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कापीराइट – कृतिकारों की संपत्ति

copyright3दो बरस पहले विश्व पुस्तक एवं कापीराइट दिवस मनाने के सप्ताह भर बाद ही बंगलूरू पुलिस ने भारत के प्रसिद्ध इंटरनेट सर्चइंजन गुरुजी डाट कॉम के दफ्तर पर छापा मारा और उन के बहुत सारे कंप्यूटर जब्त कर लिए।  कंपनी के फाउंडर और सीईओ अनुराग डोड और कुछ अन्य अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।  पुलिस ने यह कार्रवाई टी-सिरीज ब्रांड के संगीत उत्पादों की निर्माता कंपनी द्वारा कराई गई एफआईआर पर की थी जिस में टी-सिरीज ब्रांड के  संगीत उत्पादों के कापीराइट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।  गुरूजी डाट कॉम अपने सर्च इंजिन के लिए प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन कुछ समय से उन्हों ने संगीत के लिए सर्च इंजन बनाया था जो किसी भी संगीत रचना को तुरन्त तलाश कर सकता था। इतना ही नहीं वह वैसे लिंक भी उपलब्ध कराता था जिस पर जा कर कोई भी व्यक्ति तुरंत उस संगीत रचना को सुनने के साथ ही उसे डाउनलोड कर के अपने कंप्यूटर पर सेव कर सकता था और जब चाहे उस का उपयोग कर सकता था। निश्चित रूप से गुरूजी डाट कॉम की इस सेवा से सभी संगीत उत्पादों की बिक्री पर बुरा असर पड़ा था।  लेकिन यह तो सर्च इंजन की विशिष्टता थी। उस सर्च इंजन ने किसी भी संगीत उत्पाद या उस के अंश को न तो प्रस्तुत किया था और न ही किसी तरह का उपयोग किया था। इस कारण आईटी इंडस्ट्री में इस गिरफ्तारी से सनसनी फैल गई। यह अपनी तरह का पहला और विचित्र मामला था जिस में गुरूजी डाट कॉम ने एक एफिशियंट सर्च इंजन बनाया था तथा शिकायतकर्ता कंपनी के किसी भी उत्पाद का कोई उपयोग नहीं किया था। उन का सर्च एंजिन केवल उन लिंकों का रास्ता बताता था जहाँ से शिकायतकर्ता कंपनी के उत्पादों को बिना कोई मूल्य दिए हासिल किया जा सकता था। इस मामले से यह सवाल खड़ा हो गया था कि क्या इस तरह के स्वतंत्र कार्य को भी कापीराइट एक्ट का ऐसा गंभीर अपराध माना जा सकता है जिस में पुलिस अपने विवेक से प्रसंज्ञान ले कर कंपनी की संपत्ति को जब्त कर ले तथा उस के उच्चाधिकारियों को गिरफ्तार कर ले? इस मामले में गिरफ्तारी तक कहीं भी अदालत और कानून विशेषज्ञों की कोई भूमिका नहीं थी लेकिन अभियुक्तों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करते ही वह आरंभ हो जाने वाली थी। इस मामले में अभी न्यायालय का निर्णय आना शेष है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा और जो कापीराइट एक्ट से जुड़े अपकृत्यों, अपराधों के विस्तार और सीमाओं को स्पष्ट करेगा।

हाल ही में यूरोप के तीन प्रमुख पुस्तक प्रकाशकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय पर मुकदमा किया है जिस में विश्वविद्यालय लायसेंस प्राप्त व्यक्ति द्वारा उन की छात्रोपयोगी पुस्तकों की फोटोकापी करने को कापीराइट का उल्लंघन बताया है।  इन प्रकाशकों की आपत्ति को मान लिया जाए जाए तो छात्र उन महंगी पुस्तकों का उपयोग करने से वंचित हो जाएंगे। इस आपत्ति को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन सहित अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने इस आधार पर खारिज कर दिया है कि इस का शैक्षणिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव होगा। लेकिन कुछ लोगों ने उस का उपाय भी सुझाया है कि यदि फोटोकापियाँ प्रकाशकों से लायसेंस प्राप्त कर के की जाएँ तो एक-डेढ़ रुपया प्रति पृष्ट की दर पर छात्रों को उपलब्ध हो सकती हैं और प्रकाशकों को भी उस का लाभ मिल सकता है।

न दो घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि कापीराइट आम लोगों को प्रभावित करने लगा है और ‘सब चलता है’ कहते हुए कापीराइट का उल्लंघन किया जाना भारी पड़ सकता है। अब आम लोगों को यह जानना जरूरी हो गया है कि कापीराइट क्या है? जिस से वे अपनी अज्ञानता और  लापरवाही से यह अपराध करने से बचें।

कापीराइट – एक कानूनी अधिकार

कापीराइट का अधिकार नैसर्गिक या दीवानी अधिकार नहीं  है। यह कानून द्वारा प्रदत्त और नियंत्रित है जिस की उत्पत्ति प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार और पुस्तकों की अनियंत्रित प्रतिलिपियाँ बनाए जाने से जुड़ी है।  इंग्लेंड के चार्ल्स द्वितीय इस स्थिति से चिंतित हुए और तब 1662 में ब्रिटिश संसद ने ‘लायसेंसिग ऑफ प्रेस एक्ट’ पारित किया।  प्रिंटिंग प्रेस और मशीनों के विकास और प्रसार ने धीरे धीरे इस अधिकार की जरूरत को दुनिया भर में पहुँचा दिया और एक के बाद दूसरे देश में इस तरह के कानून बनने लगे।  ये कानून कृतिकारों और व्यवसायियों को केवल अपने ही देश में संरक्षण प्रदान कर सके। किसी भी कृति की दूसरे देश में कितनी ही प्रतियाँ बनाई और वितरित की जा सकती थीं।  इस पर रोक लगाने के लिए देशों के बीच सन्धियाँ होने लगीं जिन्हें कानून में स्थान दिया जाने लगा। आज लगभग सभी देश कापीराइट पर हुई सन्धियों में से किसी न किसी एक में पक्षकार हैं जिस से इस अधिकार को लगभघ पूरे विश्व में स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।  भारत में कापीराइट का आरंभ  “भारतीय कापीराइट एक्ट-1914” से हुआ जो उस समय इंग्लेण्ड में प्रचलित अंग्रेजी कानून “कापीराइट एक्ट 1911(य़ू.के)” में मामूली हेर-फेर के साथ बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद भारत को  “कापीराइट” पर एक सम्पूर्ण स्वतंत्र कानून की जरूरत महसूस होने लगी। प्रसारण और लिथो फोटोग्राफी जैसे नए, आधुनिक संचार माध्यमों और भारत सरकार द्वारा स्वीकृत अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के निर्वाह के लिए संसद ने “कापीराइट एक्ट, 1957” पारित किया जो समय समय पर बदलती हुई परिस्थितियों के कारण संशोधित किया जाता रहा।

कापीराइट – एक संपत्ति

copyright2ब भी व्यक्ति अपने मस्तिष्क में उत्पन्न विचार को किसी भी रूप में अभिव्यक्त करता है तो वह किसी न किसी कृति का सृजन करता है और स्वयं कृतिकार हो जाता है।  इस सद्यजात कृति या उस के किसी महत्वपूर्ण अंश का किसी भी रूप में उपयोग करने का अधिकार ही कापीराइट है। भारत में कापीराइट का स्वामित्व मूलतः कृतिकार का होता है लेकिन कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के नियोजन में रहते हुए अथवा किसी कान्ट्रेक्ट के अंतर्गत नियोजन या कांट्रेक्ट की शर्तों के अंतर्गत काम करते हुए किसी कृति को जन्म दे तो उस कृति में प्रथम अधिकार उस के नियोजक या उस व्यक्ति का होता है जिस के लिए वह कांट्रेक्ट पर काम करता है।  किसी भी कृति में कापीराइट का स्वामित्व उस कृति के कृतिकार की मृत्यु के अगले केलेंडर वर्ष के आरंभ से 60 वर्ष तक का रहता है। लेकिन फोटोग्राफ, सिनेमा फिल्म, साउंड रेकार्डिंग, कंप्यूटर प्रोग्रामों, वास्तु कलात्मक कृतियों, सरकारी कार्यों और अन्तराष्ट्रीय कार्यों में कृति के प्रकाशन से 60 वर्ष तक निहित रहता है। यह अवधि समाप्त हो जाने पर कृति पर कापीराइट का अधिकार समाप्त हो जाता है और कृति पब्लिक डोमेन में चली जाती है।  तब उस कृति का कोई भी व्यक्ति उपयोग कर सकता है। कापीराइट का यह अधिकार कोई भी कृतिकार स्वेच्छा से त्यागना चाहता है तो कापीराइट रजिस्ट्रार को नोटिस दे कर त्याग सकता है। कापीराइट रजिस्ट्रार इस की अधिसूचना गजट में जारी कर देता है। कापीराइट एक स्वअर्जित संपत्ति की तरह है जिसे उस का स्वामी हस्तांतरित कर सकता है, उस के उपयोग के लिए लायसेंस दे सकता है, उस की वसीयत कर सकता है और यदि वसीयत नहीं करता है तो उस के जीवनकाल के बाद यह अधिकार कापीराइट के स्वामी पर प्रभावी पर्सनल लॉ के अनुसार उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो जाता है।

कापीराइट – कब नहीं रहता

कापीराइट में किसी भी कृति को किसी भी तात्विक रुप में पुनः प्रस्तुत करना या  इलेक्ट्रॉनिक विधि से किसी माध्यम में संग्रहीत करना शामिल है। इस के अतिरिक्त किसी कृति की प्रतियाँ जनता में वितरित करना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन या उसे जनता में संप्रेषित करना, उस के संबंध में सिनेमा फिल्म बनाना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन करना, साउंड रिकार्डिंग करना, अनुवाद करना, रूपान्तरण या अनुकूलन करना और किसी कृति के अनुवाद या रुपान्तरण (अनुकूलन) तथा किसी कंप्यूटर प्रोग्राम के सम्बन्ध में उक्त सभी काम करना शामिल है।  एक अनुवाद को भी स्वतंत्र मौलिक कृति माना गया है यदि वह मूल कृति के स्वामी की स्वीकृति से किया गया हो।  लेकिन किसी सिनेमा फिल्म के महत्वपूर्ण अंश में तथा किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतीय कृति के संबंध में निर्मित साउंड रिकार्डिंग में किसी अन्य कृति के कापीराइट का उलंघन किया गया हो तो इस प्रकार निर्मित किसी भी कृति में कापीराइट स्थित नहीं रहता।

कापीराइट – पंजीकरण जरूरी नहीं

कापीराइट किसी भी कृति के तैयार हो जाने पर या प्रथम प्रकाशन के साथ ही उस में उत्पन्न हो जाता है। इस के रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इस के सबूत के लिए कि किसी विशेष कृति पर किस व्यक्ति का कापीराइट है कापीराइट के रजिस्ट्रेशन के लिए रजिस्ट्रार की व्यवस्था की है इस का देश में एक मात्र कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

कापीराइट – लायसेंस

दि कोई व्यक्ति कापीराइट के स्वामी की अनुमति के बिना या कापीराइट पंजीयक से लायसेंस प्राप्त किये बिना कृति का उपयोग करता है या लायसेंस की शर्तों का उल्लंघन करता है या वह उस कृति की उलंघनकारी प्रतियाँ बेचने के लिए बनाता है, या भाड़े पर लेता है, या व्यवसाय के लिये प्रदर्शित करता है या बेचने या भाड़े पर देने का प्रस्ताव करता है, या व्यवसाय के लिये या इस हद तक वितरित करता है जिस से कापीराइट का स्वामी प्रतिकूल रुप से प्रभावित हो, या व्यावसायिक रुप से सार्वजनिक रुप से प्रदर्शित करता है तो यह उस कृति में कापीराइट का उलंघन है।

कापीराइट – कैसे बना कानून?

copyright1कापीराइट का कानून कृतियों का उस के स्वामी के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे अनियंत्रित उपयोग को सीमित करने के लिए अस्तित्व में आया था। किन्तु इस से शिक्षा, ज्ञान और कला के प्रसार को बाधा पहुँचने का खतरा भी कम नहीं था। इस कारण कृतियों के कुछ उपयोग ऐसे भी निर्धारित किए गए जिन्हें कापीराइट का उल्लंघन नहीं माना गया। कम्प्यूटर प्रोग्राम के अतिरिक्त अन्य साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति का व्यक्तिगत या रिसर्च में उपयोग, कृति की आलोचना एवं समीक्षा करने के लिए किया गया उचित-व्यवहार कापीराइट का उलंघन नहीं है। कम्प्यूटर प्रोग्राम की प्रति को कानूनी धारक द्वारा स्वीकृत उपयोग के लिए प्रतियाँ बनाना या उस का रूपान्तरण करना, उस के नष्ट होने और क्षति से सुरक्षा के लिए एक प्रति बनाना, किसी अन्य प्रोग्राम के साथ उसे चलाने के लिए नई सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से कोई काम करना  तथा गैर-वाणिज्यिक व्यक्तिगत उपयोग के लिए प्रतियां बनाना या रूपान्तरण करना कापीराइट का उलंघन नहीं है। इसी तरह साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति का उपयोग सामयिक घटनाओं को रिपोर्ट करने, किसी समाचार-पत्र, पत्रिका या समान प्रकार के सावधिक पत्रों, या सिनेमा फिल्म या चित्रों में प्रसारण हेतु किया गया समुचित उपयोग भी कापीराइट का उलंघन नहीं है।  लेकिन सार्वजनिक रूप से किए गए संबोधनों या भाषणों के संग्रह का प्रकाशन उचित व्यवहार नहीं है। किसी साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति की न्यायिक कार्यवाहियों, या न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्ट के उद्देश्य से पुनरुत्पादन, विधायिका के सचिवालय द्वारा सदन के सदस्यों के उपयोग हेतु पुनरुत्पादन या प्रकाशन। किसी कृति के उचित सार का जनता के बीच पठन-पाठन। किसी अध्यापक या प्यूपिल के निर्देशों पर किसी परीक्षा में किसी प्रश्न में या प्रश्नों के उत्तर के रुप में या किसी शैक्षणिक संस्थान की गतिविधियों के क्रम में उस के विद्यार्थियों और स्टॉफ द्वारा प्रस्तुतिकरण, या एक सिनेमा फिल्म या साउंड रिकार्डिंग का प्रस्तुतिकरण आदि कृत्य कापीराइट का उलंघन नहीं हैं। इन के अलावा अनेक ऐसे कार्य कानून द्वारा निर्धारित किए गए हैं जो कापीराइट उलंघन हो सकते हैं या नहीं हो सकते हैं।

कापीराइट – उलंघन पर उपाय

कापीराइट के उल्लंघन से संबंधित मामलों में उसे रोकने के लिए निषेधाज्ञा प्राप्त करने, क्षतिपूर्ति प्राप्त करने, हिसाब किताब मांगने आदि अनेक उद्देश्यों के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इसी तरह कापीराइट के अनेक प्रकार के उलंघनों को अपराध बनाया गया है। आरोप सिद्ध हो जाने पर अभियुक्त को जुर्माने से लेकर तीन वर्ष तक के कारावास के दंड दंडित किया जा सकता है।

कापीराइट – रॉयल्टी की नई व्यवस्था

कापीराइट कानून से जहाँ कृतिकारों को उन के द्वारा कृति के निर्माण पर जो श्रम किया जाता है उस का उचित मूल्य और रायल्टी मिलने लगी है उस से कृतिकारों को राहत प्राप्त हुई है। लेकिन इस में अनेक कमियाँ भी हैं। अधिकांश कलाकारों से निश्चित शुल्क पर काम करवा कर कृतियों का निर्माण करवा कर व्यवसायी कृति में उत्पन्न स्वामित्व का लाभ जीवन भर उठाते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए 2012 में कानून को संशोधित किया गया। अब इस तरह के कुछ विशिष्ट प्रकार के कार्यों के लिए कलाकारों को जीवन भर उन के योगदान से बनी कृतियों पर रायल्टी की व्यवस्था की गई है। लेकिन इस कानून से ज्ञान, कला और शिक्षा के विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई है। इस मामले में विद्वान अनेक प्रकार के मत रखते हैं। कुछ इस के समर्थक हैं तो सामाजिक आंदोलनों के अधिकांश नेता इस का विरोध भी करते हैं। महात्मा गांधी का विचार था कि सर्वोत्तम तो यह है कि स्वयं कृतिकार ही अपने जीवन काल में उचित परिस्थितियों में कृति पर से अपना कापीराइट सार्वजनिक हित में त्याग दे और उसे आम जनता के लिए सुलभ बना दे।