुपये का जुर्माना किया गया।
खाद्य अपमिश्रण जो नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है और उन के जीवन को प्रभावित करता है। उस मामले में हमारी अदालत 20 वर्ष बाद एक निर्णय देती है। यह प्रारंभिक अदालत का निर्णय है और जिन्हें सजा हुई है वे नामी कंपनियाँ हैं जिन्हों ने इस तरह के मिलावटी माल को बेच कर करोड़ों रुपए अब तक कमाए होंगे। वे अब इस निर्णय के विरुद्ध अब सेशन न्यायालय में अपील करेंगे, फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। इसी में उन का जीवन पूरा हो लेगा और न्याय के हाथ से उन की गर्दनें निकल चुकी होंगी। जो लोग यह कर सकते हैं उन्हें कुछ भी अपराध करने में भय क्यों लगेगा? आप सोच सकते हैं कि जब अपराधी में न्याय का कोई असर ही नहीं होगा तो वह अपराध करने से क्यों चूकेगा।
हमारी अपराध न्याय-प्रणाली बिलकुल बेअसर हो चुकी है। सरकारों की इस में तेजी से सुधार लाने की कोई मंशा भी दिखाई नहीं देती है। वे योजनाएँ बनाते हैं और उन्हें लागू करने की तरफ आगे बढ़ते हैं तब तक बढ़ती हुई आबादी और बढ़ते हुए मुकदमों की संख्या उन की योजना को लील लेती है। लगता है मौजूदा व्यवस्था के पास इस समस्या से निपटने का न तो कोई मार्ग है और न ही इच्छा है। जनता को एक सही न्याय व्यवस्था के लिए भी इंकलाब से ही गुजरना पड़ेगा।
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14 Comments
करीब २०-२५ वर्ष पूर्व एक फिल्म देखी थी "अँधा कानून" कई बार वोह सार्थक
और सही महसूस हुयी…आज आपकी नयी रचना एक सही न्याय व्यवस्था के लिए भी
इंकलाब से ही गुजरना पड़ेगा पद क्र फिर उस फिल्म कि याद अ गयी… पता
नहीं इस देश का क्या बनेगा साहिर लुधियानवी कहा करते थे : जिन्हें नाज़
है हिंद पर वे कहाँ हैं….?
बहुत सुंदर लिखा आप ने , आज किसी को भी इस न्याय पर विशवास नही , ओर यह इंकलाब कोन लायेगा? कोई देवता नही हम ही लायेगे, जब हम अपने निजी स्वार्थ छोडेगे तो हम यानि जनता जिस मै बहुत ताकत है वो ही ला सकती है, लेकिन जब तक हम निजी स्वार्थ मै लगे रहेगे तो बारी बारी से मरते रहे गे अन्याय से
जनता चाहे तो तख्ता पलट सकती है, लेकिन सब मिल कर जात पात धर्म को एक तरफ़ रख कर मिल कर लडे तो हम सब सुखी हो सकते है.
आप ने बहुत सुंदर शव्दो मे बहुत अच्छी बात कह दी.
धन्यवाद
सही कहते हैं आप।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
ये तो सभी जानते हैं कि सिर्फ़ न्याय व्यवस्था तो क्या सभी क्षेत्रों में "इंकलाब की आवश्यकता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि यह इंकलाब लायेगा कौन? सोई हुई जनता, नेताओं के जयकारे लगाते हुए अनपढ़, सुविधाभोगी मध्यमवर्ग, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी, ब्लैकमेलर बन चुके पत्रकार, भाण्ड बन चुका मीडिया, दल्ले बन चुके वकील… कौन लायेगा इंकलाब?
अब तक न जाने कितनी मिलावट कर चुके होंगे। ऐसी लचर व्यवस्था ही अपराधियों के हौसले बुलन्द करती है।
घुघूती बासूती
Thanks for that! It’s just the answer I needde.
द्विवेदी सर,
देश में तीन करोड़ से ज़्यादा मुकदमे लंबित पड़े है…उम्र बीत जाती है मुकदमे लड़ते-लड़ते, लेकिन प्रक्रिया अपनी गति से चलती है….ये देरी ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है…इसीलिए कहा जाता है कि भारत में दो क़ानून है…एक अमीरों के लिए और एक गरीबों के लिए…ये नहीं होता तो कोई मनु शर्मा बीमार मां के नाम पर पैरोल लेकर बार में जाकर मौज-मस्ती नहीं कर रहा होता…
जय हिंद…
मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि समाज को ठीक रखने के लिए थोड़ी बहुत अराजकता बहुत जरूरी होती है। खासकर ऐसे मामलों में
अपसे सहमत मगर सब मजबूर क्या करें शुभकामनायें
इस तरह के अपराध हमारे यहाँ कोई बड़ी बात नहीं है ।
आपके बात से सहमत कानून की परिकल्पना गरीबो के लिये ही है पर आज गरीबो को ही न्याय के लिये भटकना पड़ रहा है।
सही कहा आपने। लोकतंत्र के अन्य खम्भों की तरह न्याय व्यवस्था भी दिन प्रतिदिन जर्जर होती जा रही है और व्यवस्था परिवर्तन के लिए आन्दोलन आवश्यक है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
हमारी अपराध न्याय-प्रणाली बिलकुल बेअसर हो चुकी है।-सही कहा, मन खीज जाता है!
हां सच कह रहे हैं आप ..और अब शायद इसे गंभीरता से लेते हुए ..टाईम बाउंड करने के प्रयास किये जा रहे हैं । दिल्ली की अदालतों मे ..हरेक अदालत से प्रति माह ये सूचना मंगाई जाती है कि उस अदालत में लंबित सबसे पुराने बीस मुकदमों में क्या प्रगति हुई, और ये सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उन्हें ही जल्दी निपटाया जाए, पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित मुकदमों के लिए तो अलग से अदालतों का गठन कर दिया गया है। मगर अफ़सोस कि ये व्यवस्था अभी सब जगह नहीं बन पाई है ..और न ही अभी बहुत कारगर साबित हो पाई है॥